Success mantra: लाइफ में अपनी राह खुद बनाएं और हो जाएं मशहूर

punjabkesari.in Sunday, Jan 08, 2023 - 07:18 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Ishwar Chandra Vidyasagar story: ईश्वरचंद्र के पिता को तीन रुपए मासिक वेतन मिलता था। परिवार बड़ा होने से तीन रुपए में गुजारा ही मुश्किल से होता था, ऐसी स्थिति में बालक ईश्वरचंद्र की पढ़ाई का प्रबंध कैसे हो ? पुत्र की पढ़ने की उमंग और अपनी विवशता देखकर पिता का हृदय भर जाता था। पिता की विवशता देखकर पढ़ाई के लिए ईश्वरचंद्र ने रास्ता निकाल ही लिया। उसने गांव के उन लड़कों को मित्र बनाया जो पढ़ने जाते थे। उनकी पुस्तकों के सहारे उसने अक्षर ज्ञान कर लिया। एक दिन कोयले से जमीन पर लिखकर अपने पिता को दिखलाया।

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

ईश्वरचंद्र की विद्या के प्रति लगन देखकर पिता ने तंगी का जीवन जीते हुए भी उसे गांव की पाठशाला में भर्ती करा दिया। स्कूल की सभी परीक्षाएं ईश्वर ने प्रथम श्रेणी में पास कीं। आगे की पढ़ाई प्रारंभ करने में आर्थिक विवशता आड़े आ रही थी। ईश्वरचंद्र ने स्वयं अपनी राह बनाई और आगे पढ़ने के लिए माता-पिता से केवल आशीर्वाद भर मांगा। उसने कहा, ‘‘आप मुझे किसी विद्यालय में भर्ती भर करा दें। फिर मैं आपसे किसी प्रकार का खर्चा नहीं मांगूंगा।

इसके बाद पिता ने ईश्वरचंद्र को कोलकाता के एक संस्कृत विद्यालय में भर्ती करा दिया। विद्यालय में ईश्वरचंद्र ने प्रतिभा, सेवा और परिश्रम के बल पर शिक्षकों को प्रसन्न कर लिया। उसकी फीस माफ हो गई।

 पुस्तकों के लिए उसने अपने साथियों को सांझीदार बना लिया और पढ़ाई से बचे समय में मजदूरी कर गुजारे का प्रबंध किया। इस अभावग्रस्तता में ईश्वरचंद्र ने इतना परिश्रम किया कि उन्नीस वर्ष की आयु में पहुंचते-पहुंचते उसने व्याकरण, साहित्य, स्मृति तथा वेदशास्त्र में निपुणता प्राप्त कर ली। यही युवक आगे चलकर ‘ईश्वरचंद्र विद्यासागर’ के नाम से विख्यात हुआ।

PunjabKesari kundli


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Recommended News

Related News