Govatsa Dwadashi: आज है गाय पूजन का पर्व, जानें महत्व

punjabkesari.in Thursday, Nov 09, 2023 - 07:45 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Govatsa Dwadashi 2023: कार्तिक कृष्ण द्वादशी को गोवत्स द्वादशी के नाम से जाना जाता है। आज के दिन गो धूली बेला में गऊओं की पूजा की जाती है। विशेष कर पुत्रवान महिलाएं सारा दिन निराहार रहती हैं। संध्या के समय घर के आंगन को लीप कर चौक पूरती हैं। उसी चौक में गाय खड़ी करके चंदन अक्षत, धूप, दीप, नैवैद्य आदि से विधिवत पूजा की जाती है। इस व्रत के पूजन में धान या चावल वर्जनीय हैं। काकून के चावल से पूजा होती है और उसी से मंत्राक्षत दिया जाता है। इस दिन चने की दाल के भोजन का महत्व है। गेहूं और धान के अतिरिक्त गाय का दूध भी व्रत वालों को खाना वर्जित है।

PunjabKesari Govatsa Dwadashi

यह व्रत कार्तिक, माघ व वैशाख और श्रावण महीनों की कृष्ण द्वादशी को होता है। कार्तिक में वत्स वंश की पूजा का विधान है। इस दिन के लिए मूंग, मोठ तथा बाजरा अंकुरित करके मध्यान्ह के समय बछड़े को सजाने का विशेष विधान है। व्रत करने वाले व्यक्ति को भी इस दिन उक्त अन्न ही खाने पड़ते हैं।

PunjabKesari Govatsa Dwadashi
ऐसी मान्यता है कि इस दिन पहली बार श्री कृष्ण वन में गऊएं-बछड़े चराने गए थे। माता यशोदा ने श्री कृष्ण का शृंगार करके गोचारण के लिए तैयार किया था। पूजा-पाठ के बाद गोपाल ने बछड़े खोल दिए। यशोदा ने बलराम जी से कहा कि बछड़ों को चराने दूर मत जाना और कान्हा को अकेला मत छोड़ना, देखना यमुना के किनारे अकेला न जाए। 

PunjabKesari Govatsa Dwadashi
गोपालों द्वारा गोवत्संचारण की पुण्यतिथि को इसीलिए पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व पुत्र की मंगल-कामना के लिए किया जाता है। इसे पुत्रवती स्त्रियां करती हैं। इस पर्व पर गीली मिट्टी की गाय, बछड़ा, बाघ तथा बाघिन की मूर्तियां बनाकर पाट पर रखी जाती हैं तब उनकी विधिवत पूजा की जाती है।

 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Recommended News

Related News