Lala Jagat Naryan Story: यहां पढ़ें, पंजाब केसरी के संस्थापक जगत नारायण से लाला जगत नारायण बनने का सफर

punjabkesari.in Wednesday, May 15, 2024 - 06:45 AM (IST)

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Lala Jagat Naryan Story: लाला लाजपत राय बचपन से ही जगत नारायण के लिए एक आदर्श, एक अनुकरणीय नेता तथा आदर व श्रद्धा के केंद्र बिन्दू रहे। उनके बहुत से गुणों का प्रभाव जगत नारायण में देखा जा सकता है- उनके व्यक्तित्व में भी, उनके कृतित्व में भी। वे भी लाला लाजपत राय की तरह लाला जगत नारायण कहलाए। 

घर में लाजपत राय को बाबू जी के नाम से संबोधित किया जाता था। इसी प्रकार जगत नारायण को भी उनके पुत्र, पुत्रवधुएं, बाऊजी कह कर बुलाती थीं। दोनों ही शेर दिल इंसान थे, नर केसरी थे, पंजाब केसरी भी कहलाए। दोनों में ही राष्ट्र के प्रति सर्वस्व न्यौछावर कर देने का भाव था। 

दोनों ही लौह लेखनी के धनी थे। दोनों ही पत्रकारिता व मानवाधिकारों के सजग प्रहरी थे तथा दोनों ने राष्ट्र के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। 

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दोनों में अत्यंत समानताएं थीं-आर्य समाजी संस्कारों की, निडरता, निर्भीकता व स्पष्टवादिता की, विचारों की अडिगता की तथा लक्ष्य के प्रति समर्पण की। जगत नारायण से लाला जगत नारायण बनना, लाजपत राय जी का ही आशीर्वाद व कृपा थी। जगत नारायण ने अपने एक संस्मरण में लिखा है कि :

‘‘यद्यपि लाला लाजपत राय मुझे पुत्र की तरह प्यार करते थे, परन्तु मैंने सदा दास भाव से उनकी सेवा करने का प्रयास किया।’’

दोनों के आपसी संबंधों के बीच एक बार असहमति भी आ गई थी। एक रोचक घटना है। इस घटना का वर्णन ‘लाला लाजपत राय : और नजदीक से’ नामक पुस्तक में प्रकाशित जगत नारायण द्वारा लिखे लेख ‘लाला जी का वरद हस्त’ में इस प्रकार किया गया है:

‘‘अचानक एक दिन लाहौर सैंट्रल जेल में भूख हड़ताल हो गई। राजनीतिक कैदियों ने नेताओं के विरुद्ध जेहाद कर दिया। उन दिनों जेल में दो ही क्लासें थीं- ‘ए’ और ‘सी’। ‘सी’ क्लास में आम कैदी रहते थे तथा उन्हें बड़ा गंदा खाना मिलता था। ‘ए’ क्लास के कैदियों का खाना अलग बनता था तथा बिल्कुल घर के खाने की तरह होता था। मैं भी ‘ए’ क्लास में था। ‘सी’ क्लास के राजनीतिक कैदियों से काफी मेल-जोल होने के कारण मैं भी उनके आंदोलन में शामिल हो गया। मैं भी उनकी भूख हड़ताल में शामिल हो गया... जब लाला लाजपत राय को इसका पता चला तो उन्हें बहुत बुरा लगा तथा मुझे एक तरफ ले जाकर बहुत बुरा-भला कहा। मैंने उनके पांव छूकर कहा कि आप मुझे क्षमा कर दें। मैं भूख हड़ताल छोड़ दूंगा और आपका आदेश मानूंगा। इसके बाद शाम का खाना खाकर हम कोठरी में बंद हो गए। लाला जी की कोठरी को ताला नहीं लगाया जाता था।

मैं काफी देर तक उनकी नाराजगी के विषय में सोचता रहा और फिर गहरी नींद सो गया। रात को बारह बजे लाला जी ने मुझे आवाज दी, ‘जगत, जगत’। पर मेरी नींद नहीं खुली। तब लाला जी अपने कमरे से सोटी लाए और मुझे उससे जगाया। 

मैं घबरा कर उठा और लाला जी को देख कर घबरा गया कि शायद वह मुझे और कोसने आए हैं परन्तु लाला जी किसी और उद्देश्य से आए थे। 

जब मुझे कांपते देखा तो बोले - बेटा, घबराओ मत। मैं हैरान हूं कि इतनी बातें सुनने के बाद तुम इतनी गहरी नींद सो कैसे गए ? मैं तो सो नहीं सका क्योंकि मेरे दिल पर एक बहुत बड़ा बोझ था कि मैंने अकारण ही तुमसे अप्रसन्नता क्यों व्यक्त की ?

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जो बात वह कहने के लिए आए थे, वह उन्होंने मुझसे कही कि तुमने अपने साथियों के साथ ही हड़ताल पर कायम रहना है। उन्होंने कहा कि मेरी अप्रसन्नता पर तुमने कमजोरी नहीं दिखानी तथा हड़ताल नहीं छोड़नी। उन्होंने कहा कि कल को हम सब मिल कर यह फैसला कर देंगे कि चाहे कितना ही कष्ट क्यों न हो, हम सब ‘सी’ क्लास में खाना खाएंगे...।’’

लाला लाजपत राय अपने इन्हीं गुणों के कारण महामानव बने। यही प्रेरणा का स्रोत था जगत नारायण के लिए। एक घटना ने जगत नारायण को उनका अनन्य भक्त बना दिया।

इसी प्रकार जब जगत नारायण जेल में प्रतिबंध के बावजूद छिपा कर नेताओं के लिए अखबार लाते रंगे हाथों पकड़े गए तो उन्हें सैंट्रल जेल के दारोगा मियां खैरदीन ने कड़ी यातनाएं दीं। यहां तक कि उन्हें फांसी वाली कोठरी में डाल दिया और पांव में डंडा बेड़ी लगा दी तथा दो घंटों तक बाजू दर त में लगे हुए चक्रों से बांध दिए। 

जीवन में इतना शारीरिक कष्ट उन्होंने कभी नहीं भोगा था। लाला लाजपत राय को जैसे ही इस बारे में पता लगा उन्होंने तुरंत जेल सुपरिटेंडेंट
 को बड़ा कड़ा पत्र लिखा तथा दारोगा साहब को भी खरी-खरी सुनाई। 

लाला जी की इस कार्रवाई पर जगत नारायण को वापस हवालात में भेज दिया गया। जगत नारायण ने लिखा:
‘‘मैं जब वापस हवालात पहुंचा तो लाला जी ने सजल नेत्रों से मुझे छाती से लगा लिया। उनकी इस महानता ने मेरे दिल व दिमाग पर बड़ा असर किया।’’ 

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Content Editor

Prachi Sharma

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