Gautam Budha: मन का स्थिर होना आवश्यक, कभी नहीं मिलती शांति
punjabkesari.in Saturday, Jun 25, 2022 - 09:36 AM (IST)

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एक बौद्ध भिक्षु ने कई देशों में घूमकर अलग-अलग कलाएं सीखीं। एक देश में जाकर उसने किसी व्यक्ति से बाण बनाने की कला सीखी। कुछ दिनों बाद वह फिर किसी अन्य देश गया वहां अधिक मात्रा में नावें बनाई जाती थीं, तो उसने नाव बनाने की कला सीखी। फिर वह किसी तीसरे देश में गया और वहां गृह निर्माण की कला सीख ली। इसी तरह वह भिक्षु सोलह देशों में गया और सभी देशों से अलग-अलग कला सीखकर अंत में अपने देश आया।
जब भिक्षु अपने देश पहुंचा तो वह अहंकार से ग्रस्त हो चुका था। वह सभी लोगों से कहता रहता कि इस दुनिया में मुझ जैसा बुद्धिमान व चतुर व्यक्ति कोई नहीं है।
भगवान बुद्ध ने उस अहंकार से भरे भिक्षु को उच्चतर कला सिखानी चाही और वह एक वृद्ध भिखारी का वेश बनाकर हाथ में भिक्षा पात्र लेकर उसके पास गए।
भिक्षु ने बड़े ही अभिमान से पूछा, कौन हो तुम। बुद्ध बोले, मैं आत्म विजय का पथिक हूं। भिक्षु को समझ नहीं आया, उसने इस शब्द का अर्थ जानना चाहा। बुद्ध बोले कोई बाण बना सकता है। नाव चालक नाव पर नियंत्रण रख सकता है और गृह निर्माता घर भी बना लेता है, परन्तु वह तो महा विद्वान ही होगा, जो अपने शरीर व मन पर विजय पा सके। चाहे संसार उसकी प्रशंसा करे या उसे अपशब्द कहे दोनों ही दशाओं में जिसका मन स्थिर रहे वही शांति को प्राप्त करता है। गौतम बुद्ध की इन बातों को सुनकर भिक्षु को अपनी भूल का एहसास हुआ और उनके चरणों में नतमस्तक हो गया।