Empire of Atlantium: अटलांटियम साम्राज्य की अनोखी कहानी, तीन दोस्तों ने मिल कर बना लिया अपना अलग देश

punjabkesari.in Monday, Sep 22, 2025 - 02:00 PM (IST)

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Empire of Atlantium: कल्पना कीजिए, आप और आपके दो दोस्त मिल कर अपने घर के आंगन में एक नया देश रच देते हैं। अपना झंडा, अपनी मुद्रा, अपना राष्ट्रगान और यहां तक कि अपना सम्राट भी! यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में 44 साल पहले घटी एक वास्तविक घटना है।

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तीन युवा दोस्तों ने साहसिक प्रयोग के तहत ‘अटलांटियम साम्राज्य’ की नींव रखी, जो आज दुनियाभर में माइक्रोनेशनों के सबसे चर्चित उदाहरणों में से एक है। आइए इस रोचक सफर की पड़ताल करें, जहां सपने और वास्तविकता की सीमाएं धुंधली हो जाती हैं।
शुरुआत : एक छोटी-सी लकीर से बड़ा सपना

1981 में सिडनी के रहने वाले जॉर्ज क्रूइकशैंक और उनके दो साथियों ने कुछ अलग करने की ठानी। उन्होंने अपने घर के पीछे महज 10 वर्ग मीटर की जमीन पर एक काल्पनिक सीमारेखा खींची और घोषणा कर दी कि यहां से शुरू होता है हमारा अपना देश! क्रूइकशैंक ने खुद को सम्राट घोषित किया और इस नए ‘साम्राज्य’ का नाम रखा अटलांटियम।

एक रिपोर्ट में इसकी जड़ें बताई गई हैं, जहां ये दोस्त राजनीति, इतिहास और स्वतंत्रता के विचारों से प्रेरित थे। शुरू में ये मजाक जैसा लगा, लेकिन उन्होंने इसे गंभीरता से लिया। अपना झंडा डिजाइन किया, मुद्रा छापी, डाक टिकट जारी किए और एक भावपूर्ण राष्ट्रगान भी रचा।

यह सिर्फ खेल नहीं था, एक वैचारिक प्रयोग था। क्रूइकशैंक का मानना था कि देश बनाने के लिए बड़े क्षेत्र या सेनाओं की जरूरत नहीं, बल्कि इच्छाशक्ति और रचनात्मकता काफी है। क्या आप जानते हैं? दुनिया में ऐसे सैंकड़ों माइक्रोनेशन हैं, जो खुद को संप्रभु मानते हैं, लेकिन वैश्विक मानचित्र पर कहीं नजर नहीं आते।

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राजधानी से पिरामिड तक
समय के साथ अटलांटियम ने पंख फैलाए। 2008 में, क्रूइकशैंक ने सिडनी से 350 किलोमीटर दूर 80 हैक्टेयर जमीन खरीदी और इसे अपनी राजधानी ‘ऑरोरा’ घोषित कर दिया। अब यह छोटा-सा साम्राज्य एक जीवंत जगह बन चुका है। यहां एक सरकारी आवास है, जहां ‘सम्राट’ अपने सप्ताहांत बिताते हैं। एक छोटा डाकघर है, जहां से टिकट और कार्ड जारी होते हैं और सबसे आकर्षक 13 फुट ऊंचा एक पिरामिड, जो कैपिटलाइन स्तंभ के सामने खड़ा है, मानो प्राचीन सभ्यताओं की याद दिलाता हो।

क्रूइकशैंक आज भी सक्रिय हैं। वे कॉनकॉर्डिया प्रांत में रहकर नीतियां बनाते हैं, दुनिया के अन्य माइक्रोनेशनों के नेताओं से पत्र व्यवहार करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि अटलांटियम की आबादी अब 3,000 से ज्यादा है और ये नागरिक 100 से अधिक देशों से आते हैं। लेकिन ज्यादातर ने कभी इस देश’ की मिट्टी नहीं छुई ! नागरिकता ऑनलाइन फॉर्म भरकर मिलती है और यह एक वैश्विक समुदाय की तरह काम करता है। विचारों का आदान-प्रदान, सांस्कृतिक जुड़ाव और हल्की-फुल्की राजनीति।

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क्या है माइक्रोनेशन की हकीकत?
अब सवाल यह है कि क्या अटलांटियम सचमुच एक देश है? क्रूइकशैंक का दावा है कि यह 1933 के मोंटेवीडियो सम्मेलन के सभी मानकों पर खरा उतरता है। स्थायी जनसंख्या, निश्चित क्षेत्रफल, अपनी सरकार और अंतर्राष्ट्रीय संबंध लेकिन सच्चाई यह है कि कोई भी देश या अंतरराष्ट्रीय संगठन इसे मान्यता नहीं देता। सिडनी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ हैरी हॉब्स कहते हैं, ‘माइक्रोनेशन खुद को देश कह सकते हैं, लेकिन बिना बाहरी मान्यता के वे सिर्फ एक कल्पना रह जाते हैं।’

माइक्रोनेशनों की दुनिया बड़ी विचित्र है। ये वे जगहें हैं, जहां लोग अपनी स्वतंत्रता घोषित कर देते हैं, लेकिन कानूनी तौर पर उनके पास कोई संप्रभु अधिकार नहीं होता। कुछ राजनीतिक असंतोष से जन्म लेते हैं, कुछ मजाक में और कुछ गंभीर सामाजिक प्रयोग के रूप में। उदाहरण के लिए, अटलांटियम जैसे राष्ट्र पर्यावरण, शांति या वैश्विक नागरिकता जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

सपनों की कोई सीमा नहीं
अटलांटियम की कहानी हमें याद दिलाती है कि मानव कल्पना की कोई सीमा नहीं। तीन दोस्तों का यह छोटा-सा प्रयोग आज हजारों लोगों को प्रेरित कर रहा है। अगर आप भी कुछ हट कर सोचते हैं तो शायद आपका अपना ‘साम्राज्य’ इंतजार कर रहा हो! लेकिन याद रखें, असली दुनिया में सीमाएं और कानून अपनी जगह कायम रहते हैं, तो क्या आप ऐसे किसी माइक्रोनेशन में शामिल होना चाहेंगे?   

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Content Writer

Niyati Bhandari

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