ईश्वर या भाग्य के भरोसे बैठे रहना है कायरता

punjabkesari.in Sunday, Apr 01, 2018 - 03:24 PM (IST)

कुछ ही लोग खुद की खोज में मंदिर आते हैं, अधिकांश तो चमत्कार की उम्मीद में आते हैं। इसे हमारी परम्परा और पंथों का समर्थन हासिल है। चमत्कार पर भरोसे के कारण पुरुषार्थ दोयम दर्जे पर चला गया है। श्रमण परम्परा भी इससे अलग नहीं है जबकि भगवान महावीर के संदेशों में प्रमुख रूप से पुरुषार्थ की ही प्रतिष्ठा है। 30 वर्ष की उम्र में महावीर ने राजमहलों का सुख-वैभवपूर्ण जीवन त्याग कर तपोमय साधना का रास्ता लिया। उनका वह साढ़े 12 वर्षों का साधना-जीवन कष्टों का जीवंत इतिहास है। इस कठोर जीवन का उद्देश्य आत्मकल्याण तो था ही, जनकल्याण भी उनके साथ जुड़ा हुआ था। वह बंधनों से स्वयं के साथ-साथ जन-जन को भी मुक्त करना चाहते थे। केवल ज्ञान की प्राप्ति के बाद जन-जन के कल्याण और अभ्युदय के लिए महावीर ने धर्म-तीर्थ का प्रवर्तन किया। उन्होंने साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका-इन 4 तीर्थों की स्थापना की इसलिए वह तीर्थकर कहलाए। यहां तीर्थ का अर्थ लौकिक तीर्थों से नहीं बल्कि अहिंसा, सत्य आदि की साधना द्वारा अपनी आत्मा को ही तीर्थ बनाने से है।


उन्होंने स्पष्ट किया कि ईश्वर या भाग्य के भरोसे बैठे रहना कायरता है। परमात्मा हमारा आदर्श जरूर है लेकिन अपने सुख-दुख के लिए जिम्मेदार हम खुद हैं। अपने भाग्य के निर्माता हम स्वयं हैं। जैसा हमारा पुरुषार्थ होगा वैसा ही हमारा भाग्य होगा। उन्होंने आत्मकर्तृत्व और पुरुषार्थ के इस संदेश के माध्यम से ईश्वरवाद और भाग्यवाद में फंसे देश को नवनिर्माण का क्रांतिकारी उद्बोधन दिया। पुरुषार्थ का अर्थ है कि गहन अंधकार के क्षणों में भी हमें ऐसा कुछ करना चाहिए जिससे रास्ता मिल सके और सद्गुणों का विस्तार भी हो सके। इसके लिए महावीर ने उसके आधार में अहिंसा की दृष्टि दी और कहा, ‘‘सबको जीवन प्रिय है, मरण कोई नहीं चाहता इसलिए किसी का प्राणहरण पाप है। वाणी और कर्म से किसी को दुख देना, किसी को गुलाम बनाना, औरों का हक छीनना और किसी की उपेक्षा भी हिंसा है।’’ उन्होंने समतामूलक पुरुषार्थ को व्यक्ति के लिए अनंत आनंद का द्वार बताया। पुरुषार्थ का मतलब ही है अपना किया हुआ कर्म। यह हमेशा बोध कराता है कि क्या सही है और क्या गलत। यह भी कि कुछ किए बिना फल नहीं मिलता। पुरुषार्थी जब अपने लक्ष्य में सफल होता है उसे भाग्य का भी साथ मिलने लगता है और उसके मन से पराजय की आशंका खत्म हो जाती है।


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Jyoti

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