देश भर में विभिन्न रीति-रिवाजों से मनाई जाती है मकर संक्रांति, आईए जानें कैसे

punjabkesari.in Saturday, Jan 14, 2017 - 08:53 AM (IST)

‘सौर पंचाग’ के आधार पर मनाया जाने वाला पर्व ‘मकर संक्रांति’ भारत के विभिन्न भागों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य का उत्तरायण काल शुरू होता है जिस कारण दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। सूर्य जब अपनी परिक्रमा के बीच धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति होती है। इस दिन लोग घर में खिचड़ी बनाते हैं व दाल, चावल, तिल आदि का प्रयोग करते हैं। उत्तर भारत में लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं तथा सूर्य को अर्ध्य देते हैं।


क्षेत्रानुसार मकर-संक्रांति: प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रीति-रिवाजों से मनाया जाता है।


* तमिलनाडु में यह तीन दिनों तक मंगल उत्सव के रूप में मनाया जाता है। पहला दिन ‘भोगी मंगल’ के रूप में पारिवारिक उत्सव होता है। चावल, गुड़ तथा दूध से ‘मंगल’ नामक पकवान तैयार कर सूर्य के नाम उत्सर्जित किया जाता है। तीसरे दिन ‘मट्टमंगल’ मनाया जाता है जो गाय, बैलों और भैंसों को अर्पित होता है। हमारी भारतीय परंपरा में गाय को पूजनीय माना जाता है लेकिन साथ ही बैलों तथा भैंसों के प्रति भी किसान कृतज्ञ होते हैं तथा सबके गलों व सींगों मेें फूलों की मालाएं पहना कर उनकी पूजा की जाती है।


* कर्नाटक में यह पर्व फसलों की कटाई के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। लोग एक-दूसरे को भुने तिल, काजू, बादाम, चना व सूखा नारियल भेंट करते हैं ताकि उनकी मित्रता बनी रहे।


* महाराष्ट्र में महिलाएं अपने विवाह की प्रथम संक्रांति पर कपास, तेल व नमक आदि अन्य सुहागिन महिलाओं को दान में देती हैं। लोग एक-दूसरे को तिल-गुड़ देते समय बोलते हैं ‘तिल गुड़ ध्या आणि गोड़-गोड़ बोला’ अर्थात तिल-गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो।

 
* बंगाल में इस दिन ‘गंगासागर द्वीप’ पर कई तीर्थयात्री एकत्रित होते हैं जहां गंगा बंगाल की खाड़ी में मिलती है। ऐसा विश्वास है कि संगम पर डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं। बंगाल में इस पर्व पर तिल दान की परंपरा है।


* गुजरात में यह पर्व शुभ दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन यहां आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है।


* उत्तराखंड के बागेश्वर में इस दिन बहुत बड़ा मेला लगता है। इस दिन गंगा स्नान करके तिल-मिष्ठान आदि ब्राह्मणों को दान दिए जाते हैं।


* असम में यह पर्व ‘माघ बिहू’ या ‘भोगाली बिहू’ के नाम से प्रसिद्ध है।


* राजस्थान में इस दिन महिलाएं अपनी सास को बायना देकर उनका आशीर्वाद लेती हैं।


* शिशिर ऋतु की विदाई और बसंत के आगमन व फसल के घर पर कट कर आने पर यह उत्सव मनाया जाता है। माघ के महीने में अधिक ठंड होने के कारण शरीर को अंदर से गर्म रखने के लिए चावल, तिल व गुड़ का सेवन किया जाता है। इसका आधार यह है कि जब ये फसलें घर पर आती हैं तो सूर्यदेव का धन्यवाद किया जाता है और प्रार्थना की जाती है, हे देव, पहले आप ग्रहण करें ताकि आप अपनी गर्मी से हमें उष्मा व बल देकर ताकत दे।


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