वचन का प्रभाव

punjabkesari.in Thursday, Mar 29, 2018 - 02:23 PM (IST)

परम विरक्त संत स्वामी कृष्णबोधाश्रम जी महाराज गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ क्षेत्र में गंगा के किनारे पैदल भ्रमण करते हुए एक गांव में पहुंच गए। वह गांव के बाहर गंगा तट पर एक मंदिर में रुक गए। वहां सुबह-शाम गंगा स्नान करते और दिन भर साधना में लगे रहते। गांव के बुजुर्गों को पता चला कि मंदिर में एक संत आया हुआ है और वह तीन दिनों से निराहार है। एक बुजुर्ग स्वामी जी के पास पहुंचा और उसने कहा, ‘‘महाराज जी, आज आप हमारे यहां भोजन करने की कृपा करें।’’


स्वामी जी ने उत्तर दिया, ‘‘हम उसी के घर में भोजन ग्रहण करते हैं जिस घर का एक भी सदस्य तम्बाकू, शराब तथा मांस का सेवन न करता हो।’’

 

ज्यादातर परिवार मांस-मदिरा का सेवन नहीं करते थे, लेकिन हुक्का-बीड़ी का चलन तो घर-घर था। गांव का एक भी घर ऐसा नहीं निकला जिसके यहां बना भोजन स्वामी जी ग्रहण कर पाते।
स्वामी जी हफ्ताभर बिना भोजन के रहे। 8वें दिन गांव के बुजुर्गों ने बैठक की। उनके मुखिया ने कहा कि कितने दुर्भाग्य की बात है कि हमारे गांव में एक भी घर ऐसा नहीं है जिसका एक भी सदस्य नशा न करता हो। कितनी शर्म की बात है कि एक संत कई दिनों से भूखा है। इसके बाद एक-एक करके कुछ बुजुर्ग उठे और उन्होंने संकल्प लिया कि आज से वे हुक्का-बीड़ी नहीं पिएंगे। कुछ ने शराब और मांस छोड़ने का संकल्प लिया।


उसी दिन शाम को कुछ लोग स्वामी जी के पास पहुंचे। वे हुक्के और शराब की बोतलें भी अपने साथ ले गए। इन सभी ने हाथ में गंगाजल लेकर मांस-मंदिरा और तम्बाकू का सेवन न करने की शपथ ली। तब स्वामी जी ने आशीर्वाद देते हुए एक घर की भिक्षा ग्रहण की। स्वामी कृष्णबोधाश्रम जी महाराज ने बिना दुराग्रह के भोजन ग्रहण करने के नियम की शर्त पर सैंकड़ों गांवों को व्यसनों से मुक्ति दिलाई।


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