Inspirational Context: कुछ ऐसे निभाई एक दोस्त ने अपनी सच्ची मित्रता
punjabkesari.in Tuesday, Apr 15, 2025 - 03:34 PM (IST)

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Inspirational Context: प्रथम विश्व युद्ध के दिनों में दो गहरे दोस्त अपने देश की तरफ से लड़ रहे थे और एक ही मोर्चे पर तैनात थे। दोनों दोस्त अपनी-अपनी खंदक में पोजीशन लेकर दुश्मन का सामना कर रहे थे, बड़ी भीषण लड़ाई चल रही थी। दोनों दोस्त अपनी-अपनी जगह पर मुस्तैद थे, तभी एक जोर का धमाका हुआ। एक दोस्त ने दूसरे की चीख सुनी, उसने थोड़ा-सा उचक कर देखा तो दूसरा दोस्त अपनी खंदक में लहूलुहान पड़ा हुआ था। उसे बम लगा था और शायद गोली भी लगी थी। जब दोस्त ने अपने दोस्त की हालत देखी तो वह उसकी मदद के लिए तड़प उठा। उसने अपने लेफ्टिनेंट से उस तक जाने की अनुमति मांगी।
लेफ्टिनेंट दोनों की मित्रता से परिचित था। उसने कहा, “देखो, तुम जा तो सकते हो लेकिन मेरे ख्याल से इसका कोई मतलब नहीं होगा। उसकी हालत बहुत खराब है उसके जीवित बचने की संभावना बहुत कम है। अगर तुम उस तक पहुंचने की कोशिश करोगे तो उल्टा तुम्हारे प्राण संकट में पड़ जाएंगे।”
वह तो हर हालत में घायल दोस्त तक पहुंचना चाहता था, सो वह तत्काल दौड़ पड़ा। किसी को दौड़ता देख दुश्मन खेमे से गोलियों की बौछार और तेज हो गई, लेकिन वह न सिर्फ अपने दोस्त की खंदक तक पहुंचा बल्कि उसे कंधे पर लादकर अपनी खंदक तक भी ले आया।
जब उसने दोस्त को जमीन पर लिटाया तो उसके साथियों ने देखा कि उसकी सांसें बंद हो चुकी हैं। लेफ्टिनेंट ने सैनिक से सहानुभूति जताते हुए कहा, “मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि वहां जाने का कोई मतलब नहीं है। तुम्हारे दोस्त को बचना ही नहीं था और तुम्हारी जान भी खतरे में पड़ गई थी।”
सैनिक बोला, “जी सर, पर मेरा जाना बेमतलब नहीं रहा, क्योंकि जब मैं उस तक पहुंचा, तब उसकी सांसें चल रही थीं। मुझे देखकर उसकी आंखों में चमक आ गई और मेरे मरते दोस्त ने आखिरी वाक्य यह कहा, “दोस्त, मैं जानता था तुम जरूर आओगे।