क्या आप जानतें हैं कि भगवान कृष्ण को क्यों लगाया जाता है 21 दिनों तक चंदन ?
punjabkesari.in Wednesday, May 08, 2019 - 04:03 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
वैशाख माह शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का त्यौहार मनाया गया है। लेकिन क्या किसी को इस बात का पता है कि अक्षय तृतीया वाले दिन ही भगवान कृष्ण को चंदन का लेप लगाया जाता है, जिसे चंदन यात्रा के नाम से जाना जाता है और जो 21 दिनों तक लगातार चलती है। इस दिन से पूरे विश्व में भगवान कृष्ण को चंदन का लेप लगाया जाता है। ताकि चंदन की शीतलता देकर भक्त उनसे अपने तापों को हरने की प्रार्थना कर सकें। इसमें भगवान के पूरे शरीर पर चंदन का लेप लगाया जाता है और उसकी तैयारी महीनों पहले से ही शुरू हो जाती है। चंदन के लेप में कपूर, केसर, गुलाबजल और इत्र मिलाकर भगवान को लगाया जाता है। आइए आगे जानें इस परंपरा के बारे में-
ऐसी मान्यता है कि स्वयं भगवान जगन्नाथ ने राजा इंद्रद्युम्न को इस उत्सव को मनाने के लिए आदेश दिया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक महात्मा हुआ करते थे जिनका नाम माधवेन्द्र पुरी था। एक बार गोपाल जी ने खुद को प्रकट करने के लिए माधवेन्द्र जी के सपने में आकर उन्हें जमीन खोदकर प्रकट करने का अनुरोध किया। माधवेन्द्र पुरी ने गांव वालों जब सपने के बारे में बताया तो सबने मिलकर उनकी मदद की और उस स्थान को खोदा और वहां मिले गोपाल जी के अर्चाविग्रह को गोवर्धन पर्वत पर स्थापित किया।
कुछ दिन बाद गोपाल ने कहा कि जमीन में बहुत समय तक रहने के कारण उनका शरीर जल रहा है। तो वे जगन्नाथ पुरी से चंदन लाकर उनके शरीर पर लेप करें, जिससे उनके शरीर का ताप कम हो। महीनों पैदल चलकर माधवेन्द्र जी ओडिशा व बंगाल की सीमा पर रेमुन्ना नामक जगह पर पहुंचे जहां गोपीनाथ जी का एक भव्य मंदिर था। जब वे वहां रूके तो रात को उस मंदिर में गोपीनाथ को खीर का भोग लगाते देखकर, उन्होंने सोचा कि अगर वे उस खीर को खा पाते तो वैसी ही खीर वह अपने गोपाल को भी खिलाते। ऐसा सोचकर वे रात को सो गए।
उधर भगवान गोपीनाथ ने मंदिर के पुजारी को रात में स्वप्न में बताया कि मेरा एक भक्त यहां आया है, उसके लिए मैंने खीर चुराई है, उसे वह दे दो। भगवान की भक्त के लिए यह चोरी इतनी प्रसिद्ध हुई कि उनका नाम ही "खीरचोर गोपीनाथ" पड़ गया। अगले दिन सुबह ही माधवेन्द्र पुरी ने भगवान जगन्नाथ के पुजारी से मिलकर अपने गोपाल जी के लिए चंदन मांगा। पुजारी ने पुरी को महाराजा पुरी से मिलवा दिया और महाराजा ने अपने क्षेत्र की एक मन ‘40 किलो, विशेष चंदन लकड़ी अपने दो विश्वस्त अनुचरों के साथ माधवेन्द्र को दिलवा दी।
जब महाराज माधवेन्द्र गोपीनाथ मंदिर के पास पहुंचते हैं तो गोपाल जी फिर उनके स्वप्न में आते हैं और कहते हैं कि वो चंदन गोपीनाथ को ही लगा दें क्योंकि गोपाल और गोपीनाथ एक ही हैं। माधवेन्द्र पुरी ने गोपाल जी के निर्देशानुसार चंदन गोपीनाथ को ही लगा दिया। तब से इस लीला के सम्मान में "चंदन यात्रा" का आरंभ हुआ।