Masik Shivratri 2021: सुबह नहीं कर पाए शिव पूजा, तो इस मुहूर्त में करें उपासना

punjabkesari.in Sunday, May 09, 2021 - 01:23 PM (IST)

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प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि की पर्व मनाया जाता है। जो इस मास में 09 मई यानि आज रविवार के दिन पड़ रहा है। इस दिन भगवान शंकर की पूजा का विधान होता है। प्रदोष व्रत के दिन अगले दिन पड़ने वाले इस व्रत को करने से व्यक्ति के तमाम तरह के दुखों का नाश होता है। खासतौर पर ये व्रत नव विवाहित महिलाओं के लाभदायक साबित होता है। इससे संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है। इसके अलावा जिस व्यक्ति को किसी प्रकार का कोई रोग काफी लंबे समय से परेशान कर रहा हो, तो इस व्रत के प्रभाव से उस रोग से भी हमेशा के लिए मुक्ति मिलती है। 

इसके अतिरिक्त इस व्रत का क्या महत्व है, आइए जानते हैं मासिक शिवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में, लेेकिन उससे पहले जानिए आज किन मुहूर्त 
में कर सकते हैं शिव जी की उपासना- 

इन शुभ मुहूर्त में करें भगवान शिव की पूजा-
ब्रह्म मुहूर्त- मई 10 को सुबह 03:59 बजे से 04:42 बजे तक
अभिजित मुहूर्त- सुबह 11:39 से 12:32 पीएम तक
विजय मुहूर्त- 02:19 पीएम से 03:12 पीएम तक
गोधूलि मुहूर्त- 06:32 पीएम से 06:56 पीएम तक
अमृत काल- 02:49 पीएम से 04:36 पीएम तक
निशिता मुहूर्त- 11:44 पीएम से 12:26 एएम, मई 10 तक
सर्वार्थ सिद्धि योग- 05:29 पीएम से 05:25 एएम, मई 10 तक

पौराणिक कथाओं के नुसार प्राचीन काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। रोज़ाना वह शिकार के द्वारा अपने परिवार का पालन करता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था। एक बार एक दिन साहूकार ने शिकारी को कर्ज न अदा कर पाने के कारण बंदी बनाकर शिवमठ में डाल दिया। संयोगवश उस दिन शिवरात्रि थी। बंदी बना शिकारी पूरा दिन बिना कुछ खाए-पिए ध्यान मग्न होकर शिव भगवन की चर्चा सुनता रहा। 

शाम को साहूकार ने शिकारी को बुलवाया और कर्ज देने की बात कही। शिकारी द्वारा कर्ज अदा करने की बात किए जाने के बाद साहूकार ने शिकारी को बंधन से मुक्त कर दिया। भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी शिकार की खोज में फिर से एक जंगल में पहुंच गया। इस दौरान अंधेरा हो गया। तो मजबूरन उसे जंगल में ही रात बिताने का विचार करना पड़ा और वह एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़कर बैठ गया। 

जिस बिल्व वृक्ष के ऊपर वह शिकारी बैठा था, उसके नीचे एक शिवलिंग था जो बिल्व पत्रों से ढका हुआ था। जिसकी जानकारी शिकारी को नहीं थी। पड़ाव बनाते समय बिल्व की जो टहनियां तोड़कर नीचे डालता वह भगवान शिव के शिवलिंग पर गिरती चली गई। 

जिससे उसका व्रत भी पूरा हुआ और बिल्व पत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने परा एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची। जैसे ही शिकारी ने हिरणी का शिकार करने के लिए प्रत्यंचा चढ़ाया। हिरणी बोली में गर्भिणी हूं। कुछ ही देर में मैं बच्चे को जन्म देने वाली हूं। मुझे अभी मत मारो, बच्चे को जन्म देकर मैं पुनः आपके समक्ष आ जाऊंगी।

उसकी बात सुनकर शिकारी को दया आ गई और उसे जाने दिया। इस दौरान जब शिकारी ने प्रत्यंचा चढ़ाई और ढीली की तो उस समय भी कई बेल-पत्र टूटकर शिवलिंग पर गिरे और उसकी पहले पहर का भी व्रत पूरा हुआ। 

इसी प्रकार शिकारी ने चार बार शिकार को माफ करता रहा, जिसे दौरान अनजाने में ही उसका शिवरात्रि व्रत पूरा हुआ तथा रात्रि जागरण भी हो गया।  
कथाओं के अनुसार अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई।


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Content Writer

Jyoti

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