क्या सच में माता लक्ष्मी का भी हुआ था हरण ?

punjabkesari.in Friday, Nov 01, 2019 - 04:01 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिंदू पंचांग के अनुसार माता लक्ष्मी की पूजा शुक्रवार के दिन की जाती है। इसके साथ ही कई लोग माता को प्रसन्न करने के लिए व्रत भी करते हैं। कहते हैं कि जो लोग शुक्रवार का व्रत रखते हैं माता उनकी हर इच्छा को पूरा करती है। लेकिन वहीं जो लोग व्रत नहीं कर पाते हैं, वह उस दिन मां लक्ष्मी से जुड़ी कथा को पढ़ या सुन लें तो भी उन पर माता अपनी कृपा बरसाती है। चलिए देर न करते हुए आज हम आपको मां लक्ष्मी की एक ऐसी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसमें बताया गया है कि मां सीता की तरह ही लक्ष्मी जी का भी हरण हुआ था। 
PunjabKesari
देवासुर संग्राम में देवताओं के पराजित होने के बाद सभी देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंचे। इंद्र ने देवगुरु से कहा कि असुरों के कारण हम आत्महत्या करने पर मजबूर है। देवगुरु सभी देवताओं को दत्तात्रेय के पास ले गए। उन्होंने सभी देवताओं को समझाया और फिर से युद्ध करने की तैयारी करने को कहा। सभी ने फिर से युद्ध किया और हार गए।

वे फिर से विष्णुरूप भगवान दत्तात्रेय के पास भागते हुए पहुंचे। वहां उनके पास माता लक्ष्मी भी बैठी थी। दत्तात्रेय उस वक्त समाधिस्थ थे। तभी पीछे से असुर भी वहां पहुंच गए। असुर माता लक्ष्मी को देखकर उन पर मोहित हो गए। असुरों ने मौका देखकर लक्ष्मी का हरण कर लिया। दत्तात्रेय ने जब आंख खोली तो देवताओं ने दत्तात्रेय को हरण की बात बताई। तब दत्तात्रेय ने कहा, 'अब उनके विनाश का काल निश्चत हो गया है।' तब वे सभी कामी बनकर कमजोर हो गए और फिर देवताओं ने उनसे युद्ध कर उन्हें पराजित कर दिया। जब युद्ध जीतकर देवता भगवान दत्तात्रेय के पास पहुंचे तो वहां पहले से ही लक्ष्मी माता बैठी हुई थी। दत्तात्रेय ने कहा कि लक्ष्मी तो वहीं रहती है जहां शांति और प्रेम का वातारण होता है। वह कभी भी कैसे कामियों और हिंसकों के यहां रह सकती है?
PunjabKesari
वहीं एक अन्य कथा के अनुसार दैत्येगुरु शुक्राचार्य के शिष्य असुर श्रीदामा से सभी देवी और देवता त्रस्त हो चले थे। सभी देवता ब्रह्मदेव के साथ विष्णुजी के पास पहुंचे। विष्णुजी ने श्रीदामा के अंत का आश्वासन दिया। श्रीदामा को जब यह पता चला तो वह श्रीविष्णु से युद्ध की योजना बनाने लगा। दोनों का घोर युद्ध हुआ। लेकिन श्रीदामा पर विष्णुजी के दिव्यास्त्रों का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि शुक्राचार्य ने उसका शरीर वज्र के समान कठोर बना दिया था। अंतत: विष्णुजी को मैदान छोड़कर जाना पड़ा। इस बीच श्रीदामा ने विष्णु पत्नी लक्ष्मी का हरण कर लिया।
PunjabKesari
तब श्री विष्णु ने कैलाश पहुंचकर वहां पर भगवान शिव का पूजन किया और शिव नाम जपकर "शिवसहस्त्रनाम स्तोत्र" की रचना कर दी। जब के साथ उन्होंने "हरिश्वरलिंग की स्थापना कर 1000 ब्रह्मकमल अर्पित करने का संकल्प लिया। 999 ब्रह्मकमल अर्पित करने के बाद उन्होंने देखा की एक ब्रह्मकमल कहीं लुप्त हो गया है, तब उन्होंने अपना दाहिना नेत्र निकालकर ही शिवजी को अर्पित कर दिया। यह देख शिव जी प्रकट हो गए। शिवजी ने इच्‍छीत वर मांगने को कहा। तब श्री विष्णु ने लक्ष्मी के अपहरण की कथा सुनाई। तभी शिव की दाहिनी भुजा से महातेजस्वी सुदर्शन चक्र प्रकट हुआ। इसी सुदर्शन चक्र से भगवान विष्णु ने श्रीदामा का का नाश कर महालक्ष्मी को श्रीदामा से मुक्त कराया तथा देवों को दैत्य श्रीदामा के भय से मुक्ति दिलाई।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Lata

Recommended News

Related News