क्यों श्री कृष्ण की बुआ ने उपहार में मांगा दुःख ?

punjabkesari.in Saturday, Jul 06, 2019 - 06:23 PM (IST)

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महाभारत के युद्ध खत्म होने के बाद एक ऐसी घड़ी आई है जो किसी को स्वीकार नहीं थी, वो घड़ी थी श्री कृष्ण के द्वारिका लौटने की। अपने आप से श्री कृष्ण को दूर होते देखना उनके लिए ऐसा था जैसे कोई उनके शरीर के किसी हिस्से का अलग होना। मगर इसे बदलना भी उनक बस में नहीं था। भारी मन से पांडव अपने परिवार के साथ भगवान कृष्ण को नगर की सीमा तक विदा करने आए। सब की आंखों में आंसू थे। कोई भी कृष्ण को जाने नहीं देना चाहता था। अभ भगवान एक-एक करके अपने सभी स्नेहीजनों से मिल रहे थे। सबसे मिलकर उन्हें कुछ न कुछ उपहार देकर कृष्ण ने विदा ली। अंत अपनी बुआ कुंती यानि पांडवों की माता से मिले।
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उन्होंने कुंती से कहा कि बुआ आपने आज तक अपने लिए मुझसे कुछ नहीं मांगा। आज तो मांग लीजिए। मैं आपको कुछ देना चाहता हूं। आंखों में आंसू लिए हुए कुंती कहा कि हे कृष्ण अगर कुछ देना ही चाहते हो तो मुझे दु:ख दे दो। मैं बहुत सारा दु:ख चाहती हूं। ये सुनकर कृष्ण आश्चर्य में पड़ गए।

लीलाधर भगवान श्री कृष्ण ने पूछा कि ऐसा क्यों बुआ, तुम्हें दु:ख क्यों चाहिए। तब कुंती ने उन्हें जवाब देते हुए कहा कि जब जीवन में दु:ख रहता है तो तुम्हारा स्मरण भी रहता है। हर क्षण तुम याद आते हो। सुख में तो यदा-कदा ही तुम्हारी याद आती है। तुम याद आओगे तो में तुम्हारी पूजा और प्रार्थना भी कर सकूंगी।

यह प्रसंग चाहे बहुत ही छोटा सा है लेकिन इसके पीछे संदेश बहुत गहरा है। ज़रूरत है उसे समझने के नज़रिए की। अक्सर इंसान परमात्मा को केवल दु:ख और परेशानी में ही याद करते हैं। जैसे ही सारी परिस्थितियां हमारे अनुकूल हो जाती हैं तो हम भगवान को और उनकी कृपा को भूल जाते हैं।
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इस प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में अगर प्रेम का संचार करना है तो उसमें प्रार्थना की उपस्थिति अनिवार्य है। अगर प्रेम में प्रार्थना का भाव शामिल हो जाए तो वह प्रेम अखंड और अजर हो जाता है।

चाहे हम प्रेम के किसी भी रिश्ते में बंधे हों, अगर हम वहां परमात्मा की प्रार्थना के बिना भावनाओं में प्रभाव उत्पन्न करना चाहेंगे तो ये संभव नहीं होगा। इसलिए कहा जाता है कि परमात्मा की प्रार्थना और अपने भीतर के प्रेम को एक कीजिए। जिस दिन ये एक हो जाएंगे उस दिन आप जीवन के हर रिश्ते में प्रेम की मधुर व महक को महसूस कर सकेंगे।


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Jyoti

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