कैसा जीवन होता है खुशहाल और सुखमय? श्री कृष्ण से जानें !

punjabkesari.in Tuesday, Jun 02, 2020 - 05:03 PM (IST)

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खुशहाल और सुखमय जीवन जीने की चाह किसे नहीं होती। प्रत्येक व्यक्ति हर दिन इसी उम्मीद के साथ आंखें खोलता है कि आज उसका ये सपना पूरा होगा। वो अपने जीवन में वो सब हासिल कर लेगा, जिसकी वे कामना करता है। मगर क्या सोच लेने से ऐसा हो पाना संभव है? नहीं, इसके लिए जहां एक तरफ़ मेहनत करना आवश्यक माना जाता है तो वहीं दूसरी ओर श्री कृष्ण के द्वारा दिेए गए उपदेशों का मानना भी बहुत ज़रूरी है। कहा जाता है जो व्यक्ति श्री कृष्ण की इन बातों को अपने जीवन में उतार लेता है और समझ लेता है। तो चलिए आपको बताते हैं श्री कृष्ण द्वारा बताए गए उन श्लोकों के बारे में जिन में उन्होंने बताया है कि सुखी, खुशहाल और सुखमय जीवन पाने का सबसे आसान तरीका। 
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श्लोक- 
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। 
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥ 

भावार्थ : श्री कृष्ण कहते हैं कि व्यक्ति का कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। अत: उसे फल की इच्‍छा किए बिना ही कर्म करते रहना चाहिए। कर्म न करने में किसी तरह की आसक्ति नहीं होनी चाहिए। इसका अर्थात ये है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने भविष्‍य की चिंता किए बिना वर्तमान में रहते हुए सिर्फ अपने काम पर फोकस करना चाहिए। 
 

श्लोक- 
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति । 
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः ॥ 

भावार्थ: अर्जुन को ज्ञान देते हुए श्री कृष्ण कहते हैं कि ऐसा मनुष्‍य जो न कभी अति हर्षित होता है, न द्वेष करता है और न शोक करता है। और जो न कामना करता है तथा शुभ और अशुभ सम्‍पूर्ण कर्मों का त्‍यागी है। वह भक्तियुक्‍त मनुष्‍य मुझे अतिप्रिय है। इसका अर्थ कोई अति विशिष्‍ट कार्य बन जाने पर हमें अति हर्षित होने से बचना चाहिए। 
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श्लोक- 
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् । 
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥ 

भावार्थ: हर मनुष्‍य के लिए धरती पर कोई न कोई कार्य मौज़ूद है, जो कि वह करने के लिए बाध्‍य है। प्रत्‍येक व्‍यक्ति में कोई न कोई खूबी ज़रूर होती है। बस ज़रूरत हो‍ती है अपने अंदर छिपे हुनर को पहचानकर कार्य करने की।
 

श्लोक- 
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्। 
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते॥ 

भावार्थ: इसका अर्थ है कि ऐसा व्‍यक्ति जो अपनी इंद्रियों पर केवल ऊपर से नियंत्रण करने का दिखावा करता है और अंदर से उसका मन चलायमान रहता है, ऐसा व्‍यक्ति झूठा और कपटी कहलाता है। उसे जग में कभी सुख और खुशी हासिल नहीं होती। 
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Jyoti

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