श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर रसपान करें सृष्टि के पालनहार की लीलाओं का

punjabkesari.in Sunday, Sep 03, 2023 - 01:26 PM (IST)

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Janmashtami 2023: भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अद्र्धरात्रि में पिता वासुदेव और माता देवकी के पुत्र के रूप में कंस के कारागृह में भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ। कारागार के द्वार स्वत: खुल गए। वासुदेव जी बाल कृष्ण भगवान को नंद भवन छोड़ आए और योगमाया रूपी कन्या को वहां से ले आए। जब कंस ने उस कन्या को शिला पर पटकना चाहा तो वह कन्या आकाश अष्टभुजा रूप में प्रकट हुई और कंस को यह कह कर अंतर्ध्यान हो गई कि उसे मारने वाला तो प्रकट हो चुका है।

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गोकुल की गलियों में आनंद व्याप्त हो गया और नंदरानी यशोदा की गोद धन्य हो गई। भगवान श्री कृष्ण ने अपनी बाल लीला में कंस द्वारा भेजे गए पूतना, शकटासुर, बकासुर, अघासुर का वध कर उनका उद्धार किया। कालिय नाग के मद का मर्दन कर उसके फन पर नृत्य किया और गोवर्धन को उंगली पर उठा कर ब्रज मंडल की इंद्र द्वारा बरसाए मेघकालीन वर्षा के जल से न केवल रक्षा की अपितु इंद्र का मान-मर्दन किया। अपने गुरु सान्दीपनि को गुरु दक्षिणा में उनका मृत पुत्र पुन: प्रदान किया। 

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महाभारत के वनपर्व में चिरंजीवी मार्कंडेय मुनि, युधिष्ठिर को भगवान श्री कृष्ण जी की परमैश्वर्यरूप विभूति का तत्व समझाते हुए कहते हैं कि एक बार जल प्रलय के समय जब समस्त पृथ्वी जल में डूब गई, तब समस्त चराचर जगत ब्रह्मा जी के सूक्ष्म शरीर में लीन हो गया। भगवान शिव के वरदान के प्रभाव से काल का मुझ पर प्रभाव न होने के कारण मैं जल में इधर-उधर घूमता रहा। जब मेरी इंद्रियां थकने लगीं तब मैंने सर्वत्र व्याप्त जल में एक विशाल वट वृक्ष देखा। वहां मैंने क्या देखा कि बाल मुकुंद भगवान उस वृक्ष पर लेटे हुए थे। तब उन्होंने मुझसे कहा कि मुनिवर! आप थक गए होंगे। आप मेरे उदर में विश्राम कर लें। तब भगवान बाल कृष्ण ने अपना मुख खोला तो मार्कंडेय मुनि भगवान के मुख में प्रवेश कर गए। समस्त ब्रह्मांड भगवान के उदर में स्थित है। ऐसा श्रुतियों तथा पुराणों का कथन है। 

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मार्कंडेय मुनि बताते हैं कि अनेक दिव्य वर्षों तक मैंने भगवान के उदर में विश्राम किया। जब मैं भगवान के उदर से बाहर आया तो भगवान बालमुकुंद ने अपना रहस्य बताते हुए कहा कि कल्प के अंत में जब ब्रह्मा प्रलयकाल में निद्रा में चले जाते हैं तब मैं सृष्टि का निरीक्षण करता हूं। उन्होंने कहा कि समस्त ब्रह्मांड मुझमें ही लीन है। तब मार्कंडेय ऋषि बोले भगवान गोविंद ही इस सृष्टि के पालन तथा संहार करने वाले सनातन प्रभु हैं। इनके वरदान स्वरूप ही मुझे पूर्व जन्मों का स्मरण बना रहता है। वास्तव में बाल रूप भगवान ही उनका परात्पर ब्रह्म स्वरूप हैं। 

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भगवान के अनंत प्रभाव की महिमा को तो केवल वे भक्त ही जानते हैं जिन पर भगवान स्वयं अनुग्रह करते हुए उनके अंत:करण में स्वयं स्थित होकर उनके अज्ञानजनित अंधकार को प्रकाशमय तत्वज्ञान रूपी दीपक द्वारा नष्ट कर देते हैं। जब-जब भगवान के भक्त कष्ट में होते हैं दुष्ट प्राणियों से जब यह संसार त्रस्त हो जाता है तब श्री हरिभगवान अपने भक्तों की रक्षा हेतु अवतार धारण करते हैं और अपने भक्तों का कल्याण कर उन्हें अपना निज धाम प्रदान करते हैं, जहां सूर्य और चंद्र का प्रकाश नहीं पहुंचता जिसे अग्नि प्रकाशित नहीं कर सकती।

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वह भगवान का परमधाम है। भगवान के जन्म और कर्म दिव्य हैं। इस प्रकार जो मनुष्य तत्व से जान लेता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता और वह भगवान को प्राप्त कर परमपद को प्राप्त कर लेता है, 
भगवान कहते हैं- 
‘‘वीतरागभय क्रोधा मन्मया मामुपाश्रिता:।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागता:।।’’

पूर्व समय में, जिन ज्ञानी पुरुष भक्तों के राग, भय और क्रोध सर्वथा नष्ट हो गए थे, ऐसे मेरे आश्रित रहने वाले बहुत से भक्त ज्ञान रूप तप से पवित्र होकर मेरे स्वरूप को प्राप्त हो चुके हैं। भगवान श्री कृष्ण जी की बाल लीलाएं अत्यंत मनोहारी हैं। जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक उनका पठन-पाठन व स्मरण करता है उसकी बुद्धि शुद्ध और निर्मल हो जाती है। वह पापमुक्त होकर भगवान श्री हरि जी की कृपा को प्राप्त कर उनका सान्निध्य प्राप्त कर लेता है। 

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Content Writer

Niyati Bhandari

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