देवउठनी एकादशी: कल जागेंगे भगवान, जानें किस घर में करेंगे वास

punjabkesari.in Monday, Oct 30, 2017 - 11:12 AM (IST)

कल मंगलवार दि॰ 31.10.17 को कार्तिक शुक्ल ग्यारस के उपलक्ष्य में देवउठनी एकादशी अर्थात प्रबोधिनी एकादशी मनाई जाएगी। आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देव शयन करते हैं व कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन उठते हैं। अतः इसे देवोत्थान कहते हैं। इस दिन विष्णु क्षीर सागर में निंद्रा अवस्था से चार माह के उपरांत जागते हैं। विष्णु के शयन के चार माह में सभी मांगलिक कार्य निषेध होते हैं। हरि के जागने के बाद ही मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। श्रीहरी को चार मास की योग-निंद्रा से जगाने हेतु घण्टा, शंख, मृदंग वाद्यों की मांगलिक ध्वनि के बीच श्लोक पढ़ें जाते हैं। पद्मपुराण के उत्तरखंड में वर्णन है, प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने से हजार अश्वमेध व सौ राजसूय यज्ञों का फल मिलता है। 


देवोत्थान की कथा अनुसार नारायण ने लक्ष्मी से कहा था कि मैं प्रति वर्ष चातुर्मास वर्षा ऋतु में शयन करूंगा। उस समय सर्व देवताओं को अवकाश होगा। मेरी यह निंद्रा अल्पनिंद्रा व प्रलयकालीन महानिंद्रा कहलाएगी। यह योगनिंद्रा भक्तों हेतु परम मंगलकारी रहेगी। जो लोग मेरे शयन व उत्थापन में मेरी सेवा करेंगे, मैं उनके घर में तुम्हारे सहित निवास करूंगा। प्रबोधिनी एकादशी के विशेष व्रत, पूजन व उपाय करने से दुर्भाग्य समाप्त होता है तथा भग्यौदय होता है। दुख-दरिद्रता घर से दूर होती है तथा घर में लक्ष्मी नारायण का वास होता है।  


विशेष पूजन विधि: भगवान विष्णु का षोडशोपचार पूजन करें। गौघृत में सिंदूर मिलाकर 11 दीपक करें, 11 केले, 11 खजूर, और 11 गोल फल चढ़ाएं। गूगल धूप करें, कमल का फूल चढ़ाएं व रोली चढ़ाएं। घी-गुड़ का भोग लगाएं तथा तुलसी की माला से इस विशेष मंत्र से 1 माला जाप करें। पूजन के बाद भोग किसी ब्राह्मण को दान करें।  


पूजन मुहूर्त: दिन 11:42 से दिन 12:26 तक।


पूजन मंत्र: ॐ श्रीमहाविष्णवे देवदेवाय नमः॥ 


उपाय
दरिद्रता के नाश हेतु पीली सरसों सिर से वारकर श्रीहरि के समीप कर्पूर से जला दें।


पारिवारिक भग्यौदय हेतु केले के पेड़ का पूजन करके उसकी 365 परिक्रमा लगाएं।


दुर्भाग्य से मुक्ति के लिए शालिग्राम जी का शहद से अभिषेक करें।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com


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