महाराष्ट्र के मंदिरों में पुर्तगाली गिरजाघरों की घंटियां जानें, इससे जुड़े रहस्य

punjabkesari.in Thursday, Jan 05, 2017 - 01:20 PM (IST)

कम ही लोग जानते हैं कि महाराष्ट्र के अधिकतर महत्वपूर्ण मंदिरों में जिन घंटियों के स्वर उन्हें सुनाई देते हैं उनका गहरा संबंध ईसाई धर्म से है। ये किसी जमाने में उन महत्वपूर्ण गिरजाघरों की शोभा बढ़ाया करती थीं जिनका निर्माण पुर्तगालियों के 450 वर्षीय शासन के शुरूआती दौर में किया गया था।  दरअसल गिरजाघरों की इन घंटियों को मराठा सेनाएं पुर्तगालियों पर जीत प्राप्त करने के बाद युद्ध विजय की निशानियों के रूप में अपने साथ ले गई थीं।  वसाई के फादर फ्रांसिस कोर्रिया द्वारा शुरू की गई रिसर्च के 25 साल बाद पुर्तगाली-मराठा दौर के इतिहास की यह महत्वपूर्ण जानकारी सामने आ सकी है। 


77 वर्षीय फादर फ्रांसिस कहते हैं, ‘‘पुर्तगाली काल के दौरान 1730 के दशक में 80 गिरजाघरों का निर्माण महाराष्ट्र में हुआ था। इनमें से प्रत्येक गिरजाघर में औसतन 2 घंटियां लगी होती थीं, साथ ही अन्य ईसाई शैक्षिक संस्थानों तथा मठों में भी घंटियां लगी थीं। इनकी कुल संख्या 500 से 600 रही होगी। हमारे पास पुख्ता प्रमाण हैं कि इनमें से 38 घंटियां महाराष्ट्र के 9 जिलों के 34 मंदिरों की शोभा बढ़ा रही हैं।’’


उनकी रिसर्च टीम में पास्कल लॉपेज (सिक्कों के विशेषज्ञ, पुरातत्वविद् व इतिहासविद्), जोसेफ परेरा (स्थानीय भू-विज्ञानी), बेरिना डिसिल्वा (लेखक) तथा एगस्टीन टुस्कानो (फोटोग्राफर) शामिल हैं। इन सभी के प्रयासों के आधार पर फादर फ्रांसिस ने एक पुस्तक ‘ओल्ड एम्बैसेडरर्स ऑफ द न्यू ऐरा’ प्रकाशित की है। मराठी में इसका नाम ‘नवयुगाच्या प्रेषिठा’ है। 


फ्रांसिस के अनुसार इनमें से कुछ घंटियां 400 वर्ष से भी पुरानी हैं, फिर भी अधिकतर अच्छे हाल में हैं। इनमें से कइयों ने हजारों लोगों की जान बचाने में योगदान दिया जब प्राकृतिक आपदा, तूफान व बाढ़ आदि की चेतावनी देने के लिए इन्हें बजाया जाता था। 
खास बात है कि इन घंटियों के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई है। उन्हें पहले जैसी मर्यादा व प्रतिष्ठा से रखा गया है। गलत ढंग से प्रयोग करने से कुछेक में दरारें आ गई हैं जिनकी मुरम्मत सम्भव है। 


ये पुर्तगाली घंटियां महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिरों में देखी जा सकती हैं जैसे रामेश्वर मंदिर (नासिक), तुलजा भवानी मंदिर (उस्मानाबाद), भीमा शंकर मंदिर व जेजुरी मंदिर (पुणे), महालक्ष्मी मंदिर (कोल्हापुर) तथा श्री श्रेष्ठ महाबलेश्वर मंदिर (सतारा) आदि। अलग-अलग आकार व वजन की परंतु सभी ‘पंच धातु’ (यानी पांच धातुओं सोना, चांदी, तांबा, लोहा और सीसा) से बनी घंटियां नासिक, अहमदनगर, जालना, उस्मानाबाद, पुणे, सतारा, कोल्हापुर, रायगढ़ और रत्नागिरी के मंदिरों में हैं। इनमें सबसे ज्यादा 12 घंटियां पुणे और 8 सतारा जिले में हैं। 


इन 34 मंदिरों की ये घंटियां सदियों पुराने गिरजाघरों की हैं। मराठाओं की पुर्तगालियों पर जीत के बाद इन्हें वे युद्ध विजय प्रतीकों के रूप में अपने साथ ले गए थे। महान मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज तुलजा भवानी मंदिर को बहुत मानते थे और वहां नियमित प्रार्थना करते थे। एक बार वह पांच नदियों कृष्णा, कोएना, वेणा, गायत्री तथा सावित्री के उद्गम स्थल सतारा कस्बे में भी आए थे। 


फादर फ्रांसिस बताते हैं कि इसाई गिरजाघर दो मुख्य पंथों के होते हैं एक कैथोलिक और दूसरे प्रोटैस्टैंट। उनकी टीम ने इन घंटियों के मूल का पता लगाने के लिए इन पर बने विभिन्न प्रतीकों का गहन अध्ययन किया है। कैथोलिक्स में 2000 वर्ष पुरानी परम्परा है और वे वर्जिन मेरी को पूजते हैं। वहीं प्रोटैस्टैंट्स का उद्भव 16वीं सदी में ही हुआ है। 


फादर फ्रांसिस वसाई धर्मप्रदेश से संबंधित और वसाई पुर्तगाली दुर्ग के विशेषज्ञ इतिहासविद् हैं। इस किले पर 19वीं सदी के इतिहासविद् गेरसन डिकुन्हा द्वारा लिखित 1876 की पुस्तक में गिरजाघरों की गायब घंटियों का जिक्र पढऩे के बाद ही उन्होंने इस विषय पर अपनी रिसर्च शुरू की थी। 


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