Madam Bhikaji Cama death anniversary: भीकाजी कामा जिन्होंने विदेशी धरती पर पहली बार फहराया तिरंगा
punjabkesari.in Sunday, Aug 13, 2023 - 09:50 AM (IST)
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Madam Bhikaji Cama: मैडम भीकाजी कामा का जन्म 24 सितम्बर, 1861 को बम्बई में धनी एक पारसी परिवार में हुआ था। भीकाजी के नौ भाई-बहन थे। वह शुरू से ही तीव्र बुद्धि वाली और संवेदनशील थीं। उनमें लोगों की मदद और सेवा करने की भावना बचपन से ही कूट-कूट कर भरी थी। इनका विवाह 1885 में एक पारसी समाज सुधारक रुस्तम जी कामा से हुआ। ये दोनों अधिवक्ता होने के साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। मैडम कामा अपने राष्ट्र के विचारों से प्रभावित थीं। उन्हें विश्वास था कि ब्रिटिश लोग भारत के साथ छल कर रहे हैं इसीलिए वह भारत की स्वतंत्रता के लिए सदा चिंतित रहती थीं।
धनी परिवार में जन्म लेने के बावजूद इस साहसी महिला ने आदर्श और दृढ़ संकल्प के बल पर निरापद तथा सुखी जीवन वाले वातावरण को तिलांजलि दे दी और शक्ति के चरमोत्कर्ष पर पहुंचे साम्राज्य के विरुद्ध क्रांतिकारी कार्यों से उपजे खतरों तथा कठिनाइयों का सामना किया। भारत की स्वाधीनता के लिए लड़ते हुए उन्होंने लंबी अवधि तक निर्वासित जीवन बिताया था। 1896 में मुम्बई में प्लेग फैलने के बाद भीकाजी ने तन-मन से मरीजों की सेवा की और वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गई थीं। 1902 में वह लंदन गई और वहां भी उन्होंने भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के लिए काम जारी रखा।
भीकाजी कामा 33 सालों तक भारत से बाहर रहीं। इस दौरान वह यूरोप के अलग-अलग देशों में घूमकर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के पक्ष में माहौल बनाती रहीं। लंदन में उनकी मुलाकात प्रसिद्ध क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा, हरदयाल और वीर सावरकर से हुई। लंदन में रहते हुए वह दादाभाई नौरोजी की निची सचिव भी थीं। वह अपने क्रांतिकारी विचार अपने समाचार पत्र ‘वंदे मातरम’ तथा ‘तलवार’ में प्रकट करती थीं। उनके सहयोगी उन्हें ‘भारतीय क्रांति की माता’ मानते थे। आजादी से 4 दशक पहले पहली दफा किसी विदेशी सरजमीं पर भारत का झंडा फहराया गया। 1907 में जर्मनी के शहर स्टुटगार्ट में इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस में भारत के लिए ब्रिटिश झंडा था। मैडम कामा को यह स्वीकार नहीं था। उन्होंने एक नया झंडा बनाया।
‘क्रांति की जननी’ की उपाधि से नवाजी गई भीकाजी कामा ने 22 अगस्त 1907 को हुई सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में पहली बार विदेशी धरती पर तिरंगा फहराया। ध्वज फहराते हुए भीकाजी कामा ने कहा कि ये भारत का ध्वज है जो भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। उनके तैयार किए गए ध्वज से काफी मिलते-जुलते डिजाइन को बाद में भारत के ध्वज के रूप में अपनाया गया। जीवन के आखिरी दिनों में 74 साल की उम्र में वह 1935 में वापस भारत लौटीं। मैडम कामा ने मुंबई के पारसी जनरल अस्पताल में 13 अगस्त 1936 को अपनी अंतिम सांस ली। चिर निद्रा में सोने से पहले उनके मुंह से निकलने वाले आखिरी शब्द ‘वंदे मातरम’ थे।