काल से रक्षा करने वाली सातवीं दुर्गा का नाम है कालरात्रि
punjabkesari.in Monday, Oct 19, 2015 - 09:21 AM (IST)

नवरात्र के सप्तम दिवस पर नव दुर्गा की सातवीं शक्ति मां कालरात्रि के पूजन का विधान है। काल से रक्षा करने वाली शक्ति को कालरात्रि कहा जाता है। अपने महा विनाशक गुणों से शत्रु एवं दुष्ट लोगों का संहार करने वाली सातवीं दुर्गा का नाम कालरात्रि है । मां कालरात्रि के शरीर का रंग अंधकार की तरह गहरा काला है, इनके केश बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत सदृश चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्मांड की तरह गोल हैं, इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। इनकी नासिका से श्वास, निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं।
चाहे यह भगवान शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं लेकिन हमेशा अपने भक्तों को शुभ फल प्रदान करती हैं इसीलिए इनका एक नाम ''शुभंकारी'' भी है। एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर और दूसरे हाथ में खड़क तलवार से युद्ध स्थल में उनका नाश करने वाली कालरात्रि अपने विकट रूप में नजर आती हैं। इनकी सवारी गधर्व यानि गधा है जो समस्त जीव-जन्तुओं में सबसे ज्यादा परिश्रमी और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण करा रहा है। नवरात्र सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है। इस दिन से भक्त जनों के लिए देवी द्वार खुल जाता है और भक्तगण पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन हेतु पूजा स्थल पर जुटने लगते हैं। इस दिन तांत्रिक मतानुसार देवी पर मदिरा का भोग भी लगाया जाता है।
दुर्गा सप्तशती के प्रधानिक रहस्य में बताया गया है कि जब देवी ने इस सृष्टि का निर्माण शुरू किया और ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का प्रकटीकरण हुआ उससे पहले देवी ने अपने स्वरूप से तीन महादेवीयों को भी उत्पन्न किया। सर्वेश्वरी महालक्ष्मी ने ब्रह्माण्ड को अंधकारमय और तामसी गुणों से भरा हुआ देखकर सबसे पहले तमसी रूप में जिस देवी को उत्पन्न किया वह देवी ही कालरात्रि हैं।
उपासना मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्मा खरास्थिता |
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ||
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा |
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिभयंकरी ||