International Day of Older Persons: आज पूरे विश्व में मनाया जाएगा अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस

punjabkesari.in Sunday, Oct 01, 2023 - 09:24 AM (IST)

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International Day of Older Persons: 1 अक्टूबर वृद्ध लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने का समय है जो हमें सोचने पर मजबूर करता है कि यह दिन वास्तव में क्या बताता है ? यह किसको संदर्भित करता है ? क्या यह केवल हमारे दादा-दादी के लिए है या इसमें हमारे सभी वृद्ध चाचा-चाची, पड़ोसी, परिचित, यहां तक कि किराना दुकानदार, दैनिक दूध विक्रेता और पारिवारिक चिकित्सक भी शामिल हैं ?

सीधे शब्दों में कहें तो हमारे निकटतम और विस्तारित दायरे में कोई भी और हर कोई जीवन के उस ग्लैमर रहित और नापसंद चरण की ओर बढ़ रहा है, जिसे ‘बुढ़ापा’ कहा जाता है। संभवत: यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में नामित किया है। शोध से पता चला है कि देश की 20-30 प्रतिशत आबादी वृद्धों की है।

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जब हम ‘वृद्ध’ कहते हैं तो पहली तस्वीर जो दिमाग में आती है, वह बूढ़े, अशक्त लोगों का एक समूह है, जो आग सेंक रहे हों, या शायद मंदिर में भजन गा रहे हों लेकिन क्या हमारे सभी वरिष्ठ नागरिक ऐसा करने में सक्षम हैं ?

आइए हम अपने दिलों की गहराई से जांच करें और उन सभी आलसी दोपहरों के बारे में सोचें, जो हमने दादी की गोद में अपना सिर रखकर आराम करते हुए परियों की कहानियां और लोरी सुनते हुए बिताई थीं। हमें अभी भी वे कुरकुरे, पकौड़े याद हैं जो दादी ने सर्दी की ठिठुरती ठंड के बावजूद विशेष रूप से हमारे लिए बनाए थे। संयुक्त परिवार प्रणाली टूटने के कारण हममें से अधिकांश के लिए, ये क्षण अब यादें बन गए हैं। इसमें पोते-पोतियों का बेहतर अवसरों के लिए विदेशों की ओर प्रस्थान करना भी शामिल है। जो लोग यहीं रुकने का विकल्प चुनते हैं, वे अपनी पढ़ाई, कोचिंग तथा शौक कक्षाओं और सामाजिक व डिजीटल व्यस्तताओं में बहुत व्यस्त रहते हैं। इस परिवर्तित जनसांख्यिकी का मिश्रित परिणाम यह है कि अब हम अपने बुजुर्ग रिश्तेदारों को अपने जीवन का अभिन्न अंग नहीं मानते।

सफलता की ओर अपनी बेताब दौड़ में, ऐसा लगता है कि हमने उन्हें कहीं पीछे छोड़ दिया है। उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए हमारे पास न तो समय है और न ही रुचि। उनका समर्थन करना हमारी जेब पर और उनकी छोटी-मोटी, रोजमर्रा की समस्याओं का समाधान करना हमारे धैर्य पर भारी पड़ता है। इन विकासों का प्रत्यक्ष और अपरिहार्य परिणाम पूरे देश में विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या है। उनमें से कुछ पांच सितारा सुविधाओं और अत्यधिक किराए का दावा करते हैं लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उनमें से एक भी खाली नहीं है।

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क्या अब समय नहीं आ गया कि हम अपने बुजुर्गों की गरिमा, बुद्धिमत्ता और उत्पादकता को पहचानें और उनका सम्मान करें ? उन्हें कोई विलासिता नहीं, कोई फैंसी उपहार नहीं बस हमारा थोड़ा सा समय और ध्यान चाहिए। वे अभी भी बहुत कुछ कर सकते हैं उन्हें बस एक मौके की जरूरत है। उनका मार्गदर्शन और अनुभव हमारी आगे की सामूहिक यात्रा में अमूल्य साबित हो सकता है। उनका सबसे बड़ा दुश्मन उनकी अंतिम आयु, कमजोर शरीर या घटती वित्तीय स्थिति नहीं है, सर्वव्यापी अकेलापन और खालीपन है जिसे केवल वास्तविक देखभाल से ही भरा जा सकता है। स्वस्थ और जैविक उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित और सुनिश्चित करने में पूरे मानव समुदाय की हिस्सेदारी है। हम सभी को देर-सवेर इस सांझ का अनुभव करना तय है। तो क्यों न इसे उन लोगों के लिए और अधिक समृद्ध तथा संतुष्टिदायक बनाया जाए, जो पहले ही इसे पार कर चुके हैं ?

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व्यापक परिप्रेक्ष्य में, समुदाय के रजत सदस्यों को किफायती स्वास्थ्य देखभाल, सुरक्षा, वित्तीय सहायता और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना सरकार, विभिन्न सामाजिक एजेंसियों और गैर-सरकारी संगठनों पर निर्भर है लेकिन अपने विनम्र तरीके से हम भी इस संक्रमणकालीन प्रक्रिया में योगदान दे सकते हैं।
शुरुआत के लिए आइए हम उन्हें पत्र लिखें (हां, वे पत्र लेखन युग के हैं, उन्हें यह पसंद आएगा)। वैकल्पिक रूप से, आइए हम उनसे फोन पर बात करें, उनके लिए अपने सामान्य अस्तित्व के छोटे-छोटे रोमांचक अंश साझा करने से बढ़कर कोई खुशी नहीं है। उनसे नियमित मुलाकात हमारी प्राथमिकता रहनी चाहिए।

हमारी आवाजें सुनना, हमारे पत्र पढ़ना हमसे व्यक्तिगत रूप से मिलना, उनके जीवन में कुछ उत्साह जोड़ देगा। आइए हम उन्हें आश्वस्त करें कि हम हर कदम पर, हर समय, उनकी सभी जरूरतों के लिए उनके साथ हैं। आइए, हम बुजुर्ग दिवस को शुद्ध विवेक और प्रसन्न मन से मनाएं।    
 


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Content Writer

Niyati Bhandari

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