कबीर वाणी: जीवन में सुख-शांति को बरकरार रखने के लिए पढ़ें संत कबीर के दोहे

punjabkesari.in Wednesday, Sep 11, 2024 - 09:30 AM (IST)

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सुमिरन तू घट में करै, घट ही में करतार।
घट ही भीतर पाइये, सुरति शब्द भंडार।।

तू सुमिरन अपने घाट यानी हृदय के भीतर कर रहा है। इसी घाट के भीतर वह परमात्मा भी है। इसी घाट के भीतर तुझे सत्य-ज्ञान का अपार भंडार भी मिल जाएगा, अर्थात जहां तू, वहीं परमात्मा तथा उसके अलौकिक ज्ञान का भंडार है।

थोड़ा सुमिरन बहुत सुख, जो करि जानै कोय।
हरदी लगै न फिटकरी, चोखा ही रंग होय।।

PunjabKesari Doha of Kabir

यदि थोड़ा भी सुमिरन करें तो बहुत सुख मिलता है परन्तु इसे वही जानता है जो इसे करता है। सुमिरन करना इतना सुगम है कि इसमें कुछ भी खर्च नहीं होता, परन्तु इसका रंग (फल) बहुत सुंदर होता है।

तू तू करता तू भया, तुझ में रहा समाय।
तुझ मांहि मन मिलि रहा, अब कहुं अनत न जाए।।

हे हृदय मंदिर के अविनाशी आत्मा राम, तेरा सुमिरन करते-करते मैं, मैं नहीं रहा। मैं तो तुझ जैसा ही हो गया हूं, तुझ में ही मिल गया हूं। अब मेरा मन पूरी तरह तुझ में ही मिल गया है। अब वह किसी अन्य स्थान पर नहीं लगता। अब मैं और तू एक हो गए हैं।

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दुख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करै, तो दुख काहे को होय।।

यह संसार बड़ा स्वार्थी है। यहां दुख में तो सभी परमात्मा का सुमिरन करते हैं, परन्तु सुख में कोई नहीं करता। मोह-माया के सुखों में सब उसे भूल जाते हैं।
यदि सुख में ही सुमिरन करते रहें तो फिर दुख हो ही क्यों। अत: दुख-सुख में समान रूप से सुमिरन करना चाहिए।

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Content Editor

Prachi Sharma

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