कंस वध के अवसर पर करें श्रीकृष्ण की लीलाओं का रसपान
punjabkesari.in Tuesday, Nov 24, 2020 - 06:02 AM (IST)

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‘‘सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पच्यादि हेतवे।तापत्रयविनाशाय श्री कृष्णाय वयं नुम:।।’’
श्रीमद् भागवत पुराण के इस प्रथम श्लोक में असंख्य ब्रह्मांडों के रचयिता परब्रह्म परमात्मा भगवान श्री कृष्ण जी की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि वह सच्चिदानंद स्वरूप हैं, इस समस्त विश्व की उत्पत्ति के हेतु हैं। तीनों प्रकार के तापों का विनाश करने वाले हैं, उन समस्त ब्रह्मांडों के एकमात्र ईश्वर परमात्मा श्री कृष्ण जी को हम सब नमस्कार करते हैं। वह परिपूर्णतम ब्रह्म अपने भक्तों के कल्याण के लिए सर्वत्र व्याप्त होते हुए अजन्मा और अविनाशी स्वरूप होते हुए भी अपनी प्रकृति को अधीन करके अपनी योगमाया से प्रकट होते हैं।
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र में आनंदकंद भगवान ने मथुरा में कंस की कारागार में पिता वासुदेव तथा माता देवकी के यहां अपने बाल रूप को प्रकट किया। भगवान के आदेश से ही उसी रात्रि वसुदेव जी बालकृष्ण भगवान को गोकुल में यशोदा मैया के पास छोड़ आए।
उस समय सम्पूर्ण मथुरा राज्य कंस के अत्याचारों से त्रस्त था। पूतना, तृगवर्त, बकासुर, अधासुर जैसे बलशाली असुरों का भगवान श्री कृष्ण ने अपने बाल्यकाल में ही वध कर ब्रज वासियों को भयमुक्त किया तथा कालिया जैसे विषैले नाग का दमन कर यमुना को विषमुक्त किया।
देवराज इंद्र ने प्रलयंकारी मेघों द्वारा जब नंदगांव को जलमग्न कर दिया तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा कर गोकुलवासियों की रक्षा की। तब इंद्र ने अपनी भूल की क्षमा याचना की। सांदीपनी ऋषि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करते हुए गोविंद भगवान ने गुरु दक्षिणा के रूप में अपने गुरु के मृत्यु को प्राप्त हुए पुत्र को जीवित कर उन्हें लौटा दिया।
श्रीमद् भागवत महापुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, महाभारत इत्यादि अनेक पुराणों तथा धर्मग्रंथों में भगवान श्री कृष्ण की दिव्य लीलाओं का वर्णन हमें प्राप्त होता है। इस संबंध में भगवान स्वयं श्री गीता जी में कहते हैं : जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वत:।त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेङ्क्षत सोऽर्जुन।।
हे अर्जुन! मेरे जन्म और कर्म दिव्य अर्थात निर्मल तथा आलौकिक हैं।
इस प्रकार जो मनुष्य तत्व से जान लेता है, वह शरीर को त्याग कर फिर पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होता किन्तु मुझे ही प्राप्त होता है। सर्वशक्तिमान सच्चिदानंद धन परमात्मा सर्वभूतों के परमगति तथा परम आश्रय हैं। वह केवल धर्म की स्थापना करने के लिए तथा साधु पुरुषों के उद्धार के लिए अपनी योगमाया से सगुण रूप होकर प्रकट होते हैं।
इस प्रकार भगवान को जानना ही उन्हें तत्व से जानना है। इस ज्ञान रूप तप से पवित्र होकर बहुत से भक्त, राग-भय और क्रोध से मुक्त होकर भगवान के दिव्य स्वरूप को प्राप्त हो चुके हैं। उन भक्तों का वर्णन ही हमें पुराण आदि ग्रंथों में प्राप्त होता है, जिनको पढऩे से मनुष्यों के न केवल मन और बुद्धि शुद्ध होते हैं, अपितु वे कर्मबंधन से मुक्त होकर भगवान का परमधाम प्राप्त कर लेते हैं।
महाभारत के युद्ध में कर्तव्य मार्ग से विमुख हुए अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण ने समस्त वेद, उपनिषदों से सारगर्भित ज्ञान को श्रीमद् भागवत गीता के रूप में प्रदान किया और अर्जुन को अपने विश्वरूप परमात्मा के रूप में दर्शन कराए। आदि अंत से रहित, अनादि धर्म के रक्षक, सनातन पुरुष भगवान के उस दिव्य विश्वरूप में अर्जुन ने, सभी लोक, रुद्र, आदित्य, वसु, साध्यगण, विश्वेदेव, अश्विनी कुमार, मरुद्गण, पितरों के समुदाय, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, कमल के आसन पर विराजित ब्रह्मा, महादेव जी, सम्पूर्ण ऋषियों को देखा।भगवान ने अर्जुन को धर्ममय उपदेश देते हुए कहा कि मनुष्य आसक्ति से रहित होकर कर्तव्य कर्मों को करता हुआ परमात्मा को प्राप्त कर लेता है।
श्रेष्ठ पुरुष का श्रेष्ठ आचरण ही समस्त मानव जाति के लिए प्रेरणा होता है जो पुरुष न किसी से द्वेष करता है और न ही किसी की आकांक्षा करता है, वह कर्मयोगी, सदा संन्यासी ही समझने योग्य है। ‘‘योग: कर्मसु कौशलम्।’’
समत्वरूप योग ही कर्मों में कुशलता है जिसको संन्यास कहते हैं, उसी को योग जान। किसी भी शरीरधारी, मनुष्य द्वारा सम्पूर्णता से सब कर्मों का त्याग किया जाना संभव नहीं है, इसलिए जो कर्मफल का त्यागी है, वही त्यागी है।
भगवान श्री कृष्ण जी के दिव्य उपदेश आज सम्पूर्ण प्राणीमात्र के लिए संजीवनी का कार्य कर रहे हैं। भगवान ने श्री गीता जी के माध्यम से अंधकार में भटक रहे मनुष्यों को गीता ज्ञान रूपी प्रकाश प्रदान किया। भगवान गोविंद अपने भक्तों को यह संदेश देते हुए कहते हैं- जो मनुष्य उनको अजन्मा, अनादि तथा सम्पूर्ण लोकों के एकमात्र ईश्वर, इस प्रकार तत्व से जान लेता है, वह ज्ञानवान पुरुष सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। ब्रह्म संहिता में लिखा है : ईश्वर: परम: कृष्ण: सच्चिदानंद विग्रह:।अनादिरादि गोविंद : सर्व कारण कारणम्।
श्री कृष्ण परम ईश्वर तथा सच्चिदानंद हैं, वह आदि पुरुष गोविंद समस्त कारणों के कारण हैं।