Dev Uthani Ekadashi Katha: देवउठनी एकादशी पर पढ़ें ये पावन कथा, बनेगा हर काम आसान
punjabkesari.in Wednesday, Oct 29, 2025 - 07:41 AM (IST)
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Dev Uthani Ekadashi Katha: एक समय की बात है, एक धर्मपरायण राजा के राज्य में सभी नागरिक एकादशी का व्रत पूरी निष्ठा से रखते थे। यहां तक कि राजा के नौकर-चाकर और पशुओं को भी एकादशी के दिन अनाज नहीं दिया जाता था, बल्कि केवल फलाहार दिया जाता था। एक बार एक परदेशी व्यक्ति नौकरी की तलाश में राजा के पास आया। राजा ने उसे यह शर्त बताकर नौकरी दे दी कि "बाकी दिन तो तुम्हें भरपेट भोजन मिलेगा, लेकिन एकादशी को केवल फलाहार मिलेगा, अनाज नहीं।" उस व्यक्ति ने शर्त मान ली।
पहली एकादशी पर जब राजा ने उसे खाने के लिए फल दिए, तो वह व्यक्ति घबरा गया और राजा के सामने रोने लगा कि वह भूखा मर जाएगा। उसने बार-बार अनाज देने की जिद की। राजा ने उसे शर्त याद दिलाई, पर जब वह नहीं माना, तो राजा ने उसे आटा, दाल और चावल दे दिए।

वह व्यक्ति नदी किनारे गया, स्नान किया और भोजन पकाने लगा। भोजन तैयार होने पर उसने पूरे मन से भगवान को पुकारा, "आइए भगवान, भोजन तैयार है!" उसकी पुकार सुनते ही, भगवान विष्णु पीताम्बर धारण किए, चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए और उसके साथ बैठकर प्रेम से भोजन किया। भोजन के बाद भगवान अंतर्ध्यान हो गए और वह व्यक्ति अपना काम करने चला गया।
अगली एकादशी आई, तो उस व्यक्ति ने राजा से दोगुना राशन मांगा। कारण पूछने पर उसने बताया, "महाराज! पिछली बार भगवान भी मेरे साथ खाने आए थे, इसलिए हम दोनों के लिए खाना कम पड़ गया था।" राजा को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया। उसने सोचा, "मैं इतना व्रत-पूजा करता हूं, पर मुझे भगवान ने कभी दर्शन नहीं दिए। यह व्यक्ति झूठ बोल रहा है।" राजा ने उस व्यक्ति की बात पर अविश्वास जताया।
तब व्यक्ति ने कहा, "यदि आपको विश्वास नहीं है, तो आप खुद चलकर देख लीजिए।"

राजा छिपकर एक पेड़ के पीछे बैठ गया। उस व्यक्ति ने हमेशा की तरह भोजन बनाया और शाम तक भगवान को पुकारता रहा, पर भगवान प्रकट नहीं हुए। अंत में, निराश होकर उसने दृढ़ निश्चय के साथ कहा, "हे भगवान! अगर आप नहीं आए, तो मैं नदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दूंगा।"
जैसे ही उसने नदी की ओर कदम बढ़ाया, अपने भक्त का दृढ़ संकल्प देखकर भगवान तुरंत प्रकट हुए और उसे रोक लिया। भगवान ने उसके साथ बैठकर भोजन किया। इस बार, भोजन समाप्त होते ही भगवान उस व्यक्ति को अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए।
यह सब देखकर राजा को ज्ञान हुआ कि केवल नियमों का पालन या उपवास करना ही पर्याप्त नहीं है। भगवान को प्राप्त करने के लिए मन की शुद्धता, आस्था और समर्पण सबसे ज़रूरी है। इस घटना के बाद राजा ने भी सच्चे मन से व्रत और उपवास करना शुरू कर दिया और अंत में उसे भी स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

