क्या आप जानते हैं, क्यों चढ़ाया जाता है शनिदेव को तेल ?

punjabkesari.in Monday, Jun 03, 2019 - 04:19 PM (IST)

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आज दिनांक 03 जून दिन सोमवार को शनि जयंती का पर्व मनाया जा रहा है। कहते हैं कि सूर्य पुत्र शनि को न्याय प्रिय देव के रूप में जाना जाता है। आज यानि शनि जयंती के दिन इनकी पूजा का विशेष विधान होता है। शनिवार और शनि जयंती के दिन इन्हें तेल चढ़ाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। आज भी बहुत बड़ी संख्या में लोग इन्हें तेल चढ़ाने जाते हैं। लेकिन क्या इसके पीछे की वजह कोई जानता है। अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको इससे जुड़े दो तथ्यों के बारे में बताएंगे।     
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कुछ ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार हमारे शरीर के सभी अंगों में अलग-अलग ग्रहों का वास होता है यानि सभी अंगों के कारक ग्रह शनि माने जाते हैं। शनिदेव त्वचा, दांत, कान, हड्डियां और घुटनों के कारक ग्रह हैं। अगर कुंडली में शनि अशुभ स्थिति में है तो इन अंगों से संबंधित परेशानियां व्यक्ति को झेलनी पड़ सकती हैं। इन अंगों की विशेष देखभाल के लिए हर शनिवार तेल मालिश की जानी चाहिए। शनि को तेल अर्पित करने का अर्थ यह है कि हम शनि से संबंधित शरीर के अंगों पर भी तेल लगाएं, ताकि इन अंगों को स्वास्थ्य लाभ मिले और इन बीमारियों से बचा जा सके और इन सबके लिए सरसों का तेल ही उपयुक्त होता है। 
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एक प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में शनि को अपने बल पर घमंड हो गया था। उस काल में हनुमान जी के साहस और बल की कीर्ति फैल हुई थी। जब शनि को ये बात मालूम हुई तो वे हनुमान से युद्ध करने निकल पड़े। हनुमान श्रीराम की भक्ति में लीन थे, वे ध्यान कर रहे थे। तभी शनिदेव ने उन्हें युद्ध के ललकारा। उन्होंने शनिदेव को समझाया कि वे अभी ध्यान कर रहे हैं और वे युद्ध करना नहीं चाहते हैं। शनिदेव नहीं माने और युद्ध के लिए ललकारने लगे। इसके बाद हनुमान ने शनि को बुरी तरह परास्त कर दिया। हनुमान के प्रहारों से शनिदेव के पूरे शरीर में दर्द होने लगा। तब बजरंगबली ने शनि को शरीर पर लगाने के लिए तेल दिया। तेल लगाते ही शनिदेव का दर्द दूर हो गया। तभी से शनिदेव को तेल अर्पित करने की परंपरा शुरु हुई।
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