क्यों विदाई से पहले बेटी करती है दहलीज को प्रणाम? जानिए रहस्य
punjabkesari.in Thursday, Nov 13, 2025 - 01:30 PM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Indian Wedding Traditions: भारतीय परंपराओं में बेटी की विदाई का क्षण भावनाओं से भरा होता है। यह सिर्फ एक रिवाज नहीं, बल्कि संस्कारों और जीवन के नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक है। जब बेटी अपने मायके से ससुराल के लिए विदा होती है, तो वह दहलीज की पूजा करती है। यह क्रिया प्रेम, सम्मान और आशीर्वाद का सुंदर संगम मानी जाती है। घर की दहलीज को पूजना इस बात का संकेत है कि वह अपने बचपन के घर से कृतज्ञता और शुभकामनाओं के साथ विदा ले रही है, ताकि उसके पीछे सुख-समृद्धि और शांति बनी रहे।

दहलीज का प्रतीकात्मक महत्व
दहलीज केवल घर का प्रवेश द्वार नहीं होती, बल्कि यह उस सीमा का प्रतीक है जो घर को बाहरी दुनिया से जोड़ती है। बेटी जब इस दहलीज को पूजती है, तो वह अपने मायके को प्रणाम कर आशीर्वाद लेती है कि उसके जाने के बाद भी घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे।
माता-पिता के प्रति कृतज्ञता का भाव
विदाई के समय बेटी की आंखों में जो आंसू होते हैं, उनमें माता-पिता के प्रति आभार छिपा होता है। दहलीज पूजना इसी भाव का प्रतीक है। जैसे बेटी अपने पालन-पोषण, शिक्षा और संस्कारों के लिए घर और अपने माता-पिता का धन्यवाद कर रही हो।

नए जीवन की शुरुआत का शुभ संकेत
दहलीज पूजना यह दर्शाता है कि बेटी अपने मायके के सभी शुभ आशीर्वाद अपने साथ लेकर जा रही है। यह रिवाज माना जाता है कि जब वह अपने नए घर में कदम रखती है, तो वही शुभता और सकारात्मक ऊर्जा उसके ससुराल में भी फैलती है।
धार्मिक दृष्टि से मान्यता
पुराणों और लोक परंपराओं में घर की दहलीज को लक्ष्मी स्थान कहा गया है। इसलिए विदा होती हुई बेटी दहलीज पर हल्दी, चावल या कुंकुम से तिलक कर पूजन करती है ताकि घर में लक्ष्मी का वास बना रहे और किसी तरह की अशांति या नकारात्मकता उस सीमा को पार न करे।
संस्कार और भावनाओं का संगम
विदाई का यह छोटा-सा अनुष्ठान बेटी के बचपन की यादों, घर के प्रति श्रद्धा और नए जीवन की आशा- तीनों को एक साथ जोड़ देता है। यह पल सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी दूरियां आ जाएं, संस्कारों का रिश्ता हमेशा अटूट रहता है।

