Khidrane di dhab: 40 मुक्तों की शहादत ने खिदराने की ढाब को दिलाया ऐतिहासिक शहर का नाम

punjabkesari.in Sunday, Jan 12, 2025 - 08:38 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

 Khidrane di dhab: बीते समय के दौरान मुक्तसर से श्री मुक्तसर साहिब बने इस ऐतिहासिक शहर का नाम पहले खिदराना था और  इस जगह पर खिदराने की ढाब थी। यह क्षेत्र जंगली होने के कारण यहां अक्सर पानी की कमी रहती थी। जलस्तर बहुत अधिक नीचा होने के कारण यदि कोई प्रयत्न कर कुआं आदि लगाने की कोशिश भी करता तो पानी इतना खारा निकलता कि वह पीने के योग्य नहीं होता था।

इसलिए यहां एक ढाब खुदवाई गई थी जिसमें बारिश का पानी जमा किया जाता था और इस ढाब का मालिक खिदराना था जोकि फिरोजपुर जिले के जलालाबाद का निवासी था, जिस कारण इसका नाम खिदराने की ढाब पड़ा। इस जगह पर दशम पातशाह गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगल फौज के खिलाफ अपनी अंतिम जंग लड़ी, जिसे खिदराने की जंग कहा जाता है। गुरु जी व उनके 40 सिंह योद्धाओं, जो कभी बेदावा लिखकर दे गए थे, ने गुरु जी के साथ मिलकर खिदराने की ढाब पर मोर्चा लिया।

PunjabKesari Khidrane di dhab

खिदराने की ढाब सूखी थी। इसके इर्द-गिर्द झाड़ी उगी थी जिनमें छिपे सिंहों ने मुगल फौज पर एकदम से हमला किया। यह लड़ाई 29 दिसम्बर, 1705 विक्रमी को हुई। लड़ाई के दौरान सिख फौज की बहादुरी देखकर मुगल फौज जंग के मैदान से भाग गई। इस जंग में मुगल फौज के अधिकतर सिपाही मारे गए और गुरु जी के भी कई सिंह शहीद हो गए। यहीं पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने भाई महा सिंह जी, जोकि अपने साथियों समेत आनंदपुर साहिब में बेदावा देकर आए थे, उस बेदावे को फाड़कर बेदवाइए सिंहों को मुक्त किया और भाई महा सिंह को अपनी गोद में लेकर बेदावा फाड़ दिया। भाई महा सिंह जी ने इसी जगह पर शहीदी प्राप्त की। इस जंग में माता भाग कौर ने भी जौहर दिखाए और घायल हुईं जिनकी मरहम पट्टी गुरु जी ने अपने हाथों से की और तंदरुस्त होने उपरांत खालसा दल में शामिल कर लिया।

PunjabKesari Khidrane di dhab

ऐतिहासिक गुरुद्वारे

गुरुद्वारा टुट्टी गंढी साहिब: इस जगह पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने भाई महा सिंह को अपनी गोद में लेकर भाई महा सिंह व उनके साथियों की ओर से आनंदपुर में दिया बेदावा फाड़ कर उनकी गुरु के साथ टूटी हुई गांठी थी और इस गुरुद्वारा साहिब का नाम गुरुद्वारा टुट्टी गंढी साहिब है।

गुरुद्वारा तंबू साहिब: मुगलों से खिदराने की जंग में समय जिस जगह पर सिखों की ओर से तंबू लगाए गए थे। वहां गुरुद्वारा तंबू साहिब सुशोभित है।

गुरुद्वारा माता भाग कौर जी: खिदराने की जंग में जौहर दिखाने वाील महान सिंघनी माता भोगी की याद में गुरुद्वारा तंबू साहिब के साथ ही माता भाग कौर जी का गुरुद्वारा बनाया गया है।

PunjabKesari Khidrane di dhab

गुरुद्वारा शहीद गंज साहिब: इस जगह पर गुरु गोङ्क्षबद सिंह जी ने क्षेत्र के सिंहों की मदद से मुगलों से जंग करते हुए शहीद हुए 40 मुक्तों का अंतिम संस्कार किया था। जिस कारण इसका नाम गुरुद्वारा शहीद गंज साहिब प्रसिद्ध है।

गुरुद्वारा टिब्बी साहिब: इस जगह पर एक उची टिब्बी थी जिस पर बैठकर गुरु साहिब ने मुगलों क खिलाफ जंग लड़ी और इस जगह पर बैठकर ही गुरु मुगल फौज पर तीर चलाते रहे।

गुरुद्वारा रकाबसर साहिब:  यह वह स्थान है जहां दशमेश पिता के घोड़े की रकाब टूट गई थी। जब गुरु साहिब टिब्बी साहिब से उतरकर खिदराने की रणभूमि की ओर चलने लगे तो घोड़े की रकाब पर कदम रखते ही टूट गई थी। अब तक वह टूटी हुई रकाब उसी तरह ही संभालकर रखी है जहां गुरुद्वारा रकाबसर साहिब बना हुआ है।

PunjabKesari Khidrane di dhab

गुरुद्वारा दातनसर साहिब: 1706 ई. में जब गुरु जी खिदराने से टिब्बी साहिब पधारे तो सुबह इस जगह पर दातन की थी। यह स्थान गुरुद्वारा टुट्टी गंढी साहिब से करीब चार किलोमीटर दूरी पर है। इस जगह के साथ ही एक और घटना जुड़ी हुई है। इस गुरुद्वारा साहिब के साथ बाहरवार एक मुगल की कबर है जो सूबा सरहंद के आदेश पर भेस बदलकर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी को कत्ल करने के लिए आगे आया था। खिदराने से आगे टिब्बी साहिब के स्थान पर गालबान जंग के बाद अगले दिन जब गुरु जी कमरकसा खोलकर दातन करने लगे तो पीचे से उस मुगल ने गुरु पर तलवार चला दी। गुरु जी ने बहुत तीव्रता के साथ उसका परहार हाथ में पकड़े गड़वे से रोकर वही गड़वा उसके मुंह पर इतनी जोर से मारा कि वह मुगल वहीं पर ढेर हो गया। दातनसर के नजदीक जहां यह मुगल मारा गया था वहीं उसकी कबर बनी हुई है और दातनसर साहिब के दर्शन करने आई संगत इस कबर पर जुती मारती है।

गुरुद्वारा तरनतारन दुख निवारण साहिब: गुरुद्वारा तरनतारन दुख निवारण साहिब बङ्क्षठडाा रोड पर स्थित है। जहां हर रविवार को श्रद्धालु स्रोवर में स्नान करते हैं।

40 मुक्तों की इस पवित्र धरती पर माघी के शुभ अवसर पर दूरदराज से लाखों की संख्या में श्रद्धालु जहां बने पवित्र सरोवर में स्नान कर अपना जीवन सफल करते हैं। यह वह पावन स्थान है जहां गुरु जी की कृपया से बेदावा देकर आए सिंहों की भी टूटी गांठी गई थी आए इस पावन दिवस पर हम भी अरदास करें कि टूटी गांठने वालियां हमें भी गांठकर रखना।
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Prachi Sharma

Related News