जानें क्या है व्रत रखने का धार्मिक और वैज्ञानिक तर्क?

punjabkesari.in Sunday, Oct 24, 2021 - 01:36 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिंदू धर्म एक ऐसा धर्म है जिसकी हर परम्परा में वैज्ञानिक तर्क होता है, आइए कुछ परम्पराओं के बारे में चर्चा करते हैं। दरअसल हम बात कर रहे हैं हिंदू धर्म में जब भी कोई भी पूजा-पाठ या त्यौहार होता है तो आमतौर पर व्रत रखने की परम्परा देखने को मिलती है। व्रत का अर्थ है मन इंद्रियों को सात्विकता पूर्ण एकाग्र करने का संकल्प धारण करना तथा उपवास करना। उपवास (उप+वास) ईश्वर के ध्यान में बैठना। अक्सर कहते सुनते हैं कि व्रत करने से भगवान खुश होते हैं। वास्तव में भगवान मनुष्य के स्वस्थ रहने व अच्छे कर्मों से खुश होते हैं मात्र मनुष्य के भूखे रहने से खुश नहीं होते। व्रत का अभिप्राय: भूखा रहना नहीं अपितु, दृढ़ संकल्पित व सयंमित होकर अपने शरीर को विषाणु मुक्त करने की एक स्वच्छ प्रणाली है। व्रत को हमारे ऋषि मुनियों ने अपनी ध्यान साधना में महत्वपूर्ण बताया है।

व्रत करने से शरीर के आंतरिक अंगों को विश्राम मिलता है और उनकी सफाई होती है। आज मनुष्य स्वाद एवं आदतों के अधीन हो गया है बिना भूख के भी असमय खाना विभिन्न रोगों को निमंत्रण देता है। जिससे शरीर में वात, पित्त और कफ का संतुलन बढ़ने लगता है जो मनुष्य शरीर में सभी प्रकार के रोगों की जड़ होते हैं। इसीलिए व्रत करने से शरीर में वात, पित और कफ का स्तर संतुलित बना रहता है। मनुष्य स्वस्थ रहता है। पुराणों के अनुसार व्रत का पालन धार्मिक दृष्टिकोण के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी माना गया है।  

वैज्ञानिक तर्क: आयुर्वेद के अनुसार व्रत करने से पाचन क्रिया अच्छी रहती है और फलाहार लेने से शरीर का ‘डीटॉक्सीफिकेशन’ होता है अर्थात पेट में तेजाब आदि एकत्र नहीं होता। शरीर में से खराब तत्व बाहर निकल जाते हैं। शोधकर्तओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा भी कम हो जाता है। हृदय संबंधी रोग, मधुमेह जैसे कितने ही रोग हैं जो जल्दी शरीर को नहीं लगते।

इसके अलावा चरण स्पर्श करने का कारण-
हिंदू मान्यता के अनुसार जब भी आप अपने से बड़े किसी व्यक्ति से मिलें तो उनके चरण स्पर्श करें। यह हमें बच्चों को भी सिखाना चाहिए कि ऐसा करने से बड़ों का आदर होता है।

वैज्ञानिक तर्क: मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और सामने वाले के पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है। इसे ‘कॉस्मिक एनर्जी’ का प्रवाह कहते हैं। इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है या तो बड़े के पैरों से होते हुए छोटे के हाथों तक या फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक। -डा. मदन लाल


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Content Writer

Jyoti

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