आज है देवताओं के कोतवाल श्री भैरवनाथ का जन्म उत्सव, दुष्ट ग्रहों से बचने के लिए करें उपाय और पढ़ें कथा

punjabkesari.in Tuesday, Dec 05, 2023 - 10:07 AM (IST)

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Kaal Bhairav Jayanti: भगवान विष्णु के अंश भगवान शिव के पांचवें स्वरूप श्री भैरवनाथ को शास्त्रों में महाकाल कहा गया है। भगवान भोले नाथ भंडारी के दो रूप हैं : भक्तों को अभयदान देने वाला विश्वेश्वर स्वरूप और दूसरा दुष्टों को दंड देने वाला भैरव स्वरूप। सृष्टि की रचना, पालन तथा संहार करने वाले ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश हैं। जहां शिव जी का विश्वेश्वर स्वरूप अत्यंत सौम्य, शांत, अभयदान देने वाला है, वहीं भैरव स्वरूप अत्यंत रौद्र, विकराल प्रचंड है। इनकी उपासना से सभी प्रकार की दैहिक, दैविक, मानसिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है।

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धार्मिक मान्यता है कि शिव जी की पूजा से पूर्व काल भैरव की पूजा होती है। ऐसा वरदान शिव जी ने काल भैरव को दे रखा है। इन्हें उग्र देवता माना जाता है, मगर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। इन्हें ‘देवताओं के कोतवाल’ भी माना जाता है। यह अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करने तुरंत पहुंच जाते हैं। 

Kaal Bhairav Jayanti 2023 Upay: श्री काल भैरव अत्यंत कृपालु एवं भक्त वत्सल देवता हैं। शिव पुराण की शतरुद्र संहिता के अनुसार, शिव जी ने मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरवनाथ अवतार लिया था, इसलिए  काल भैरव अष्टमी के दिन भगवान शंकर की भैरव रूप में पूजा करने की प्रथा आरंभ हुई। इस दिन व्रत रख कर जल, अर्घ्य, पुष्प तेल से बने मिष्ठान्न इत्यादि से भैरव बाबा की पूजा का विधान है। व्रत रखने वाले के लिए रात्रि में जागरण कर शिव-पार्वती जी कथा एवं श्रवण आवश्यक है।

दंडपति बाबा भैरव का वाहन कुत्ता है। इनका मुख्य शस्त्र दंड है, इसीलिए शिव जी के इस स्वरूप को दंडपति औघड़ बाबा भैरव भी कहा जाता है। भैरव बाबा का दिन रविवार अथवा मंगलवार माना जाता है। इस साल भैरव बाबा का दिन मंगलवार 5 दिसम्बर को पड़ रहा है, जो श्रेष्ठ है। इन दोनों दिनों में औघड़ बाबा भैरव की पूजा-अर्चना करने से भूत-प्रेत इत्यादि अन्य प्रकार की त्रासदी से मुक्ति मिलती है। इस दिन उड़द की दाल की पीठी के भल्ले (वड़े) सरसों के तेल में तल कर उन्हें दही में डुबो कर उनके ऊपर केसरी सिंदूर लगा कर भैरव जी के मंदिर में अथवा पीपल के नीचे रखकर प्रार्थना करनी चाहिए। इससे दंडपति औघड़ बाबा भैरव की कृपा अवश्य प्राप्त होती है तथा दुष्ट ग्रहों राहू एवं शनि का शमन होता है।

भैरव अष्टमी के दिन भैरव मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करते समय ‘ॐ भैरवाय नम्:’ कहते हुए उनका जाप करना कल्याणकारी होता है। इससे घर-परिवार में सुख-शांति आती है। 

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इनके वाहन कुत्ते को जलेबी अथवा गुड़ एवं आटे से बने मीठे गुलगुले अथवा मीठी रोटी डालने से बाबा भैरव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। साधारण दिनों में भी राहू ग्रह की क्रूरता शांति के लिए यह दान शनिवार करने से हर प्रकार की शांति मिलती है। 

Kaal Bhairav Katha: भैरव बाबा की कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी एवं विष्णु जी में यह विवाद छिड़ गया कि विश्व का परम तत्व कौन है। इस समस्या के समाधान के लिए  एक महासभा का आयोजन किया गया। महर्षियों ने निर्णय लिया कि परम तत्व कोई अव्यक्त सत्ता है और विष्णु तथा ब्रह्मा उसी से बने हैं। सभी ने निर्णय को मान लिया परंतु ब्रह्मा जी ने अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह स्वयं को परम तत्व मानते थे। 

परम तत्व की अवज्ञा अथवा महर्षियों के निर्णय की अवहेलना बहुत बड़ा अपमान था। तब शिव जी ने औघड़ बाबा भैरव का रूप धारण कर ब्रह्मा जी के अहं को चूर-चूर कर दिया। यह घटना मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष को हुई इसीलिए उस दिन दंडपति औघड़ बाबा भैरव अष्टमी मनाई जाती है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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