दैत्य का धाम: सौ पीढ़ियों के पितरों को भी नर्क से स्वर्ग में ले जाता है
punjabkesari.in Friday, Apr 26, 2019 - 02:51 PM (IST)
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श्राद्ध के दिनों में प्रतिवर्ष देश-विदेश के लाखों हिन्दू पिंड तर्पण करने तीर्थ राज ‘गया’ पहुंचते हैं। आखिर गया में ही क्यों होते हैं पिंड तर्पण? आइए बताते हैं आपको जन विश्वास का एक पौराणिक किस्सा। एक समय गया नाम के असुर ने घोर तपस्या शुरू की, जिस कारण तमाम देवता दुखी हो उठे और उन्होंने भगवान विष्णु के पास जाकर कहा, ‘‘आप गयासुर से हमारी रक्षा कीजिए।’’
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यह सुनकर भगवान विष्णु ‘तथास्तु’ कहकर गयासुर के पास पहुंचे और उससे वर मांगने को कहा। दैत्य बोला, ‘‘भगवान! मैं सब तीर्थों से अधिक पवित्र हो जाऊं।’’
भगवान विष्णु ने कहा, ‘‘ऐसा ही होगा।’’ कह कर आकाश में ओझल हो गए।
अब सभी मनुष्य दैत्य का दर्शन करके ही भगवान के पास पहुंचने लगे। धीरे-धीरे पृथ्वी सूनी हो गई। स्वर्गवासी देवता और ब्रह्मा आदि ने भगवान विष्णु के पास जाकर शिकायत की। ‘‘स्वर्ग और पृथ्वी सभी सूने हो गए हैं। दैत्य के दर्शन से ही सब लोग आपके धाम चले गए हैं।’’
यह सुनकर विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा, ‘‘तुम संपूर्ण देवताओं के साथ गयासुर के पास जाओ और यज्ञ-भूमि बनाने के लिए उसका शरीर मांगो।’’
भगवान का यह आदेश सुनकर देवताओं सहित ब्रह्मा जी उसके पास जाकर बोले, ‘‘दैत्य प्रवर! मैं तुम्हारे द्वार पर अतिथि होकर आया हूं और तुम्हारा पावन शरीर यज्ञ के लिए मांग रहा हूं।’’
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गयासुर ने अपने इष्ट देवता के इस प्रस्ताव को सहज भाव से स्वीकार कर लिया कि यज्ञ कार्य के लिए उसके शरीर को छोड़ दूसरा कोई पवित्र स्थल है ही नहीं। यज्ञ के लिए गयासुर पीठ के बल लेट गया। उसके लेटते ही ब्रह्मा जी ने शहद की नदी, सोने का पहाड़ और दूध-दही के कुंड और 14 ब्राह्मणों को धरती से निकाल कर यज्ञ शुरू करवाया। गयासुर जब छटपटाने लगा तब विष्णु ने स्वर्ग से ‘धर्मशिला’ नामक एक चट्टान लाकर उसके शरीर पर रख दी। भारी-भरकम चट्टान रखने से गयासुर स्थिर हो गया। तब ब्रह्मा जी ने पूर्ण आहुति दी। तभी गयासुर ने देवताओं से कहा, ‘‘मेरे शरीर पर चट्टान क्यों रखी गई है? क्या मैं भगवान विष्णु के कहने मात्र से स्थिर नहीं हो सकता था? देवताओ! आपने मुझे शिला से दबा रखा है तो मुझे कुछ वरदान भी मिलना चाहिए।’’
सुनकर देवता बोले, ‘‘दैत्य प्रवर! तीर्थ निर्माण के लिए हमने तुम्हारे शरीर को स्थिर किया है। अत: यह तुम्हारा क्षेत्र भगवान विष्णु, शिव तथा ब्रह्मा जी का निवास स्थान होगा। सब तीर्थों से बढ़कर इसकी र्कीत होगी तथा पितर आदि के लिए यह क्षेत्र ब्रह्मा लोक प्रदान करने वाला होगा।’’ कह कर सब देवता वहीं रहने लगे।
ब्रह्मा जी ने यज्ञ पूर्ण करके ब्राह्मणों को दक्षिणा दी। पांच कोस का गया क्षेत्र और पचपन गांव अर्पित किए। यही नहीं, उन्होंने सोने के अनेक पर्वत बना कर दिए, दूध और शहद की धारा बहने वाली नदियां समर्पित कीं। दही और घी के सरोवर प्रदान किए। अन्न आदि के पहाड़, कामधेनु गाय, कल्प वृक्ष तथा सोने-चांदी के घर भी दिए।
ये सब वस्तुएं देते हुए ब्रह्मा जी ने ब्राह्मणों से कहा, ‘‘विप्रवरो! अब तुम मेरी अपेक्षा अल्प शक्ति रखने वाले अन्य व्यक्तियों से कभी याचना न करना।’’ तत्पश्चात धर्म यज्ञ किया।
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उस यज्ञ में लोभवश धन आदि का दान लेकर जब ब्राह्मण पुन: गया में स्थित हुए तो ब्रह्मा जी ने उन्हें शाप दिया, ‘‘अब तुम लोग विद्या विहीन और लोभी हो जाओगे। इन नदियों में अब दूध का अभाव हो जाएगा और सोना पत्थर बन जाएगा।’’
तब ब्राह्मणों ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की, ‘‘भगवान आपके श्राप से हमारा सब कुछ नष्ट हो गया, अब हमारी जीविका के लिए कुछ प्रबंध कीजिए।’’
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यह सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा, ‘‘अब इस तीर्थ में ही तुम्हारी जीविका चलेगी। जब तक सूर्य और चांद रहेंगे तब तक इसी वृत्ति से तुम जीवन निर्वाह करोगे। जो लोग गया तीर्थ में आएंगे वे तुम्हारी पूजा करेंगे। जो हृदय, धन और श्राद्ध आदि के द्वारा तुम्हारा सत्कार करेंगे, उनकी सौ पीढिय़ों के पितर नर्क से स्वर्ग में चले जाएंगे और स्वर्ग में ही रहने वाले पितर परमपद को प्राप्त होंगे।’’
कहते हैं तभी से गया में श्राद्ध करने की परम्परा चल पड़ी जो आज तक चली आ रही है। श्राद्ध के दिनों में विदेशों में बसे हिन्दू भी यहां आकर अपने पूर्वजों को पिंड तर्पण करते हैं।