Ganga Aarti: वाराणसी के दो घाटों पर ही क्यों गूंजता है हर-हर गंगे, जानिए इसका आध्यात्मिक रहस्य
punjabkesari.in Wednesday, Jun 11, 2025 - 07:00 AM (IST)
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Ganga Aarti: जैसे ही शाम का समय पास आता है और सूरज धीरे-धीरे पश्चिम की ओर ढलने लगता है, गंगा नदी के किनारे एक अलौकिक दृश्य आकार लेने लगता है। वाराणसी के प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट पर गतिविधियां तेज हो जाती हैं। श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा और उत्सुकता से घाट की सीढ़ियों पर अपनी जगह लेने लगते हैंताकि वे इस दिव्य दृश्य के साक्षी बन सकें।
गंगा के शांत जल पर जब दीपों की रोशनी झिलमिलाती है, तो ऐसा लगता है मानो प्रकृति स्वयं इस आराधना में सम्मिलित हो गई हो। मंत्रोच्चारण, शंखनाद और घंटियों की ध्वनि पूरे वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती है। आरती का यह आयोजन न सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह एक ऐसा अनुभव है जो आत्मा को भीतर तक छू जाता है।

खास बात यह है कि यह दिव्य गंगा आरती वाराणसी में मुख्य रूप से दशाश्वमेध घाट और अस्सी घाट पर ही आयोजित की जाती है। अब सवाल यह उठता है कि क्यों सिर्फ इन्हीं दो घाटों को आरती के लिए चुना गया है ? इसके पीछे गहरा धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व छिपा है।
दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती
दशाश्वमेध घाट, वाराणसी के सबसे प्राचीन और प्रमुख घाटों में से एक है, जो काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप स्थित है। यह स्थान धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह भगवान शिव को समर्पित नगर में स्थित है और गंगा नदी से सीधा संबंध रखता है। माना जाता है कि गंगा का प्रवाह शिवजी की जटाओं से निकलकर पृथ्वी पर आया था, इसलिए गंगा की आरती केवल नदी की नहीं, बल्कि शिव की अप्रत्यक्ष पूजा भी मानी जाती है।

इस घाट का नाम दशाश्वमेध इसलिए पड़ा क्योंकि पुराणों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने इसी स्थान पर दस अश्वमेध यज्ञों का आयोजन किया था। यही कारण है कि यह घाट धार्मिक अनुष्ठानों और विशेष आयोजनों के लिए आदिकाल से ही एक प्रमुख स्थल रहा है। इसकी पौराणिकता और दिव्यता के कारण ही यहां प्रतिदिन संध्या के समय गंगा आरती का आयोजन एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव बन गया है।

अस्सी घाट पर गंगा आरती का महत्व
अस्सी घाट वाराणसी के प्रमुख और ऐतिहासिक घाटों में से एक है, जिसकी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता बहुत गहरी है। यह घाट उस स्थान पर स्थित है जहां गंगा नदी और एक छोटी धारा, अस्सी नदी, का संगम होता है। इसी संगम के कारण यह स्थान आध्यात्मिक दृष्टि से और भी पवित्र माना जाता है।
अस्सी घाट से कई पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, देवी दुर्गा ने जब शुंभ और निशुंभ नामक राक्षसों का वध किया, तब उन्होंने अपनी तलवार इसी स्थान पर फेंकी थी। कहा जाता है कि जहां वह तलवार गिरी, वहीं से अस्सी नदी का प्रकट होना हुआ। इसी वजह से इस घाट को 'अस्सी घाट' कहा जाता है और यह भक्तों के लिए विशेष आस्था का केंद्र बना हुआ है।

