गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के रूप में क्यों मनाया जाता है, पढ़ें कथा

punjabkesari.in Monday, Oct 31, 2016 - 08:33 AM (IST)

इंद्र का गर्व चूर करने के लिए श्री गोवर्धन पूजा का आयोजन श्री कृष्ण ने गोकुलवासियों से करवाया था। यह आयोजन दीपावली से अगले दिन शाम को होता है। इस दिन मंदिरों में अन्नकूट पूजन किया जाता  है। ब्रज के त्यौहारों में इस त्यौहार का विशेष महत्व है। इसकी शुरूआत द्वापर युग से मानी जाती है। किंवदंती है कि उस समय लोग इंद्र देवता की पूजा करते थे। अनेकों प्रकार के भोजन बनाकर तरह-तरह के पकवान व मिठाइयों का भोग लगाते थे। 


यह आयोजन एक प्रकार का सामूहिक भोज का आयोजन है। उस दिन अनेकों प्रकार के व्यंजन साबुत मूंग, कढ़ी चावल, बाजरा तथा अनेकों प्रकार की सब्जियां एक जगह मिल कर बनाई जाती थीं। इसे अन्नकूट कहा जाता था। मंदिरों में इसी अन्नकूट को सभी नगरवासी इकट्ठा कर उसे प्रसाद के रूप में वितरित करते थे।


यह आयोजन इसलिए किया जाता था कि शरद ऋतु के आगमन पर मेघ देवता देवराज इंद्र को पूजन कर प्रसन्न किया जाता कि वह ब्रज में वर्षा करवाएं जिससे अन्न पैदा हो तथा ब्रजवासियों का भरण-पोषण हो सके। एक बार भगवान श्री कृष्ण ग्वाल बालों के साथ गऊएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत के पास पहुंचे वह देखकर हैरान हो गए कि सैंकड़ों गोपियां छप्पन प्रकार के भोजन बनाकर बड़े उत्साह से उत्सव मना रही थीं। भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों से इस बारे पूछा। गोपियों ने बतलाया कि ऐसा करने से इंद्र देवता प्रसन्न होंगे और ब्रज में वर्षा होगी जिसमें अन्न पैदा होगा।


श्री कृष्ण ने गोपियों से कहा कि इंद्र देवता में ऐसी क्या शक्ति है जो पानी बरसाता है। इससे ज्यादा तो शक्ति इस गोवर्धन पर्वत में है। इसी कारण वर्षा होती है। हमें इंद्र देवता के स्थान पर इस गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए।


ब्रजवासी भगवान श्री कृष्ण के बताए अनुसार गोवर्धन की पूजा में जुट गए। सभी ब्रजवासी घर से अनेकों प्रकार के मिष्ठान बना गोवर्धन पर्वत की तलहटी में पहुंच भगवान श्री कृष्ण द्वारा बताई विधि के अनुसार गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। 
भगवान श्री कृष्ण द्वारा किए इस अनुष्ठान  को देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा तथा क्रोधित होकर अहंकार में मेघों को आदेश दिया कि वे ब्रज में मूसलाधार बारिश कर सभी कुछ तहस-नहस कर दिया। 


मेघों ने देवराज इंद्र के आदेश का पालन कर वैसा ही किया। ब्रज में मूसलाधार बारिश होने तथा सभी कुछ नष्ट होते देख ब्रज वासी घबरा गए तथा श्री कृष्ण के पास पहुंच कर इंद्र देवता के कोप से रक्षा का निवेदन करने लगे।


ब्रजवासियों की पुकार सुनकर भगवान श्री कृष्ण बोले- सभी नगरवासी अपनी सभी गउओं सहित गोवर्धन पर्वत की शरण में चलो। गोवर्धन पर्वत ही सबकी रक्षा करेंगे। सभी ब्रजवासी अपने पशु धन के साथ गोवर्धन पर्वत की तलहटी में पहुंच गए। तभी भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठाकर छाता सा तान दिया। सभी ब्रज वासी अपने पशुओं सहित उस पर्वत के नीचे जमा हो गए। सात दिन तक मूसलाधार वर्षा होती रही। सभी ब्रजवासियों ने पर्वत की शरण में अपना बचाव किया। भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र के कारण किसी भी ब्रज वासी को कोई भी नुक्सान नहीं हुआ।


यह चमत्कार देखकर देवराज इंद्र ब्रह्मा जी की शरण में गए तो ब्रह्मा जी ने उन्हें श्री कृष्ण की वास्तविकता बताई। इंद्र देवता को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। ब्रज गए तथा भगवान श्री कृष्ण के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगे। सातवें दिन श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा तथा ब्रजवासियों से कहा कि आज से प्रत्येक ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की प्रत्येक वर्ष अन्नकूट द्वारा पूजा-अर्चना कर पर्व मनाया करें। इस उत्सव को तभी से अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।                         


 


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