Makar Sankranti: नई शुरूआत का संदेश देता मकर संक्रांति का पर्व
punjabkesari.in Tuesday, Jan 14, 2025 - 07:33 AM (IST)
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Makar Sankranti 2025: प्रत्येक पर्व की अपनी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है। वह व्यक्ति और राष्ट्र के लिए कोई जीवनदायी सन्देश लेकर आता है। इसी प्रकार संक्रान्ति का पर्व हमें नीरस जीवन में रस, ओज, शान्ति का संदेश देता है। वैदिक संस्कृति का शाश्वत सन्देश है- ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात हम अन्धकार से प्रकाश की ओर बढ़ें। अपने जीवन में हम यदि उत्थान करना चाहते हैं तो आशावादी होना अत्यन्त आवश्यक है। मकर संक्रान्ति हमें आशावादी होना भली प्रकार सिखाती है। उदाहरण के लिए, मकर संक्रान्ति के अवसर पर शीत ऋतु अपने यौवन पर होती है। दिन की अब तक यह अवस्था थी कि सूर्यदेव उदय होते ही अस्तांचल के गमन की तैयारियां आरम्भ कर देते थे, मानों दिन रात्रि में लीन ही हुआ जाता हो। रात्रि अपनी देह बढ़ाती ही चली जाती थी। अब उसका भी अंत आया।
यह प्राकृतिक परिवर्तन हमें जीवन में आशावाद का पाठ पढ़ाता है, हमारे सोए हुए आत्मविश्वास को जगाता है और कहता है कि यदि हमारे जीवन में कुछ शैथिल्य, निरुत्साह आदि दोष आ गए हैं, हमारी दीन-हीन अवस्था सदैव रहने वाली नहीं, ‘जो बीती सो बीती लेकिन बाकी उम्र संभालू मैं’ ये भजन की पंक्ति इस पर्व के साथ विशेष जुड़ी हुई है। आइए, हम उठ खड़े हों और अपने जीवन में संक्रान्ति के साथ नई शुरूआत लाएं।
वास्तव में संक्रान्ति है क्या?
दरअसल इसे जानने के लिए हमें पृथ्वी चक्र का अध्ययन करना होगा। पृथ्वी चक्र दो प्रकार का होता है- एक सूर्य के चारों तरफ, इस चक्र को हम सौर वर्ष के नाम से जानते हैं। दूसरा पृथ्वी अपनी धुरी के चारों तरफ घूमती है, इसे क्रान्ति-वृत्त का नाम दिया गया है।
क्रान्ति वृत्त को 12 भागों में बांटा गया है। इन्हें आकाशीय पिण्डों के आधार पर नाम इस प्रकार दिए गए हैं- मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन। इन्हें राशियों का नाम दिया गया है। पृथ्वी का एक राशि से दूसरी राशि में गमन ही संक्रान्ति नाम से जाना जाता है। मकर संक्रांति का अर्थ ‘सूर्य का मकर राशि में जाना’ है।
सूर्य छ: महीने तक क्रान्ति-वृत्त से उत्तर की ओर उदय होता है तथा छ: माह तक दक्षिण की तरफ निकलता है। इन छ: मासिक अवधियों को उत्तरायण तथा दक्षिणायन नाम दिए गए हैं, क्योंकि उत्तरायण में प्रकाश काल अधिक तथा रात्रि काल छोटा होता है, इस कारण इसका विशेष महत्व है। जिस दिन उत्तरायण का आरम्भ होता है, उसे मकर संक्रान्ति का नाम दिया गया है।
प्राचीन काल से संबंध
महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चल कर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं, इसीलिए संक्रांति पर नहाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है।
दान का पर्व
इस पर्व का महत्व जहां वेद वचनामृत व यज्ञ-कार्य कर अपने शरीर को गर्म बनाए रखना है, वहां दान करना भी इसका एक महत्वपूर्ण पहलू है। तिल आदि चीजों का दान किया जाए ताकि जो निर्धन लोग इन चीजों का उपभोग करने में अपने आपको अक्षम समझते हैं, वे भी सर्दी में अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर सकें। इस दिन निर्धन लोगों को गर्म वस्त्र, जूते आदि भी दान करने की परम्परा है ताकि उनकी ठिठुरन पैदा करने वाली सर्दी से रक्षा की जा सके।
रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास
सूर्य की उत्तरायण गति व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक ऊर्जा को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है, जिसके कारण शरीर में सक्रियता आती है। इस मौसम में तिल और गुड़ जैसी उष्मा प्रदान करने वाली वस्तुओं का सेवन उत्तम रहता है। इनमें कई पोषक तत्व होते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। ये रक्त संचार को बेहतर बनाते हैं। तिल और गुड़ पाचन तंत्र को भी मजबूत बनाते हैं। तिल कैल्शियम और आयरन का प्रमुख स्रोत है, जबकि गुड़ खून को साफ करता है और शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है।
(‘वैदिक सार्वदेशिक’ से साभार)