गुरु कोई शरीर नहीं, तत्व है, परंपरा है - श्रील भक्तिवेदांत दामोदर महाराज
punjabkesari.in Monday, Jul 22, 2024 - 10:44 AM (IST)
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Srila Bhaktivedanta Damodar Maharaj Ji: कल ही श्री गुरु पूर्णिमा का महान पर्व सम्पन्न हुआ है। समस्त विश्व में ही यह दिव्य पर्व मनाया जाता है क्योंकि यह समर्पित है- गुरु को। सनातन धर्म मे इसका विशेष महत्व हैं। गुरु को भगवान के तुल्य या यूं कहें उनसे भी विशेष कहा गया है किन्तु इसी बात का फायदा उठाकर आजकल बहुत से ढोंगी पाखंडियों ने जनमानस को बहुत ठगा है, आहत किया है।
इसलिये आज जरूरत है समझने की गुरु क्या है ? गुरु कौन बन सकता है ? और गुरु क्यों चाहिए ?
श्रील भक्तिवेदांत दामोदर महाराज जी इस जिज्ञासा के उत्तर में कहते हैं। सबसे पहले समझना होगा, गुरु कोई शरीर नहीं अर्थात यह परिवार से नहीं बनते, बाप गुरु तो बेटा गुरु।
गुरु किसी परिवार में नहीं , परम्परा में प्रकट होते है जो तत्वज्ञ होते हैं।
गुरु वही बन सकता है जो स्वयं आचरण युक्त और अनासक्त हो।
गुरु किसी न किसी प्रामाणिक परम्परा से ही होना चाहिए। अर्थात वह परम्परा जो परमात्मा से शुरू होकर वर्तमान गुरु तक पूर्ण हो।
गुरु आपके मन के अंधकार को दूर करके आपको प्रज्ञा प्रदान करता है। जादू, टोना, तंत्र नहीं करता और गुरु किसी की भी गुरुता स्वीकार करने में स्वयं को लघु नहीं समझता।
केवल मठ बना लेने से 500 चेले बना लेने से और वेश, वस्त्र , नाम धारण करने से कोई गुरु नहीं होता। इसलिये जरूरत है आज के समय मे गुरु के तत्व को समझने की वरना ढोंगी , ठग बढ़ते जाएंगे और अज्ञानता में उन्हें गुरु मानकर जनमानस ठगा जाता रहेगा।
श्रील प्रभुपाद भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर गोस्वामी प्रभुपाद जी कहते थे- मुझे 50 मठ नहीं चाहिये, 50 सही साधक चाहिए जो तत्व को समझ सके या तत्व को समझने के जिज्ञासु हों। जो बिना स्वार्थ और मात्सर्य के जीव का हित करे वह गुरु है।