Gita Jayanti: गीता उपदेश, भगवान श्रीकृष्ण के मुखारविंद से निकले ‘अमृत वचन’
punjabkesari.in Wednesday, Dec 04, 2024 - 07:51 AM (IST)
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Bhagavad Gita Jayanti 2024: संपूर्ण वेद जिनकी स्तुति करते हैं, सभी उपनिषदों में जिनका निरूपण और सभी पुराणों में जिनकी दिव्य लीलाओं का वर्णन है, ऐसे भगवान श्री कृष्ण ने लोक कल्याण के लिए अर्जुन को कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि पर दिव्य श्रीमद् भगवदगीता जी का लोकपावन उपदेश देकर कृतार्थ किया। वह पावन दिन मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी, मोक्षदा एकादशी श्री गीता जयंती के नाम से प्रसिद्ध है। ब्रह्म मुहूर्त की बेला थी। कौरवों और पांडवों की सेनाएं युद्ध की इच्छा से धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में एकत्रित हुईं।
अर्जुन के सारथी बने अखिल ब्रह्मांड अधिपति भगवान श्रीकृष्ण। अर्जुन उन्हें अपना रथ दोनों सेनाओं के मध्य ले जाने को कहते हैं। प्रतिपक्ष की सेना में अपने गुरुजनों, अपने बड़ों और सगे-संबंधियों को देखकर अपने कर्तव्य मार्ग से विमुख और मोहग्रस्त हुए अर्जुन ने करबद्ध होकर अपने प्रभु से श्रेष्ठ, निश्चित और कल्याणकारी कर्तव्य मार्ग बताने की प्रार्थना की। तब भगवान श्री कृष्ण ने विश्व शांति एवं मानव कल्याण के लिए जो उपदेश दिया वह उपदेश श्रीमद् भगवदगीता जी के रूप में सम्पूर्ण मानवजाति का कल्याण कर रहा है। भगवान श्री कृष्ण ने सम्पूर्ण विश्व को सभी धर्म ग्रंथों में वर्णित मानव कल्याण का सारगर्भित तत्व ज्ञान योग और निष्काम कर्म योग के माध्यम से बता कर जागृत किया है। भगवान श्री कृष्ण ने सर्वप्रथम अर्जुन को सांख्य योग के माध्यम से आत्मा के शाश्वत स्वरूप का बोध कराया।
हे अर्जुन ! यह आत्मा सबके शरीर में सदा ही अवध्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है। अत: सम्पूर्ण प्राणियों के लिए तू शोक करने योग्य नहीं है।
भगवदगीता हमें कर्तव्यपरायण बनाकर कर्तव्य पलायनता से बचाती है। श्री भगवान ने अर्जुन से इस सृष्टि के सबसे अनिवार्य तत्व को कर्म तत्व के रूप बताते हुए कहा कि कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किए नहीं रहता क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृति जनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने को बाध्य किया जाता है।
इसलिए तू निरंतर आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्य कर्म को भलीभांति करता रह क्योंकि आसक्ति से रहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है। अगर तुम्हारे मन में युद्ध के प्रति कोई अपराध बोध है कि युद्ध करने से तुम्हारे हाथों से अधर्म हो जाएगा, तो उसका भी निवारण मैं किए देता हूं।
अगर तुम जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख को समान समझ कर, युद्ध करोगे इस प्रकार युद्ध करने से पाप को प्राप्त नहीं होगे क्योंकि यह युद्ध मानव जाति के कल्याण के लिए तथा विश्व में शांति की स्थापना के लिए है।
भगवान का अपने भक्तों से यह वचन है कि जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूं अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं।
साधु पुरुषों का उद्धार करने और पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए तथा धर्म की अच्छी तरह स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूं। भगवान कहते हैं :
हे अर्जुन ! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबकी आत्मा हूं तथा संपूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूं। तू सम्पूर्ण भूतों का सनातन बीज मुझको ही जान।
भगवदगीता सम्पूर्ण प्राणीमात्र को यह संदेश देती है कि ईश्वर संपूर्ण प्राणियों के हृदय में स्थित है।
भगवदगीता रूपी ज्ञान के दीपक को अनंतकाल तक जलाए रखना प्रत्येक सनातन धर्मावलम्बी का परम कर्तव्य है। आत्मा की अमरता का ज्ञान करवाने वाली भगवदगीता का ज्ञान सम्पूर्ण प्राणी मात्र के कल्याण के लिए है।
श्रीमद् भगवदगीता जी का पावन उपदेश सर्वलोकाधिपति भगवान श्रीकृष्ण जी के मुखारविन्द से निकले हुए अमृत वचन हैं जिसके ज्ञान के प्रकाश में आज सम्पूर्ण विश्व लाभान्वित हो रहा है। दया और करुणा जैसे मानवीय धर्म का ज्ञान भगवदगीता में है।
हमारा कर्तव्य है कि हम भगवान श्रीकृष्ण जी द्वारा सम्पूर्ण वेदों, उपनिषदों के सारगर्भित ज्ञान श्रीमद्भगवत गीता को श्री गीता जयंती के शुभ अवसर पर धारण करने का प्रण करें तथा इनका पूजन एवं पाठ का आयोजन करें। ज्ञान के इस पर्व पर यह प्रण लें कि हम भगवद गीता के ज्ञान के दीपक को अनंतकाल तक रौशन रखेंगे।