Ramayan: आज भी जीवीत हैं श्रीराम भक्त विभीषण
punjabkesari.in Thursday, May 14, 2020 - 06:31 AM (IST)
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महर्षि विश्रवा को असुर कन्या कैकसी के संयोग से तीन पुत्र हुए- रावण, कुंभकर्ण और विभीषण। विभीषण विश्रवा के सबसे छोटे पुत्र थे। बचपन से ही इनकी धर्माचरण में अत्यधिक रुचि थी तथा ये भगवान के परम भक्त थे। तीनों भाईयों ने बहुत दिनों तक कठोर तपस्या करके श्रीब्रह्मा जी को प्रसन्न किया।
ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर तीनों भाइयों से वर मांगने के लिए कहा तो सबसे बड़े भाई रावण ने अपने महत्वाकांक्षी स्वभाव के अनुसार श्री ब्रह्मा जी से त्रैलोक्य विजयी होने का वरदान मांगा, उनसे छोटे कुंभकर्ण ने छ: महीने की नींद मांगी और सबसे छोटे विभीषण ने उनसे भगवद भक्ति की याचना की। तीनों भाइयों को यथायोग्य वरदान देकर श्रीब्रह्मा जी अपने लोक पधारे। तपस्या से लौटने के बाद रावण ने अपने सौतेले भाई कुबेर से सोने की लंकापुरी को छीन कर उसे अपनी राजधानी बना लिया और ब्रह्मा के वरदान के प्रभाव से त्रैलोक्य विजयी बना।
बह्मा जी की सृष्टि में जितने भी शरीरधारी प्राणी थे, वे सभी रावण के वश में हो गए और विभीषण भी रावण के साथ लंका में रहने लगे। रावण ने जब सीता जी का हरण किया, तब विभीषण ने पराई स्त्री के हरण को महापाप बताते हुए अपने बड़े भाई रावण को बारम्बार यह सलाह दी कि वह सीता जी को श्रीराम को लौटा दे परंतु रावण ने छोटे भाई की नेक सलाह पर कोई ध्यान न दिया।
बाद में जब सीता की खोज करते हुए जब अनन्य राम भक्त श्री हनुमान जी लंका में आए तो इधर-उधर विचरण करने के दौरान उन्होंने श्रीराम नाम से अंकित विभीषण का घर देखा जिसके चारों ओर तुलसी के वृक्ष लगे हुए थे। सूर्योदय से पहले का समय था, उसी समय श्रीराम नाम का स्मरण करते हुए विभीषण जी की निद्रा भंग हुई।
राक्षसों की नगरी में श्रीराम के इस भक्त को देखकर हनुमान जी को घोर आश्चर्य हुआ। दो रामभक्तों का परस्पर मिलन हुआ। श्री हनुमान जी का दर्शन करके विभीषण भाव विभोर हो गए। उन्हें ऐसा प्रतीत हआ कि श्रीराम के दूत के रूप में श्रीराम ने ही उनको दर्शन देकर कृतार्थ किया है।
श्री हनुमान जी ने उनसे सीता जी का पता पूछ कर अशोक वाटिका में माता सीता का दर्शन किए। रावण अपनी अशोक वाटिका के विध्वंस और अक्षय कुमार के वध के अपराध में हनुमान जी को प्राणदंड देना चाहता था परंतु उस समय विभीषण ने ही दूत को अवध्य बताकर रावण को सलाह दी कि वह हनुमान जी को कोई और दंड दे दे।
इस पर रावण ने यह कह कर हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया कि वानर को अपनी पूंछ बड़ी प्रिय होती है परंतु विभीषण के मंदिर को छोड़कर सम्पूर्ण लंका को ही जलकार रख कर दिया।
भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई कर दी। विभीषण ने पुन: सीता जी को श्री राम के पास लौटा कर युद्ध की विभीषिका को रोकने के लिए रावण से प्रार्थना की परंतु इस परामर्श को स्वीकार करने की बजाय उल्टे रावण ने विभीषण को लात मार कर निकाल दिया। जिसके बाद वह श्रीराम के शरणागत हो गए। युद्ध में रावण सपरिवार मारा गया। भगवान श्रीराम ने विभीषण को लंका का नरेश बनाया और अजर-अमर होने का वरदान दिया। विभीषण सप्त चिरंजीवियों में एक हैं और अभी तक इस धरती पर विद्यमान हैं।