प्रेम का अर्थ नहीं, मर्म जानो
punjabkesari.in Wednesday, May 20, 2020 - 05:40 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
प्रेम का अर्थ नहीं, उसके मर्म को जानो। इसी प्रकार धर्म के मर्म को समझो। दूसरे के हित में ही मेरा हित है, यह धर्म है। मैं केवल अपने हित के लिए प्रयास करूं और अन्य के हित को न देखूं यह तो स्वार्थ है। भौतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से जो कल्याण करे, वह धर्म है। भक्ति है, परमात्मा के प्रति प्रेम। परमात्मा से प्रेम का मतलब प्राणी मात्र से प्रेम।
ज्ञान हो जाने के बाद भी मिथ्या का त्याग न करना बहुत बड़ी मूर्खता है। एक ज्ञानी व्यक्ति और संसारी में यही फर्क है कि ज्ञानी मरते हुए भी हंसता है और संसारी मरते-मरते हुए जीता है। ज्ञान हमें हंसना नहीं सिखाता, बस रोने के कारणों को जीवन से मिटा देता है। इसी प्रकार अज्ञान रोने को मजबूत नहीं करता, बस हंसने के कारणों को मिटा देता है, ज्ञानी हर स्थिति में इसलिए प्रसन्न रहता है क्योंकि वह इस बात को जानता है।
वास्तव में राम राज्य लाना है तो इंसान के बीच सद्भावना व प्रेम के वातावरण का निर्माण करना पड़ेगा। उसकी शुरूआत स्वयं से करनी होगी। आज हर व्यक्ति वी.आई.पी. बनने का प्रयास कर रहा है। इस चक्कर में यह भूल रहा है कि महत्वपूर्ण बनना अच्छी बात है लेकिन अच्छा बनना अधिक महत्व की बात है। इस बात को नजर के सामने रखकर मनुष्य अपने जीवन को संवारे तो वह आनंद से भर जाएगा। जीवन में शांति की यात्रा का आरम्भ अगर प्रेम से होगा तो मंजिल जरूर मिलेगी। क्रोध का स्थान करुणा लेगी और लोभ का स्थान उदारता लेगी। इतना ही नहीं अगर इंसान दूसरे के लिए जीना सीख जाएगा तो फिर यह तय है कि उसे परमात्मा का कृपा प्रसाद मिलेगा।
आज के भौतिक वातावरण में स्थिति यह है कि संयुक्त परिवार, ज्वाइंट फैमिली की व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो रही है। पैसा कमाने की दौड़ में आज इंसान इस कदर फंस गया है कि उसका बालक कौन-सी क्लास में पढ़ता है, यह भी पता नहीं। प्रेम, परिवार और परमात्मा ये 3 शब्द समझो और क्रम में रखकर परमात्मा को ढंूढोगे तो बाहर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।