मानो या न मानो: रात को यहां रुकने वाला बन जाता है पत्थर
punjabkesari.in Monday, Nov 01, 2021 - 04:33 PM (IST)
Kiradu Temple Barmer Rajasthan India: राजस्थान की रेतीली धरती में कई राज दफन हैं। ये राज ऐसे हैं जिन्हें जानकर बड़े-बड़े सूरमाओं के पसीने छूट जाते हैं। कुलधारा गांव और भानगढ़ का किला ऐसे ही रहस्यमय स्थानों में से एक हैं जो भूतहा स्थान के रूप में पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। कुलधारा और भानगढ़ से अलग एक और रहस्यमय स्थान है किराडू यह राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित है। किराडू अपने मंदिरों की शिल्पकला के लिए विख्यात है। यहां के मंदिरों का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। किराडू को राजस्थान का खजुराहो भी कहा जाता है लेकिन किराडू को खजुराहो जैसी ख्याति नहीं मिल पाई क्योंकि यह जगह पिछले 900 सालों से वीरान है।
Where is Kiradu temple in Rajasthan: आज भी यहां पर दिन में कुछ चहल-पहल रहती है पर शाम होते ही यह जगह वीरान हो जाती है। सूर्यास्त के बाद यहां कोई भी नहीं रुकता है।
राजस्थान के इतिहासकारों के अनुसार किराडू शहर अपने समय में सुख-सुविधाओं से युक्त एक विकसित प्रदेश था, जहां दूसरे प्रदेशों के लोग व्यापार करने आते थे। किराडू के मंदिर के विषय में ऐसी मान्यता है कि यहां शाम ढलने के बाद जो भी रह जाता है वह या तो पत्थर का बन जाता है या मौत की नींद सो जाता है।
What is the curse in Rajasthan: आखिर ऐसा क्यों होता है, इसकी कोई पुख्ता जानकारी तो इतिहास में उपलब्ध नहीं है पर इसको लेकर एक कथा प्रचलित है, जो इस प्रकार है :
Kiradu Temple History: किराडू पर है एक साधु का श्राप
कहते हैं इस शहर को एक साधु का श्राप लगा हुआ है। करीब 900 साल पहले परमार राजवंश यहां राज करता था। उन दिनों इस शहर में एक ज्ञानी साधु भी रहने आए थे। इस मान्यता के पीछे एक अजब दास्तान है, जिसकी गवाह एक औरत की पत्थर की मूर्ति है जो किराडू से कुछ दूर सिहणी गांव में स्थित है।
वर्षों पहले किराडू में एक तपस्वी पधारे। इनके साथ शिष्यों की एक टोली थी। तपस्वी एक दिन शिष्यों को गांव में छोड़कर देशाटन के लिए चले गए। इस बीच शिष्यों का स्वास्थ्य खराब हो गया। गांव वालों ने इनकी कोई मदद नहीं की। तपस्वी जब वापस किराडू लौटे और अपने शिष्यों की दुर्दशा देखी तो गांव वालों को श्राप दे दिया कि जहां के लोगों के हृदय पाषाण के हैं वह इंसान बने रहने योग्य नहीं है इसलिए सब पत्थर के हो जाएं।
एक कुम्हारिन थी, जिसने शिष्यों की सहायता की थी। तपस्वी ने उस पर दया करते हुए कहा कि तुम गांव से चली जाओ वरना तुम भी पत्थर की बन जाओगी लेकिन याद रखना, जाते समय पीछे मुड़कर मत देखना। कुम्हारिन गांव से जाने लगी तो उसके मन में यह संदेह हुआ कि तपस्वी की बात सच भी है या नहीं, वह पीछे मुड़कर देखने लगी तो वह भी पत्थर की बन गई। सिहणी गांव में कुम्हारिन की पत्थर की मूर्ति आज भी उस घटना की याद दिलाती है।