हकीकत या फसाना: ऋषि पत्नी की आबरू लूटने के कारण नहीं होती देवराज इन्द्र की पूजा !
punjabkesari.in Friday, Sep 26, 2025 - 03:08 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Ramayana: रामायण काल में महर्षि विश्वामित्र राक्षसी ताड़का के वध के लिए अयोध्या से प्रभु श्री राम एवं लक्ष्मण जी को लेकर आए। ताड़का वध के बाद भगवान श्री राम की नजर एक तरफ वीरान पड़ी कुटिया पर पड़ी तो वह वहां गए तथा महर्षि विश्वामित्र से पूछा- हे गुरुवर! कुटिया किसकी है? जहां इतनी वीरानी है। लगता है युगों से यहां कोई आया-गया नहीं है। कोई पशु-पक्षी भी इस सुन्दर कुटिया में नजर नहीं आ रहा है।
तब महर्षि विश्वामित्र ने कहा- यह कुटिया वर्षों से तुम्हारे आने का इन्तजार कर रही है। इस कुटिया में जो आप शिला देख रहे हैं यह तुम्हारे चरणों की धूल की युगों से प्रतीक्षा कर रही है।
फिर भगवान श्री राम ने महर्षि विश्वामित्र से पूछा कि आखिर इतने वर्षों से यह शिला क्यों मेरे चरणों की धूल की प्रतीक्षा कर रही है। इतना सुनकर महर्षि विश्वामित्र ने भगवान श्री राम एवं लक्ष्मण जी को अहिल्या की कथा सुनाई।
Ahilya Devi Story अहिल्या की कथा: सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा ने एक स्त्री का निर्माण किया, जिन्हें वह अहल्या के नाम से पुकारते थे। अहल्या बहुत सुन्दर थीं तथा उन्हें यह वरदान भी प्राप्त था कि वह चिरयुवा रहेंगी। उनकी सुन्दरता के सामने स्वर्गलोक की अप्सराएं भी फीकी नजर आती थीं। उनकी सुन्दरता के कारण सभी देवता उन्हें पाने की इच्छा रखते थे। वह ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थीं। ब्रह्मा जी ने एक परीक्षा का आयोजन किया तथा उस परीक्षा के विजेता से वह अहिल्या की शादी करना चाहते थे। सभी देवता उस अवसर पर उपस्थित हुए। महर्षि गौतम ने यह परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी कारण विधिपूर्वक अहल्या से उनका विवाह सम्पन्न हुआ।
अहिल्या की सुन्दरता पर इन्द्र देव मोहित थे। एक दिन इन्द्र देव की प्रेमवासना पृथ्वी लोक पर अहल्या से मिलने को खींच लाई मगर महर्षि गौतम के रहते इन्द्र देव कोई दुस्साहस नहीं कर सके। तब इन्द्र देव ने चन्द्र देव से मिलकर योजना बनाई कि जब ऋषि गौतम प्रात: काल गंगा स्नान के लिए जाएंगे, उस समय का लाभ उठाकर वह अहिल्या को प्राप्त कर लेंगे।
चन्द्र देव ने अर्धरात्रि को मुर्गे की बांग दी। ऋषि गौतम अर्धरात्रि ही प्रात: काल समझ कर गंगा तट पर स्नान करने चल पड़े। इनके जाते ही इन्द्र देव ने गौतम ऋषि का रूप धारण कर गृह में प्रवेश किया तथा पहरेदारी के लिए चन्द्र देव को बाहर बैठा दिया।
ऋषि को गंगा तट पर पहुंच कर अलग ही आभास हुआ तथा सन्देह भी। तब गंगा मैया ने प्रकट होकर ऋषि को बतलाया कि यह सब जाल इन्द्र देव का बनाया हुआ है। अहिल्या की सुन्दरता से मोहित होकर कुकृत्य की भावना से इन्द्र पृथ्वी लोक पर आए हैं तभी क्रोधित ऋषि तेजी से कुटिया की तरफ गए।
जब उन्होंने कुटिया के बाहर चन्द्र देव को देखा तो उन्हें श्राप दे दिया कि राहू की कुदृष्टि तुम पर सदा बनी रहेगी। इसी श्राप के कारण चन्द्र को ग्रहण लगता है तथा क्रोधित ऋषि ने कमंडल से उन पर प्रहार किया। इसी कारण चन्द्र में दाग है।
इन्द्र देव को ऋषि गौतम के आने का आभास हो गया तब वह वहां से भागने लगे। ऋषि ने इन्द्र को नपुंसक होने एवं अखंड होने का श्राप दिया तथा सम्मान की दृष्टि से कभी न देखे जाने का श्राप दिया तथा पृथ्वी लोक में पूजा न होने की बात कही। भागते समय इन्द्र अपने असल रूप में आ गए तब अहल्या को सत्य का ज्ञान हुआ, मगर तब तक अनहोनी हो चुकी थी जिसमें अहल्या की कोई गलती नहीं थी। उनके साथ तो इन्द्र ने छल किया था। उस समय ऋषि काफी क्रोध में थे। उन्होंने अहल्या को अनन्त समय तक एक शिला के रूप में परिवर्तित होने का श्राप दे दिया। जब ऋषि गौतम का गुस्सा शांत हुआ तो उन्हें आभास हुआ कि इस सारे प्रकरण में अहल्या की कोई गलती नहीं है, परंतु वह अपना श्राप वापस नहीं ले सकते थे। इसी श्राप के कारण वह काफी दुखी थे। तब उन्होंने अहिल्या की शिला से कहा कि जब तुम्हारी शिला पर किसी दिव्य आत्मा के चरणों की धूल स्पर्श करेगी तो तुम अपने असली रूप में आ जाओगी। इतना कहकर ऋषि वहां से चले गए।
माता अहिल्या की पूरी कथा सुनने के बाद भगवान श्री राम ने अपने चरणों को उस शिला का स्पर्श किया। चरण स्पर्श होते ही शिला अहिल्या के रूप में परिवर्तित हो गई। तब भगवान श्री राम अहिल्या से कहते हैं- देवी! इस सारे प्रकरण में आपका कई दोष नहीं है। अब ऋषि गौतम भी आप से क्रोधित नहीं हैं।
अहिल्या के अपने वास्तविक रूप में आते ही वीरान-सुनसान कुटिया में फिर से बहार आ गई। पक्षी चहकने लगे। इस प्रकार प्रभु श्री राम ने देवी अहिल्या का उद्धार किया।