Death anniversary of Satyavati devi: महान स्वतंत्रता संग्रामी थी ‘तूफानी बहन’
punjabkesari.in Friday, Oct 21, 2022 - 11:40 AM (IST)
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Death anniversary of Satyavati devi: ‘पंजाब की शेरनी’ और ‘तूफानी’ के नाम से प्रसिद्ध, 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के समय दिल्ली में जिस वीर महिला ने अपने साहस, संगठन क्षमता एवं अथक परिश्रम से चूल्हे-चौके और घर की चारदीवारी तक सीमित रहने वाली घरेलू महिलाओं को सड़क पर लाकर ब्रिटिश शासन को हैरान-परेशान कर दिया, उनका नाम था बहन सत्यवती।
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Satyavati devi birth place: उनका जन्म अपने ननिहाल ग्राम तलवन (जिला जालंधर, पंजाब) में 26 जनवरी, 1906 को हुआ था। सत्यवती देवी धनी राम और वेद कुमारी की पुत्री थीं तथा स्वाधीनता सेनानी एवं परिवर्तन के अग्रदूत स्वामी श्रद्धानंद जी उनके नाना थे। उनकी माता धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में काफी सक्रिय थीं। इस प्रकार साहस एवं देशभक्ति के संस्कार उन्हें अपने परिवार से ही मिले।
1922 में इनका विवाह ‘दिल्ली क्लॉथ मिल’ में कार्यरत एक अधिकारी वीरभद्र से हुआ, जिससे उन्हें एक पुत्र एवं पुत्री हुई। विवाह के बाद वह दिल्ली में रहने लगीं। पति से उन्हें दिल्ली के उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों की दुर्दशा की जानकारी मिली। श्रमिकों की दुर्दशा की कहानी सुन इनका मातृत्व जाग उठा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए वह मैदान में कूद पड़ीं।
उन्होंने दिल्ली की कपड़ा मिलों के श्रमिकों, विशेषकर महिला श्रमिकों को राजनीतिक रूप से जागरूक करने का काम किया। इस प्रकार उन्होंने 1936-37 में दिल्ली में श्रमिक आंदोलन को एक नई दिशा दी। इनके ओजस्वी और उग्र भाषणों से घबराकर शासन ने उन पर कई प्रतिबंध लगाए पर वह पुलिस को चकमा देकर निर्धारित स्थान पर पहुंच जाती थीं।
उन्होंने दिल्ली की राष्ट्रवादी महिलाओं में अग्रणी भूमिका निभाई और उन्हें जागृत कर उनका नेतृत्व किया। इससे दिल्ली की महिलाओं तथा युवाओं में उनकी विशेष पहचान बन गई। हिन्दू कालेज एवं इन्द्रप्रस्थ कन्या विद्यालय के छात्र-छात्राएं तो इनके एक आह्नान पर सड़क पर आ जाते थे।
गांधी जी तो इन्हें प्यार से ‘तूफानी बहन’ कहा करते थे। उन्होंने ग्वालियर और दिल्ली के कपड़ा मिलों के श्रमिकों के उत्थान के लिए कार्य किया तथा ‘कांग्रेस महिला समाज’ एवं ‘कांग्रेस देश सेविका दल’ की स्थापना की। वह ‘कांग्रेस समाजवादी दल’ की भी संस्थापक सदस्य थीं।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान नमक बनाने के कारण गिरफ्तार बहन सत्यवती जेल से बाहर आते ही तेजी से लोगों को आंदोलन के लिए प्रेरित करने में जुट गईं। उन्होंने ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ में सक्रिय भूमिका निभाई और इस आन्दोलन में दिल्ली कांग्रेस की महिला शाखा का नेतृत्व किया।
1932 में पुलिस ने उन्हें 11 दिन पहले जन्मे अपने बेटे के साथ पकड़कर जेल भेज दिया और 2 वर्ष के कारावास का दंड दिया। जेल में ही वह क्षय रोग की शिकार हो गईं। इतना होने के बावजूद उन्होंने ‘अच्छे व्यवहार’ करने और राजनीतिक आन्दोलनों से दूर रहने के आश्वासन के वचनपत्र (बांड) पर हस्ताक्षर नहीं किए, जिससे उन्हें जेल से छुट्टी मिल सकती थी और वह अपना इलाज करवा सकती थीं। डाक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी लेकिन आंदोलन से पीछे हटना उन्हें मंजूर नहीं था। जेल से वापस आने पर फिर से वह आंदोलन को धार देने में जुट गईं।
सत्यवती की हालत बिगड़ने पर अंग्रेज हुकूमत ने नजर बंद रखते हुए उनका इलाज शुरू कराया। उनके 3 ऑप्रेशन हुए, लेकिन कोई फायदा न हुआ। सारी पांबदियों को तोड़ते हुए वह 14 फरवरी, 1945 को लाहौर से दिल्ली के लिए रवाना हुईं। 15 फरवरी को फ्रंटियर मेल जब दिल्ली पहुंची तो बुखार से तप रहीं सत्यवती को अंग्रेजों ने फिर गिरफ्तार कर लिया।
जेल में बन्द महिला स्वतंत्रता सेनानी कविताएं रचा करतीं और चोरी-छुपे उसे बाहर निकालकर प्रकाशन करा दिया जाता था। ‘बहन सत्यवती का जेल सन्देश’ नामक उनकी एक कविता बहुत प्रसिद्ध हुई। दिल्ली में ही उन्होंने नमक कानून तोड़ने के लिए आंदोलन का आयोजन किया और स्वयं सेवकों के साथ मिलकर ‘नमक सत्याग्रह’ के समय उन्होंने शाहदरा के एक खाली मैदान में कई दिन तक नमक बनाकर लोगों को नि:शुल्क बांटा।
उनके नेतृत्व में ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ का दिल्ली में बहुत प्रभाव हुआ पर बार-बार जेल यात्राओं से जहां वह तपेदिक से ग्रस्त हो गईं, वहीं अपने परिवार और बच्चों की देखभाल भी ठीक से नहीं कर सकीं।
उनकी बेटी ने 10 वर्ष की अल्पायु में ही प्राण त्याग दिए। ब्रिटिश शासन ने पुत्री के अंतिम संस्कार के लिए भी उन्हें जेल से नहीं छोड़ा। 21 अक्तूबर, 1945 को उनका देहांत हो गया। उनकी स्मृति को चिरस्थायी रखने के लिए दिल्ली में सत्यवती कॉलेज की स्थापना की गई है।