Hardayal Library: 161 साल पुरानी है हरदयाल लाइब्रेरी, एक बम धमाके से रखी गई थी इस पुस्तकालय की नींव
punjabkesari.in Friday, Jul 28, 2023 - 09:45 AM (IST)
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Hardayal Library delhi: चांदनी चौक इलाके में टॉऊन हॉल के पास स्थित तथा दिल्ली नगर निगम द्वारा संचालित ऐतिहासिक हरदयाल हैरिटेज म्यूनिसिपल लाइब्रेरी आज दिल्ली ही नहीं, हर जगह प्रसिद्ध है। 161 साल पुरानी यह लाइब्रेरी दिल्ली निर्माण की पहचान है। सन् 1862 में स्थापित यह दिल्ली की सबसे पुरानी लाइब्रेरी है, इसमें कई ऐतिहासिक और दुर्लभ किताबें मौजूद हैं, जिनमें से कुछ किताबें तो 16वीं शताब्दी से भी ज्यादा पुरानी हैं।
इस लाइब्रेरी में विभिन्न भाषाओं की 1,70,000 से भी ज्यादा किताबें हैं, जिनमें से 8,000 किताबें अतिदुर्लभ श्रेणी की हैं। सन् 1916 में यह लाइब्रेरी चांदनी चौक में पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास स्थानांतरित की गई जहां आज इस लाइब्रेरी की मुख्य शाखा स्थापित है।
अपने वर्तमान स्थान के साथ ही दिल्ली के तीनों नगर निगमों के इलाकों में इस लाइब्रेरी की 28 शाखाएं भी चल रही हैं।
वर्तमान में इस लाइब्रेरी की किताबों को सहेजने के लिए इसका डिजिटलीकरण करने की कवायद जारी है। निगम की आर्थिक बदहाली के कारण लाइब्रेरी के रख-रखाव में कुछ कमियां हाल-फिलहाल में उभरी हैं लेकिन आज भी यह लाइब्रेरी युवाओं के बीच पढ़ाई के लिए प्रसिद्ध है।
अगर किसी विषय पर अध्ययन करना हो तो युवा इस लाइब्रेरी का रुख करना नहीं भूलते हैं। इस ऐतिहासिक लाइब्रेरी के स्थापना की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। इसकी देखरेख करने वाले कर्मचारी बताते हैं कि चांदनी चौक में मौजूद यह वह लाइब्रेरी है जिसकी नींव एक बम धमाके से रखी गई लेकिन जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने धमाका किया, उनको फांसी दे दी गई। वक्त बदला, शासन बदला। आज यह लाइब्रेरी एक स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर है।
दरअसल, अंग्रेज सरकार दिल्ली को अपना शक्ति केंद्र बनाना चाहती थी। ऐसी जगह की तलाश हुई, जहां बैठकर योजनाएं बनाई जा सकें और भारत का अध्ययन कर सकें। सन् 1862 में एक रीडिंग रूम शुरू हुआ, जहां अंग्रेज अफसर सूचना और ज्ञान हासिल करते थे। लाल किले से शासन चलाया जा रहा था और इस रीडिंग रूम से प्रशासनिक काम। ब्रिटिश अधिकारी अपने साथ पत्र-पत्रिकाएं और किताबें लाते जो यहां रख दी जाती थीं। उस समय टाऊन हॉल में मौजूद लाइब्रेरी को लॉरेन्स इंस्टीच्यूट नाम दिया गया, इसके बाद सन् 1902 में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी नाम कर दिया गया। सन् 1912 में दिसम्बर की बात है। एक दिन अचानक उस वक्त के वायसराय लार्ड हार्डिंग एक जुलूस में हाथी पर बैठे जा रहे थे।
स्वतंत्रता सेनानियों ने उन पर बम फैंक दिया। लॉर्ड हार्डिंग बच गए, उनके बचने पर उनके समर्थकों ने एक कमेटी बनाकर हार्डिंग की मूर्ति लगाने का निर्णय लिया लेकिन हार्डिंग इससे सहमत नहीं हुए और अमीर लोगों से चंदा किए गए पैसे से हार्डिंग के नाम पर लाइब्रेरी बन गई। 1916 में नगर निकाय की मदद से लाइब्रेरी का भवन बनाया गया।
दूसरी ओर बम कांड में स्वतंत्रता सेनानी मास्टर अमीरचंद, भाई बालमुकुंद, मास्टर अवध बिहारी और बसंत कुमार विश्वास को फांसी दे दी गई। ये स्वतंत्रता सेनानी हरदयाल के साथी थे। उस समय लाइब्रेरी में अंग्रेजों के सिवा सिर्फ अमीर लोग ही जा सकते थे।
अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद 1970 में लाइब्रेरी का फिर नामकरण हुआ और स्वतंत्रता सेनानी लाला हरदयाल का नाम दिया गया। बताया जाता है कि लाला हरदयाल की मौत स्लो पॉइजन देने से हुई। अब लाइब्रेरी ऐतिहासिक है, इसलिए हैरिटेज भी इसके नाम में जुड़ गया है। उपरोक्त कहानी-किस्से इस पब्लिक लाइब्रेरी के स्वर्णिम इतिहास के 161 वर्ष में दर्ज हैं। अब दिल्ली नगर निगम द्वारा संचालित इस लाइब्रेरी में अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं रहा है। कोई भी जा सकता है। गरीब परिवार के बच्चे कामयाबी हासिल कर सकें, इसके लिए लाइब्रेरी को विकसित किया गया है।
हिंदी की कुरान व फारस में महाभारत सहित हजारों दुर्लभ किताबें
पुरानी किताबों में ‘ए रिलेशन ऑफ सम ईयर्स ट्रैवल’ साल 1634 की है, जिसमें उस दौर का कल्चर है। 1676 में सर वॉल्टर की लिखी ‘हिस्ट्री ऑफ द वल्र्ड’ की वास्तविक कॉपी यहां है। ख्वाजा हसन निजामी का हिंदी में लिखा कुरान (1928) यहां है। साथ ही अबुल फजल के हाथों फारसी में लिखी हुई ’महाभारत’ भी मौजूद है, जिसमें तस्वीरें गोल्ड से डिजाइन हैं। ‘इंगलैंड कैसा था’, वह किताब भी यहां है लेकिन इंगलैंड में नहीं। अथश्री भृगु संहिता महाशास्त्रम ऐसी किताब है, जिसके जरिए किसी भी शख्स की कुंडली तैयार की जा सकती है। यह भी हाथ से लिखी गई है।
लाइब्रेरी की किताबों से कई मामले सुलझे
बताया जाता है कि सुभाष पार्क में मैट्रो की खुदाई होने पर कुछ निर्माण मिला। विवाद था कि वहां मस्जिद थी, मंदिर या फिर कोई और इमारत। जब विवाद हुआ तो उसे सुलझाने के लिए इस लाइब्रेरी की किताबों की मदद ली गई। इसी तरह 1947 में गुजरात में काठियावाड़ के एक इलाके को लेकर विवाद हुआ। पाकिस्तान का दावा था कि वह पाक का हिस्सा है, जबकि वहां की ज्यादा आबादी हिंदू थी। तब लाइब्रेरी की किताबें काम आईं, जिसमें स्पष्ट था कि यह भारत का हिस्सा है।