Makar Sankranti 2026 Mantra: मकर संक्रांति 2026 के दिन करें इन मंत्रों का जाप, सूर्य देव की कृपा से चमकेगा आपका भविष्य
punjabkesari.in Friday, Dec 26, 2025 - 01:18 PM (IST)
Makar Sankranti 2026 Mantra : हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का पर्व केवल ऋतु परिवर्तन का प्रतीक नहीं, बल्कि नई ऊर्जा और सौभाग्य के आगमन का द्वार माना जाता है। साल 2026 की यह संक्रांति बेहद खास होने वाली है, क्योंकि इस दिन ग्रहों की स्थिति आपके भविष्य को एक नई दिशा दे सकती है। जब सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो ब्रह्मांड में सकारात्मकता का संचार होता है। माना जाता है कि इस पुण्यकाल में की गई पूजा और दान का फल अनंत गुना बढ़ जाता है। मकर संक्रांति पर कुछ विशेष मंत्रों का जाप करने से बंद किस्मत के ताले खुल सकते हैं। सूर्य देव की साक्षात कृपा पाने के लिए केवल जल अर्पित करना ही काफी नहीं, बल्कि सही मंत्रों का उच्चारण आपके आत्मविश्वास, करियर और स्वास्थ्य को चमका सकता है। तो आइए जानते हैं मकर संक्रांति के दिन कौन से मंत्रों का जाप करना चाहिए।
सूर्य मंत्र
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर ।।
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम ।
तमोsरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोsस्मि दिवाकरम ।।
ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च ।
हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।
ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात ।।
सूर्य अष्टोत्तर शतनामावली स्तोत्रम्
सूर्योsर्यमा भगस्त्वष्टा पूषार्क: सविता रवि: ।
गभस्तिमानज: कालो मृत्युर्धाता प्रभाकर: ।।
पृथिव्यापश्च तेजश्च खं वयुश्च परायणम ।
सोमो बृहस्पति: शुक्रो बुधोsड़्गारक एव च ।।
इन्द्रो विश्वस्वान दीप्तांशु: शुचि: शौरि: शनैश्चर: ।

ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च स्कन्दो वरुणो यम: ।।
वैद्युतो जाठरश्चाग्निरैन्धनस्तेजसां पति: ।
धर्मध्वजो वेदकर्ता वेदाड़्गो वेदवाहन: ।।
कृतं तत्र द्वापरश्च कलि: सर्वमलाश्रय: ।
कला काष्ठा मुहूर्ताश्च क्षपा यामस्तया क्षण: ।।
संवत्सरकरोsश्वत्थ: कालचक्रो विभावसु: ।
पुरुष: शाश्वतो योगी व्यक्ताव्यक्त: सनातन: ।।
कालाध्यक्ष: प्रजाध्यक्षो विश्वकर्मा तमोनुद: ।
वरुण सागरोsशुश्च जीमूतो जीवनोsरिहा ।।
भूताश्रयो भूतपति: सर्वलोकनमस्कृत: ।
स्रष्टा संवर्तको वह्रि सर्वलोकनमस्कृत: ।।
अनन्त कपिलो भानु: कामद: सर्वतो मुख: ।
जयो विशालो वरद: सर्वधातुनिषेचिता ।।
मन: सुपर्णो भूतादि: शीघ्रग: प्राणधारक: ।
धन्वन्तरिर्धूमकेतुरादिदेवोsअदिते: सुत: ।।
द्वादशात्मारविन्दाक्ष: पिता माता पितामह: ।
स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम ।।
देहकर्ता प्रशान्तात्मा विश्वात्मा विश्वतोमुख: ।
चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा मैत्रेय करुणान्वित: ।।
एतद वै कीर्तनीयस्य सूर्यस्यामिततेजस: ।
नामाष्टकशतकं चेदं प्रोक्तमेतत स्वयंभुवा ।।
नमः सूर्याय शान्ताय सर्वरोग निवारिणे आयुररोग्य मैस्वैर्यं देहि देवः जगत्पते ||
ॐ सप्त-तुरंगाय विद्महे सहस्र-किरणाय धीमहि तन्नो रविः प्रचोदयात् ।।

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