Jewish community of Delhi: अपनी परंपराओं को आज भी सहेजे है दिल्ली का यहूदी समुदाय
punjabkesari.in Sunday, Jul 02, 2023 - 10:17 AM (IST)

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History of the Jews in India: दिल्ली में 10 से भी कम परिवारों वाला एक छोटा यहूदी समुदाय बसा हुआ है। इनके धार्मिक गुरु इजिकेल आइजेक मालेकर समुदाय के लोगों को एक साथ लाने और यहूदी परंपराओं को संरक्षित करने का काम कर रहे हैं।
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कौन हैं भारत के यहूदी?
भारत के यहूदी समुदाय को मुख्य तौर पर पश्चिमी भारत के बेने इसराईली, पश्चिम बंगाल के बगदादी यहूदी और केरल के कोचीन यहूदी के तौर पर विभाजित किया जा सकता है। इसके अलावा, पूर्वोत्तर भारत के बेनेई मेनाशे यहूदी और आंध्र प्रदेश के बेने एफ्रैम भी यहूदी ही हैं।
बेने एफ्रैम को तेलुगु यहूदी भी कहा जाता है क्योंकि ये लोग तेलुगु भाषा बोलते हैं। वहीं, भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर और मिजोरम में रहने वाले बेनेई मेनाशे समुदाय के लोगों का मानना है कि उनके पूर्वज इसराईल के हैं।
भारत के समाज और संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान
मालेकर ने कहा, ‘‘भारत में रहने वाले यहूदी समुदाय के लोग पूरी तरह स्थानीय संस्कृति, रीति-रिवाजों, परंपराओं, पहनावे और भाषा को अपना चुके हैं। वे अक्सर अपने कस्बों और गांव के नाम के हिसाब से उपनाम का चुनाव करते हैं।’’
1940 के दशक में भारत में यहूदियों की आबादी करीब 50 हजार थी, लेकिन बाद के वर्षों में कई यहूदी इसराईल, ब्रिटेन, अमरीका, कनाडा और अन्य देशों में चले गए। अनुमान के मुताबिक, भारत में अब सिर्फ 6,000 यहूदी रह रहे हैं।
हालांकि, एक छोटा समुदाय होने के बावजूद भारत के समाज और संस्कृति को बेहतर बनाने में यहूदियों का महत्वपूर्ण योगदान है। 1800 के दशक में यहूदी समुदाय के डेविड सैसून एक जाने-माने कारोबारी और समाजसेवी थे। वहीं, 1924 में जन्मे जे.एफ.आर. जैकब ने भारतीय सेना में शामिल होकर देश की सेवा की और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
यहूदी परंपराओं को बचाए रखने की कोशिश
नई दिल्ली में यहूदी समुदाय के परिवारों में से ज्यादातर राजनयिक और अन्य देशों के प्रवासी हैं। साथ ही, कुछ भारतीय यहूदी भी हैं। यहां उनका एकमात्र प्रार्थना स्थल जुडा हायम सिनेगॉग है, जिसकी स्थापना 1950 के दशक में की गई थी। इसका संचालन मालेकर करते हैं। मालेकर मूल रूप से महाराष्ट्र के पुणे शहर के हैं, जो फिलहाल दिल्ली में रह रहे हैं।
सरकारी सेवा में आने की वजह से वह पुणे से दिल्ली पहुंचे थे। 1980 के दशक से मालेकर नि:स्वार्थ भाव से इस सिनेगॉग की देखभाल और रखरखाव कर रहे हैं। इस सिनेगॉग के बगल में ही एक यहूदी कब्रिस्तान भी मौजूद है। साथ ही, एक पुस्तकालय भी है, जहां हिब्रू भाषा की कक्षाएं संचालित होती हैं।
मालेकर ने अपनी परंपराओं को सहेजते हुए आधुनिक समाज के साथ तालमेल बैठाने की कोशिश की है। उनकी यह कोशिश काफी हद तक कामयाब होती भी दिख रही है। उन्होंने अब तक 15 जोड़ों की अंतर-धार्मिक शादी कराई है। उनका कहना है कि वह किसी को भी अपने पति या पत्नी के लिए धर्म बदलने को नहीं कहते।
दिल में इसराईल, रगों में भारत
वह कहते हैं, ‘‘तोरा (पवित्र ग्रंथ) पढ़ने के लिए आपको 10 पुरुषों की जरूरत होती है, लेकिन मैंने इस परंपरा से पूरी तरह परहेज किया। हालांकि, जो लोग इसमें शामिल होना चाहते हैं, मैं उन्हें इसकी अनुमति देता हूं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कौन हैं। समय के मुताबिक, हमें अपना नजरिया बदलना चाहिए। यह बात न सिर्फ यहूदी धर्म, बल्कि सभी धर्मों पर लागू होती है।’’
प्रसिद्ध ओडिसी नृत्यांगना शेरोन लोवेन भी नई दिल्ली में रहने वाले यहूदी समुदाय का हिस्सा हैं। वह मूल रूप से अमरीकी नागरिक हैं, लेकिन कई वर्षों से दिल्ली में रह रही हैं।
वह कहती हैं, ‘‘करीब एक सदी पहले मेरे दादा जी और उनके परिवार पूर्वी यूरोप से जान बचाकर प्रवासी के तौर पर अमरीका पहुंचे थे। मैं करीब 50 वर्षों से भारत में हूं। यह खुशी की बात है कि यहूदी समुदाय के लोग लंबे समय से यहां रह रहे हैं और उन्हें पूरी तरह धार्मिक स्वतंत्रता मिली हुई है। यहां तक कि 1930 और 40 के दशक में यूरोप से जान बचाकर भागे यहूदियों को भी भारत में सुरक्षित आश्रय मिला।’’
वह आगे कहती हैं, ‘‘स्वाभाविक तौर पर ज्यादातर भारतीय पश्चिमी देशों के लोगों को ईसाई मानते हैं, लेकिन मैंने स्पष्ट कर दिया है कि मैं यहूदी हूं, ईसाई नहीं।’’
वहीं, मालेकर के परिवार के कई सदस्य इसराईल, ऑस्ट्रेलिया, और कनाडा चले गए लेकिन वह अपनी मातृभूमि से दूर नहीं जाना चाहते। वह कहते हैं, ‘‘इसराईल मेरे दिल में है, लेकिन मेरी रगों में भारतीय खून दौड़ता है।’’