Kashi Vishwanath corridor: विश्वनाथ मंदिर में बना कॉरिडोर, भविष्य में पैदा कर सकता है ये दोष !

punjabkesari.in Thursday, Feb 03, 2022 - 10:32 AM (IST)

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Kashi Vishwanath corridor: धर्म, आध्यात्म और कला की नगरी काशी स्थित विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हजार वर्षों से वाराणसी में स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्ट स्थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ है। इस शहर की पहचान घाटों और मंदिरों के नगर के रूप में भी होती है। मंदिर परिसर में ही कईं छोटे-छोटे मंदिर और भी है।

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वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन् 1780 में करवाया गया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1853 में 1000 कि.ग्रा शुद्ध सोने द्वारा बनवाया गया था। अब 2021 में गंगा नदी से काशी विश्वनाथ मंदिर को एक कॉरिडोर से जोड़ा गया है। मंदिर के आसपास तंग गलियों की जगह बेहद चौड़े गलियारे ने ले ली है। पहले 3000 वर्ग फुट में फैला काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर अब कॉरिडोर बनने के बाद से पांच लाख वर्ग फुट क्षेत्रफल वाला हो गया है। नव निर्मित विश्वनाथ कॉरिडोर के माध्यम से विश्वनाथ मंदिर और गंगा नदी अब सीधे जुड़ गई है।  

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गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित विश्वनाथ मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है। मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राण त्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। काशी स्थित विश्वनाथ मंदिर के प्रति भक्तों की इतनी आस्था के पीछे आखिर कौन से कारण हैं ? वास्तुशास्त्र के अनुसार केवल वही स्थान विशेष आस्था का केन्द्र बनता है, जिस स्थान की भौगोलिक स्थिति अत्यधिक वास्तुनुकूल होती है।  

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आइए देखते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर और उसके आस-पास के क्षेत्र में ऐसी कौन-सी भौगोलिक वास्तुनुकूल बताएं हैं जो श्रद्धालुओं को अपनी ओर सदियों से आकर्षित करती रही है।

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काशी विश्वनाथ मंदिर एक छोटी पहाड़ीनुमा स्थान पर बना है। गंगा नदी के तट से मंदिर लगभग 80 फीट की ऊंचाई लिए हुए है अर्थात मंदिर की पूर्व दिशा गंगा नदी के तट ढ़लान लिए हुए है। वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा में यदि नीचाई के साथ पानी का जमाव हो तो वह स्थान सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य से परिपूर्ण होता है। इसी वास्तुनुकूलता के कारण यह नगरी विश्व की प्राचीन नगरियों में गिनी जाती है।

मुख्य मंदिर की उत्तर दिशा में ज्ञानवापी कुआं है। उत्तर दिशा स्थित यह कुआं मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ाने में सहायक है।

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काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर की चारदीवारी में चारों दिशाओं में द्वार हैं। उत्तर, पश्चिम और दक्षिण दिशा के द्वार तो वास्तुनुकूल स्थान पर बने हैं। मंदिर परिसर की पूर्व दिशा स्थित द्वार पूर्व आग्नेय कोण की ओर बना है, जो कि द्वार के लिए वास्तुनुकूल स्थान नहीं है। वास्तुशास्त्र के अनुसार यहां द्वार होने पर विवाद और कलह की स्थिति बनती है।  

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मंदिर परिसर के विस्तारीकरण के बाद ललित घाट से लोग स्नान करके गलियारे से होते हुए मंदिर चौक की ओर आते हैं। इस मंदिर चौक का मुख्य द्वार भी पूर्व आग्नेय की ओर खिसका हुआ है। साथ ही इस चौक पर पूर्व आग्नेय का मार्ग प्रहार भी हो रहा है। वास्तुशास्त्र के अनुसार यहां द्वार होने पर तथा मार्ग प्रहार होने पर गम्भीर विवाद और कलह की स्थिति बनती है।

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मंदिर चौक का फर्श इस प्रकार से है कि चौक का पूर्व आग्नेय, पूर्व दिशा और पूर्व ईशान कोण ऊंचे हैं। यहां से सीढ़ियां उतर कर मंदिर परिसर की ओर जाया जाता है। जहां बाकी सभी दिशाएं नीची हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा की ओर ऊंचाई हो और पश्चिम दिशा नीची हो तो वहां आर्थिक समस्याएं रहती हैं।

विस्तारीकरण के दौरान हुए निर्माण कार्यों के वास्तु दोषों का प्रभाव निश्चित ही हमें भविष्य में देखने को मिलेगा।  

वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा
thenebula2001@gmail.com

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Content Writer

Niyati Bhandari

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