इस तरकीब से पाएं सम्राट अशोक जैसा जीवन

punjabkesari.in Tuesday, May 15, 2018 - 09:08 AM (IST)

आत्मबोध होना परमशांति और परमानंद में विशेष सहायक होता है। आत्मबोध होते ही मनुष्य का जीवन रूपांतरित हो जाता है। स्वयं को समझने की शक्ति उसके जीवन को सार्थक बना देती है। 

अशोक एक के बाद एक युद्ध जीतने के बाद सम्राट बन गए। लेकिन सम्राट होकर भी अशोक खु़द से हार गए। युद्धभूमि में पड़े शवों को देखकर उन्होंने खु़द से प्रश्न किया कि इतने लोगों की हत्या करके तुमने क्या जीता? 

तब उन्हें आत्मबोध हुआ कि उनके हाथ तो खाली हैं और इसके बाद वे बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में जुट गए।

जाने कब किस घड़ी जागृति आ जाए, यह कहना बड़ा मुश्किल है। साधक की साधना के साथ-साथ परमात्मा की अनंत कृपा होनी भी नितांत जरूरी है। प्रयास हमारा कर्तव्य है। बहुत किताबें पढ़ कर भी यदि स्वयं को समझने की चाहत नहीं है तो भी जन्म लेकर सालों पैदल दिशाहीन होकर चलते जाने का कोई मतलब नहीं।

आत्मबोध का मतलब है ‘अपने को जानना’। 

मैं क्या हूं, क्यों हूं जैसे तमाम प्रश्नों का उत्तर खोजना। जिसे इन प्रश्नों का जवाब मिल जाता है, उसे आत्मबोध हो जाता है और जीवन की राह उसे मिल जाती है। आत्मबोध ठीक वैसा ही है कि आप किसी चीज के बारे में जितना विस्तार से जानेंगे, उसका इस्तेमाल उतनी अच्छी तरह से कर सकेंगे।

आत्मबोध का मतलब अंधेरे कमरे में प्रवेश करना, जहां आप कुछ नहीं देख सकते। लेकिन जब खिड़की खुलती है तो प्रकाश भीतर आता है और तब आपको सब कुछ दिखने लगता है। सारा खेल प्रकाश का है। इसी प्रकाश की खोज करनी होती है वर्ना आत्मज्ञान नहीं होगा, जिसके अभाव में मनुष्य सारी जिंदगी ठोकरें खाता रहेगा।


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Niyati Bhandari

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