मानो या न मानो- जो झुकता है, वही ऊंचा उठता है
punjabkesari.in Monday, Jun 16, 2025 - 06:00 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Inspirational Context- वर्तमान में किसी को भी कुछ कहने या समझाने का समय नहीं रहा । वे दिन गए, जब बड़े-बुजुर्ग या पद वालों का छोटों के मन में डर रहता था। उससे बिलकुल विपरीत, आजकल दबाने से कोई किसी से दबता नहीं बल्कि लोग और भड़क उठते हैं, जिसके नतीजे में दबाने वाले का रौब या सम्मान चकनाचूर होकर रह जाता है। इसीलिए आज समस्त विश्व में मजदूरों या कर्मचारियों ने अपने-अपने संगठन बनाकर रखे हैं, ताकि यदि कोई उनसे थोड़ा भी अक्खड़पन से व्यवहार करे तो वे यूनियन के माध्यम से उनके विरुद्ध आंदोलन खड़ा कर सकें। घर-गृहस्थी में भी यदि कोई व्यक्ति अपने से छोटों पर अधिक दबाव डालता है या सदा रौब से काम लेता है, तो आखिर एक दिन उनके सब्र का बांध भी टूट जाता है और वे उसका विरोध करना शुरू कर देते हैं।
अत: यह समझना बहुत गलत होगा कि रौब के बिना संसार में किसी की भी गाड़ी नहीं चलती या पोजीशन का दबदबा जमाए बिना लोग अपनी बात किसी भी कीमत पर मानेंगे ही नहीं। जो दूसरों के आगे झुकता है, लोग भी उसी के आगे झुकते हैं और जो सदैव अपनी अकड़ के रौब में रहता है, लोग उसके साथ कभी भी रहना पसंद नहीं करेंगे।
इसका सरल उदहारण स्थूल रूप से देखें तो यह है कि जो वृक्ष झुका हुआ होता है और छांव देता है, उसके नीचे ही बड़े-बड़े धनीमानी भी और गरीब मजदूर भी आकर बैठना चाहते हैं, परन्तु जो वृक्ष एकदम अकड़ कर ऊंचा ही खड़ा रहता है, जैसे कि खजूर या बांस का वृक्ष, ऐसे वृक्ष के नीचे कोई भी बैठना पसंद नहीं करता। अत: दूसरों को डराना, धमकाना या अपनी पोजीशन से उनको दबाना, यह कोई योग्य जीवन जीने का तरीका नहीं है। अपितु जो योग्य, कार्यकुशल, परिश्रमी और उद्यमी होते हुए भी दूसरों के आगे सदैव नम्र होकर रहता है, उसके आगे लोग स्वत: ही सम्मान और आदरभाव से झुकते रहेंगे ।
मनुष्य जीवन का लक्ष्य किसी को झुकाना या दबाना नहीं है, बल्कि योग्य बनकर, अहंकार को छोड़कर, नि:स्वार्थ भावना से अपना कर्तव्य करना है और ऐसा करते हुए भी स्वयं झुक कर रहना है। तभी तो कहा गया है कि जीवन में प्रगति करने के लिए तीन बातें अवश्य धारण करनी हैं -‘मर मर --झुक झुक --सीख सीख’ अर्थात हर घड़ी हमें अपने अहंकार को मारकर, नम्रचित होकर सदैव झुककर जीवन से नई-नई बातें सीखने की उमंग रखना है।
जब हम ऐसा करेंगे तो हमसे नीचे कार्य करने वाले देखेंगे कि यह व्यक्ति इतना योग्य और कार्यकुशल होते हुए भी इतना निरहंकारी है कि यह बड़ों को रिस्पैक्ट और छोटों को स्नेह देते हुए चल रहा है। तब फिर उनके मुख से यही उद्गार निकलेंगे कि ‘यह तो बहुत महान शख्सियत है, यह तो जैसे मनुष्य चोले में कोई फरिश्ता या देवता है; इसके लिए तो हम अपनी जान भी दे देंगे!’
वास्तव में हर मनुष्य का जीवन ऐसा आदर्शमय होना चाहिए, जिससे कि हमारे प्यार व स्नेह में लोग काम करें, न कि रौब के कारण। हम स्वयं दूसरों के लिए ऐसा उदाहरण बनें, कि हमें देखकर उन्हें और अच्छा कार्य करने की प्रेरणा मिले।
यह स्वाभाविक जीवन जीने का तरीका यदि हर कोई अपना ले, तो दुनिया में कहीं भी कोई कमजोर और कोई ताकतवर नहीं दिखाई पड़ेगा, अपितु सभी एक-समान नजर आएंगे और हर कोई अपना कार्य समरसता में रहकर करेगा।
तो फिर चलिए आज से हम यही प्रण लें कि हम सदैव झुक कर अर्थात नम्र होकर दूसरों का दिल जीतेंगे और सभी को सम्मान देते हुए आगे बढ़ते रहेंगे। इसी में हमारी वास्तविक जीत है।