Manmath Nath Gupta birthday: आज है काकोरी काण्ड के क्रान्तिकारी तथा सिद्धहस्त लेखक मन्मथनाथ गुप्त का जन्मदिन, पढ़ें कहानी
punjabkesari.in Wednesday, Feb 07, 2024 - 07:18 AM (IST)

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Manmath Nath Gupta birth anniversary: मन्मथनाथ गुप्त भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी तथा सिद्धहस्त लेखक थे, जिन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी तथा बंगाली में आत्मकथात्मक एवं ऐतिहासिक साहित्य की रचना की। वह मात्र 13 वर्ष की आयु में ही स्वतन्त्रता संग्राम में कूद गए, जेल गए और बाद में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सक्रिय सदस्य भी बने। इन्होंने 17 वर्ष की आयु में 1925 में हुए काकोरी कांड में सक्रिय रूप से भाग लिया, जिसमें 4 लोगों को फांसी की सजा मिली, जबकि इन्हें आयु कम होने के कारण मात्र 14 वर्ष की कठोर सजा दी गई। इन्हें 1939 में फिर सजा हुई और ये भारत के स्वतन्त्र होने से एक वर्ष पूर्व 1946 तक जेल में रहे।
मन्मथनाथ गुप्त का जन्म 7 फरवरी, 1908 को वाराणसी में हुआ था। इनके पिता वीरेश्वर विराटनगर (नेपाल) में एक स्कूल के हैडमास्टर थे। इसलिए मन्मथनाथ गुप्त ने भी 2 वर्ष वहीं शिक्षा पाई। पांच वर्ष की आयु में ही गणित के कठिन प्रश्न हल कर बालक मन्मथ ने अपनी प्रतिभा का परिचय दे दिया था। विद्वान पिता ने इसीलिए किसी सामान्य स्कूल में प्रवेश न दिला, घर पर ही इनकी प्रारंभिक शिक्षा की व्यवस्था कर दी।
एक संन्यासी गुरु के पास इन्हें संस्कृत पढ़ने भेजा गया। फिर इन्हें काशी के विद्यापीठ में प्रवेश दिला दिया गया। यहां का वातावरण भी उन दिनों राष्ट्रीय चेतना जगाने व देशभक्ति का पाठ पढ़ाने वाला था। ऐसे माहौल में मन्मथनाथ राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लिए बिना कैसे रह सकते थे। 1921 में ब्रिटिश युवराज के भारत आने का विरोध क्रांतिकारी कर रहे थे। उस समय 14 साल के मन्मथनाथ गुप्त भी बहिष्कार आंदोलन में शामिल थे।
मन्मथ जब हड़ताल और धरने का नोटिस बांटने निकले तो पिता ने टोका कि तुम्हें पुलिस पकड़कर जेल भेज और डंडों से पीट सकती है। क्या तुम यातनाएं सह पाओगे ?
मन्मथनाथ का उत्तर था, ‘बाबू जी, मैं अपनी मातृभूमि के लिए सब कुछ सहने के लिए तैयार हूं। आपने ही तो यह सब सिखाया है।’
पिता ने उन्हें अनुमति दे दी। आखिर नोटिस बांटते हुए उन्हें पकड़ लिया गया और तीन महीने की जेल हो गई। जेल से छूटने पर इन्होंने फिर से काशी विद्यापीठ में प्रवेश लिया और वहां से विशारद की परीक्षा उत्तीर्ण की। तभी उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ और मन्मथ पूर्ण रूप से क्रांतिकारी बन गए।
1925 के प्रसिद्ध काकोरी कांड में इन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया। इसके बाद ये गिरफ्तार हुए, मुकद्दमा चला और 14 वर्ष के कारावास की सजा हो गई। जेल में भी इन्होंने मानवतावादी मूल्यों की स्थापना के लिए 2 बार अनशन किया था और आजन्म इन मूल्यों के लिए अपने लेखन से वह लड़ते रहे। 1937 में जेल से रिहा होने के बाद इन्होंने कई पुस्तकें लिखीं। अलग-अलग विषयों पर लगभग 80 से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित भी हुईं। स्वतन्त्र भारत में वे योजना, बाल भारती और आजकल नामक हिन्दी पत्रिकाओं के सम्पादक भी रहे।
26 अक्तूबर, 2000 को 92 वर्ष की आयु में दीपावली के दिन नई दिल्ली स्थित निजामुद्दीन ईस्ट में निवास स्थान पर इनका जीवन-दीप हमेशा के लिए बुझ गया।