हकीकत या फसाना: एक हाथ से दिया दान हजारों हाथों से लौटकर आता है

punjabkesari.in Saturday, Feb 25, 2023 - 11:58 AM (IST)

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Religious Katha: भारतवर्ष में एक राजा भोज हुए हैं जिनके दरबार के चौदह रत्नों में से एक कवि कालीदास भी थे। कालीदास ने एक बार देखा कि एक आदमी लड़खड़ाता हुआ सड़क पर जा रहा था। धूप तेज है, नंगे पैर होने से पैरों में छाले पड़ गए हैं। पथरीले मार्ग के कारण भी उसके पैर के छालों में दर्द हो रहा था। कवि ने दयावश अपने जूते उतारे और उसकी ओर बढ़ा कर कहा, ‘‘भाई, यह दान देने की वस्तु तो नहीं, परन्तु इस समय तुम्हें यही दी जानी चाहिए। अत: इसे एक मित्र अथवा भाई का दिया हुआ सहयोग ही समझना।’’

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उसे जूते देकर कवि चल तो दिए, परंतु कुछ दूर चलकर ही उनके पैरों में भी छाले पड़ गए। दर्द होने लगा। उन्हें लगा कि दान देने का फल इस दर्द के रूप में मिला, परन्तु फिर मन ने कहा, ‘‘नहीं अगर तुम्हारे जीवन में धर्म है तो जहां भी तुम्हें दया का अवसर मिले पीछे नहीं हटना चाहिए।’’

इतनी देर में राजा भोज का महावत हाथी को बाग में से लेकर आ वहां पहुंचा। महावत ने कवि को देखकर  कहा, ‘‘राजमहल की ओर जा रहे हो तो आओ हाथी पर बैठ जाओ।’’

और फिर पूछा, ‘‘जूतों का क्या हुआ?’’

कवि ने कहा, ‘‘चले गए।’’

सोने की नक्काशीदार तारों से सजे हाथी पर बैठे कवि राजमहल के पास पहुंचे तो राजा भोज ने देखा कि उनके सवारी करने वाले हाथी पर कवि महोदय आ रहे हैं। व्यंग्य से पूछा, ‘‘यह हाथी कहां मिल गया ?’’

कवि ने उत्तर दिया, ‘‘एक फटा पुराना जूता दान करके आया। उसके पुण्य के बदले में यह हाथी मिला। हे राजन आज बात समझ में आई है कि मनुष्य जो कुछ देता है उसके बदले में बहुत कुछ पाता है और जो कुछ नहीं देता तो वह उसके हाथ से निकल जाया करता है। आज जूते दिए तो हाथी मिला अगर जीवन में और कुछ देता तो न जाने क्या मिल जाता।’’

राजा भोज हंसते हुए बोले, ‘‘जब जूते दान करने के बदले में भगवान ने तुम्हें थोड़ी देर के लिए हाथी की सवारी दे दी तो राजा भोज भी ऐसा ही है। अब मेरी ओर से यह हाथी तुम्हारा हो गया। अब तुम यह हाथी संभालो। यह मत समझना कि मैंने दान किया। यह भी तुम्हारा पुण्य या भगवान स्वयं मेरे भीतर से बुलवा रहे होंगे कि यह हाथी इसे दे दिया जाए।’’

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Content Writer

Niyati Bhandari

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