कैसे बनते हैं नागा बाबा ?

punjabkesari.in Thursday, Jan 10, 2019 - 03:27 PM (IST)

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इस बात की जानकारी तो सबको होगी ही कि कुंभ का मेला शुरु होने वाला है और जोकि इस बार मकर संक्रांति यानि 15 जनवरी से प्रयागराज में शुरू हो रहा है। बता दें प्रत्येक 3 वर्ष के बाद 4 तीर्थों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। इस दौरान हर तीर्थ की बारी 12 साल के बाद आती है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार कुंभ मेले के दौरान नदियों में स्नान करने से सभी पाप धूल जाते है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन इस बात का पता शायद ही किसी को होगा कि कुंभ में आने वाले नागा साधु कौन होते हैं और ये कहां से आते हैं। तो चलिए जानते हैं इनके बारे में-
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पूरे भारत में कुल 13 ऐसे अखाड़े हैं जहां सन्यासियों को नागा साधु बनाया जाता है। कहा जाता है कि ये हिमालय में जीरो डिग्री से भी नीचे तापमान पर जीवित रह सकते हैं। कहते हैं कि आम आदमी से नागा साधु बनने तक का सफ़र आसान नहीं होता। नागा साधु जोकि नग्न रहने और युद्ध कला में माहिर होने के लिए जाने जाते हैं, विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं। पौराणिरक मान्यताओं के मुताबिक ये परंपरा जगद्गुरु आदिशंकराचार्य द्वारा की गई थी। 

लोक मान्यता है कि ये नागा साधु केवल कुंभ मेले के दौरान ही देखने को मिलते हैं। आमतौर पर ये साधु हरिद्वार और अन्य दूर-दराजों के तीर्थों में ही रहते हैं। पूरी तरह से नग्न होने के कारण इन्हें दिगंबर कहा जाता है। 
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माना जाता है कि जब कोई इंसान नागा साधु बनने के लिए आता है, तो अखाड़ा अपने स्‍तर पर उसके और उसके परिवार के बारे में जांच-पड़ताल करता है। अगर अखाड़े को ये लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही व्यक्ति है तो ही उसे अखाड़े में प्रवेश होने की अनुमति मिलती है।

जब अखाड़े में आने की अनुमति मिल जाती है तो उस आदमी के ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। इसमें 6 महीने से लेकर 12 साल तक लग जाते हैं। अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु यह सुनिश्‍चित कर लें कि वह दीक्षा के लायक हो चुका है, तो उसे अगली प्रक्रिया में लिया जाता है 
वरना उसे इंतजार करना पड़ता है।
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जब व्यक्ति के ब्रह्मचर्य की परीक्षा पूरी हो जाती है तो उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष बनाया जाता है। उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। ये पांच गुरु पंच देव या पंच परमेश्‍वर (शिव, विष्‍णु, शक्ति, सूर्य और गणेश) होते हैं।

इसके बाद नागाओं को सबसे पहले अपने बाल कटवाने होते हैं और गंगा में 108 डुबकी लगानी पड़ती है। उसके बाद साधक को खुद ही अपने परिवार और समाज के लिए मृत मानकर अपने हाथों से अपना श्राद्ध कर्म करना पड़ता है और ये पिंडदान अखाड़े के पुरोहित करवाते हैं।
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उसके बाद साधु को नग्न अवस्‍था में 24 घंटे तक अखाड़े के ध्‍वज के नीचे खड़ा होना पड़ता है। फिर बाद में वरिष्‍ठ नागा साधु लिंग की एक विशेष नस को खींचकर उसे नपुंसक कर देते हैं। इस प्रक्रिया के बाद वह नागा दिगंबर साधु बन जाते हैं।

दीक्षा लायक होने के बाद गुरु से मिले गुरुमंत्र में ही उसे संपूर्ण आस्‍था रखनी होती है। भविष्‍य में होने वाली सारी तपस्‍या इसी गुरु मंत्र पर आधारित होती है।
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इन सब के बाद नागा साधुओं को वस्‍त्र धरण करने की भी अनुमति नहीं होती। अगर वस्‍त्र धारण करने हों, तो सिर्फ गेरुए रंग के वस्‍त्र ही नागा साधु पहन सकते हैं। वह भी सिर्फ एक वस्‍त्र, एक से अधिक वे गेरुए वस्‍त्र धारण नहीं कर सकते।

नागा साधुओं हर रोज़ भस्‍म और रुद्राक्ष धारण करना पड़ता है। भस्‍म और रुद्राक्ष ही एक तरह से इनके वस्‍त्र होते हैं। रोज़ाना सुबह स्‍नान के बाद नागा साधु को शरीर पर भस्म लगाना ज़रूरी होता है। 
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इसके बाद साधु को केवल एक समय भोजन करना होता है वो भी भिक्षा मांग कर। वे पूरे दिन में सिर्फ़ सात घरों में ही भिक्षा मांग सकते हैं। अगर किसी दिन सात घरों में कोई भिक्षा न मिले तो उसे भूखा रहना पड़ता है।

नागा साधुओं को पलंग, खाट या अन्‍य किसी साधन का उपयोग करना सख्‍त मना होता है। वो केवल ज़मीन पर ही सो सकते हैं और वो भी गद्दों के बिना।
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ये साधु केवल बस्‍ती से बाहर निवास कर सकते हैं। ये लोग संन्यासियों के अलावा किसी को भी प्रणाम नहीं कर सकते और न किसी की निंदा। 

नागा साधुओं की हर रोज़ ये कोशिश रहती है कि उनका तिलक रोज़ाना एक जैसा ही लगे। 
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नागा साधु बन जाने के बाद उनके पद और अधिकार भी बढ़ जाते हैं। नागा साधु के बाद महंत, श्रीमहंत, तमातिया महंत, थानापति महंग, पीर महंत, दिगंबरश्री, महामंडलेश्‍वर और आचार्य महामंडलेश्‍वर जैसे पदों तक जा सकते हैं।
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