Lathmar Holi 2020: बरसाना धाम में ऐसे हुई थी लट्ठमार होली की शुरुआत

punjabkesari.in Wednesday, Mar 04, 2020 - 10:18 AM (IST)

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हिंदू पंचांग के अनुसार 3 मार्च से होलाष्टक का पर्व शुरू हो चुका है और जिस दौरान कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है, किंतु वहीं होली का पर्व पूरे देश में बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। उत्तर भारत के वृंदावन, बरसाना में इसकी धूम अलग ही होती है। कल बरसाना धाम में लड्डुओं के साथ होली का पर्व मनाया गया था और आज लट्ठमार होली खेली जाएगी। बरसाना की लट्ठमार होली दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस होली में राधा और भगवान कृष्ण के प्रेम का रस होता है। राधाकृष्ण के प्रेम का प्रतीक यह त्योहार अपने आप में अद्भुत है। ब्रज की होली में समाज गायन विशेष स्थान रखता है, जिसमें होली गीत और पद गायन की अनूठी परंपरा है।
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बरसाने का लट्ठमार होली न सिर्फ देश में मशहूर है बल्कि पूरी दुनिया में भी काफी प्रसिद्ध है। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को बरसाने में लट्ठमार होली मनाई जाती है। नवमी के दिन यहां का नजारा देखने लायक होता है। यहां लोग रंगों, फूलों के अलावा डंडों से होली खेलने की परंपरा निभाते है। 
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लट्ठमार होली खेलने की शुरुआत भगवान कृष्ण और राधा के समय से हुई मान्यता है कि भगवान कृष्ण अपने सखाओं के साथ बरसाने होली खेलने पहुंच जाया करते थे। कृष्ण और उनके सखा यहां राधा और उनकी सखियों के साथ ठिठोली किया करते थे, जिस बात से रुष्ट होकर राधा और उनकी सभी सखियां ग्वालों पर डंडे बरसाया करती थीं। लाठियों के इस वार से बचने के लिए कृष्ण और उनके दोस्त ढालों और लाठी का प्रयोग करते थे। प्रेम के साथ होली खेलने का यह तरीका धीरे-धीरे परंपरा बन गया।
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इसी वजह से हर साल होली के दौरान बरसाना और वृंदावन में लट्ठमार होली खेली जाती है। पहले नंदगांव के लड़के या आदमी यानी ग्वाले कमर पर फेंटा लगाकर बरसाना की महिलाओं के साथ होली खेलने पहुंचते हैं। वहीं, अगले दिन यानी दशमी पर बरसाने के ग्वाले नंदगांव में होली खेलने पहुंचते हैं, यह होली बड़े ही प्यार के साथ बिना किसी को नुकसान पहुंचाए खेली जाती है। इसे देखने के लिए लोग बरसाना और वृंदावन पहुंचते है। लोग मानते हैं कि होली के दिन स्वयं कन्‍हैया और राधारानी भी बरसाने के इस रंग में रंगने आते हैं। यह होली बरसाना और वृंदावन के मंदिरों में भी खेली जाती है। लेकिन खास बात ये औरतें अपने गांवों के पुरुषों पर लाठियां नहीं बरसातीं हैं। वहीं, बाकी आसपास खड़े लोग बीच-बीच में रंग जरूर उड़ाते हैं।


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