प्रकृति के प्रति बढ़ाएं अपनी विचार शक्ति

punjabkesari.in Wednesday, Jul 03, 2019 - 10:17 AM (IST)

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मनुष्य का जन्म पृथ्वी पर सबसे विचारवान प्राणी के रूप में हुआ है। विचारवान होने से तात्पर्य है परस्पर प्रेम, कल्याण भावना के साथ जीवन जीने और परोपकार की राह पर निरंतर आगे बढ़ते रहना। विचारवान होने के लिए सर्वश्रेष्ठ उपाय है निरंतर आत्म परीक्षण करना। इस प्रक्रिया में व्यक्ति के भीतर वे सभी प्राकृतिक सद्गुण एकत्रित होने लगते हैं जो वैचारिक श्रेष्ठता के लिए अनिवार्य हैं। ऐसा भी नहीं है कि मनुष्य इन गुणों की प्रेरणा के लिए स्वयं ही प्रेरणा का एकमात्र स्रोत होगा। इस ध्येय की पूर्ति के लिए ईश्वर प्रकृति के माध्यम से मनुष्य समक्ष प्रतिदिन अनेक सुंदर, सकारात्मक और जीवनोपयोगी उदाहरण प्रस्तुत करता रहता है।
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प्रकृति के अंश सूर्य, चंद्रमा, सितारे, नभ, पृथ्वी, मिट्टी, वन, वृक्ष, लताएं, पुष्प, हवा, अग्रि, जल, नदियां, नहरें, तालाब, समुद्र, पर्वत, पठार, खाद्यान्न से भरे हुए खेत खलिहान, विभिन्न पशु-पक्षी सभी अपने व्यवहार से हमें क्षण-प्रति क्षण कोई न कोई उपयोगी शिक्षा अवश्य देते हैं। मनुष्य के तन-मन के लिए आवश्यक सभी वस्तुएं और अनुभव प्रकृति से ही उत्पन्न हो रहे हैं। इसके लिए मनुष्य को प्रकृति के प्रति सदैव कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए। उसके लिए पूजा-अर्चना और अन्य पौराणिक धर्म कर्म करने चाहिए। मनुष्य का प्रकृति के प्रति कृतज्ञ होना, उसे मान-सम्मान देना और उसके अनुसार अपनी दिनचर्या व्यतीत करना तभी संभव होता है जब वह निरंतर विचारवान हो लेकिन देखा जा रहा है कि मनुष्य अपनी इस परम्परागत विशेषता को भूल गया है।
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भौतिक विकास के लिए उसका बेशुमार दोहन हो रहा है। नि:संदेह प्रकृति प्रेमी मनुष्यों के लिए ये परिस्थितियां गहन दुख और निराशा उत्पन्न कर रही हैं लेकिन इन आत्मघाती परिस्थितियों में भी हताश-निराश नहीं होना चाहिए। प्रकृति प्रेमी मनुष्यों को ऐसे में अपनी विचार शक्ति बढ़ानी चाहिए।


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Jyoti

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